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अपराध श्रेणी से बाहर हो मानहानि

New Delhi, May 22 (ANI): A view of the Supreme Court of India, in New Delhi on Thursday. (ANI Photo/Rahul Singh)

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मानहानि को अपराध बनाने वाले कानून को लेकर बड़ी टिप्पणी की है। सर्वोच्च अदालत ने कहा है कि अब समय आ गया है कि मानहानि को अपराध की श्रेणी से बाहर किया जाए। जस्टिस एमएम सुंदरेश और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने सोमवार को पूर्व जेएनयू प्रोफेसर अमिता सिंह की ओर से 2016 में एक मीडिया संस्थान के खिलाफ दाखिल मानहानि मामले की सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की।

मीडिया संस्थान ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया था कि प्रोफेसर अमिता सिंह ने एक डॉजियर तैयार किया था, जिसमें जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी, जेएनयू को अश्लील गतिविधियों और आतंकवाद का अड्डा बताया गया। अमिता सिंह का आरोप है कि रिपोर्टर और संपादक ने बिना सचाई पता किए यह खबर प्रकाशित की, जिससे उनकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा।

सोमवार को सुनवाई के दौरान जस्टिस सुंदरेश की इस टिप्पणी पर वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कोर्ट से सहमति जताते हुए कहा कि राहुल गांधी का मामला भी इसी तरह विचाराधीन है। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने प्रोफेसर अमिता सिंह को नोटिस भेजा। गौरतलब है कि 2017 में दिल्ली की एक मेट्रोपॉलिटन अदालत ने मीडिया संस्थान के एडिटर और डिप्टी एडिटर को मानहानि मामले में समन भेजा था।

दो साल पहले 2023 में दिल्ली हाई कोर्ट ने यह समन रद्द कर दिया। लेकिन 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट का फैसला पलटते हुए केस को दोबारा मजिस्ट्रेट कोर्ट में भेज दिया। इसके बाद मई 2025 में हाई कोर्ट ने फिर से समन को सही ठहराया। इसके खिलाफ मीडिया संस्थान और डिप्टी एडिटर ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की। सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में कहा गया है, अब नया कानून भारतीय न्याय संहिता लागू है। इसकी धारा 223 के अनुसार केस की सुनवाई शुरुआती स्तर पर ही होनी चाहिए। हालांकि हाई कोर्ट का मानना है कि चूंकि शिकायत 2016 की है, इसलिए नया कानून लागू नहीं होगा।

गौरतलब है कि, भारत थोड़े से लोकतांत्रिक देशों में शामिल है, जहां मानहानि को अब भी संज्ञेय अपराध माना जाता है। भारतीय न्याय संहिता की धारा 356 इसके लिए सजा का प्रावधान करती है। पहले यही प्रावधान आईपीसी की धारा 499 में था, जिसकी संवैधानिक वैधता को सुप्रीम कोर्ट ने 2016 में सही ठहराया था। अदालत ने कहा था आपराधिक मानहानि कानून बोलने की आजादी पर एक ‘जरूरी रोक’ है और यह लोगों के जीवन और सम्मान की रक्षा करता है।

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