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आधार को माने चुनाव आयोग

Supreme Court

नई दिल्ली। बिहार में मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कोई आदेश नहीं दिया है। सर्वोच्च अदालत ने गहन पुनरीक्षण की प्रक्रिया पर रोक नहीं लगाई है। लेकिन चुनाव आयोग को सलाह दी है कि वह मतदाता सूची में नाम शामिल करने लिए एक दस्तावेज के तौर पर आधार कार्ड और राशन कार्ड को भी स्वीकार करे। गौरतलब है कि चुनाव आयोग अभी इन तीन दस्तावेजों को नागरिकता प्रमाणित करने और मतदाता सूची में नाम शामिल करने के लिए वैध दस्तावेज नहीं मान रहा है।

गुरुवार को बिहार में मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण के मामले में सुप्रीम कोर्ट में तीन घंटे तक सुनवाई हुई। जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने सुनवाई के दौरान मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण की टाइमिंग पर सवाल उठाए। अदालत ने पहले तो कहा कि नागरिकता की पहचान करना केंद्रीय गृह मंत्रालय का काम है, जिस पर चुनाव आयोग ने कहा कि जन प्रतिनिधित्व कानून के तहत यह उसकी भी जिम्मेदारी है क्योंकि जो नागरिक होगा वही मतदाता बनेगा। इसके बाद अदालत ने कहा कि अगर ऐसा है तो यह प्रक्रिया पहले शुरू की जानी चाहिए थी।

सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से कहा कि बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण के दौरान आधार और राशन कार्ड को भी पहचान पत्र माना जाए। अदालत ने बताया कि 10 विपक्षी दलों के नेताओं सहित किसी भी याचिकाकर्ता ने चुनाव आयोग की इस प्रक्रिया पर अंतरिम रोक की मांग नहीं की है। इसलिए अदालत ने इस पर रोक लगाने के बारे में विचार नहीं किया। सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाओं पर चुनाव आयोग से 21 जुलाई तक जवाब मांगा। इस मामले में अगली सुनवाई 28 जुलाई को होगी। ध्यान रहे चुनाव आयोग ने 25 जुलाई तक सभी आठ करोड़ मतदाताओं के मतगणना प्रपत्र और जरूरी दस्तावेज जमा करने को कहा है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘हम एक संवैधानिक संस्था को वह करने से नहीं रोक सकते जो उसका दायित्व है। लेकिन साथ ही हम यह भी नहीं होने देंगे कि वह ऐसा कुछ करे जो उसका दायित्व नहीं है’। सुनवाई के दौरान जस्टिस धूलिया ने कहा, ‘समस्या आपकी प्रक्रिया में नहीं है। समस्या आपके टाइमिंग की है। क्योंकि जिन लोगों को सूची से हटाया जा सकता है, उनके पास इसके अपील करने का समय नहीं होगा’। इस पर चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को भरोसा दिलाया कि सुनवाई का मौका दिए बिना किसी को भी मतदाता सूची से बाहर नहीं किया जाएगा।

गौरतलब है कि चुनाव आयोग ने 24 जून के एक आदेश के जरिए 25 जून से गहन पुनरीक्षण का काम शुरू किया है। इसके खिलाफ कई याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई हैं। इनमें याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि मतदाता सूची का पुनरीक्षण नियमों को दरकिनार कर किया जा रहा है। मतदाताओं की नागरिकता जांची जा रही है, जो कानून के खिलाफ है। इसके खिलाफ गैर सरकारी संस्था एडीआर के अलावा राजद सांसद मनोज झा और तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा सहित 11 लोगों ने याचिकाएं दाखिल की हैं। याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल, अभिषेक सिंघवी ने बहस की तो चुनाव आयोग की ओर से पूर्व अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल, राकेश द्विवेदी और मनिंदर सिंह ने दलीलें रखीं।

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