भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विरोधाभासी राजनीति की कई मिसालें कायम की हैं। अनेक ऐसे उदाहरण हैं, जब प्रधानमंत्री और उनकी पार्टी ने कहा कुछ और किया उससे बिल्कुल उलट। कहा कि आकंठ भ्रष्टाचार में डूबे अजित पवार जेल जाएंगे, लेकिन उनको अपने गठबंधन में शामिल करके महाराष्ट्र का उप मुख्यमंत्री बना दिया। कहा कि मुफ्ती मोहम्मद सईद और उनकी पार्टी आतंकवादियों से जुड़ी है और जिस चुनाव में यह बात कही उसी चुनाव के बाद मुफ्ती मोहम्मद सईद को समर्थन देकर मुख्यमंत्री बना दिया। कहा कि, ‘बहुत हुई पेट्रोल की मार, अबकी बार मोदी सरकार’ और सरकार बनने पर पेट्रोल की कीमत दोगुनी कर दी।
ऐसी और अनेक मिसालें हैं लेकिन ये तीन प्रतिनिधि मिसालें हैं, जिनसे साबित होता है कि भाजपा जो कहती है उसके प्रति उसकी कोई प्रतिबद्धता नहीं होती है। लोग भी इस बात को समझ गए हैं फिर भी भाजपा और नरेंद्र मोदी के प्रति उनका समर्थन कायम है तभी भाजपा चुनाव जीत रही है। इसका कारण यह है कि ये तीनों भाजपा और नरेंद्र मोदी की राजनीति के बुनियादी सिद्धांतों से नहीं जुड़े हैं और न मोदी के सबसे कोर समर्थकों को नाराज करने वाले हैं।
लेकिन जम्मू कश्मीर के पहलगाम में आतंकवादियों द्वारा 26 भारतीय नागरिकों से उनका धर्म पूछ कर मार डालने और इसका बदला लेने के लिए हुई ऑपरेशन सिंदूर की सैन्य कार्रवाई के बाद भारत और पाकिस्तान की क्रिकेट टीमों का मैच खेलना कोई ऐसी घटना नहीं है, जिसे भाजपा के दोहरे चरित्र की स्वाभाविक घटना मान कर भुला दिया जाएगा। अजित पवार को उप मुख्यमंत्री बनाने को लोग टैक्टिकल डिसीजन मान कर स्वीकार कर रहे हैं और उसका बचाव भी कर रहे हैं। मुफ्ती परिवार को भी एक समय तक समर्थन देने को टैक्टिकल डिसीजन बताया गया। पेट्रोल, डीजल की कीमतें भी लोगों ने स्वीकार की। लेकिन आतंकवाद के मसले पर पाकिस्तान के साथ आर पार की लड़ाई का मैदान सजाने और तीन दिन तक युद्ध करने के चार महीने के बाद ही उसके साथ क्रिकेट खेलने का फैसला न तो राजनीतिक रूप से टैक्टिकल फैसला है और न सामरिक रूप से। यह विशुद्ध रूप से भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड यानी बीसीसीआई के पैसा कमाने का खेल है, जिसकी कमान अभी केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बेटे जय शाह संभाल रहे हैं।
जय शाह भले आईसीसी के अध्यक्ष हो गए हैं लेकिन बीसीसीआई उन्हीं के परोक्ष नियंत्रण में है। सो, यह पैसा कमाने के लिए अपने नागरिकों के शव, उनके परिजनों के आंसू, सैनिकों की शहादत, देश के गर्व, कूटनीतिक पोजिशन और सामरिक रणनीति को दांव पर लगा देने की घटना है। इसके दाग आसानी से नहीं छूटने वाले हैं।
ध्यान रखने की जरुरत है कि भारत का पाकिस्तान से क्रिकेट खेलना भाजपा और नरेंद्र मोदी दोनों की पहचान से जुड़े दो सबसे बुनियादी सिद्धांतों से समझौते का मामला है। पाकिस्तान के साथ भारतीय टीम के क्रिकेट खेलने की मंजूरी देकर भारत सरकार ने हिंदुत्व और राष्ट्रवाद दोनों के बुनियादी सिद्धांतों से समझौता किया है। पहलगाम की घटना हिंदुत्व को चुनौती थी तो ऑपरेशन सिंदूर राष्ट्रवाद का हुंकार था। पहलगाम के बाद भारत ने पाकिस्तान के साथ सिंधु जल संधि स्थगित की थी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि खून और पानी एक साथ नहीं बह सकता है। तभी चारों ओर से यह सवाल पूछा जा रहा है कि क्या खून और क्रिकेट साथ साथ चल सकते हैं?
यह फालतू की बात है कि एशियाई क्रिकेट परिषद यानी एसीसी और अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद यानी आईसीसी के बहुराष्ट्रीय टूर्नामेंट होते हैं तो उसमें देशों के भाग लेने की मजबूरी होती है। ऐसी कोई मजबूरी नहीं होती है। पाकिस्तान खुद ही एशियाई कप का बहिष्कार कर चुका है। भारत ने 1986 में एशिया कप का बहिष्कार किया था। 1986 के विश्व कप में ऑस्ट्रेलिया और वेस्टइंडीज की टीमें श्रीलंका में मैच खेलने नहीं गई थीं और अपने मैच प्वाइंट गंवा दिए थे। इसलिए अनुराग ठाकुर या भाजपा का कोई भी नेता अगर यह तर्क दे रहा है तो वह देश के लोगों को बरगला रहा है। ऐसी कोई मजबूरी नहीं होती है।
भारत किसी मजबूरी में पाकिस्तान के साथ क्रिकेट मैच नहीं खेल रहा है, बल्कि इसलिए खेल रहा है क्योंकि ऐसे मुकाबले में हजारों करोड़ रुपए दांव पर लगे होते हैं। बीसीसीआई को सैकड़ों करोड़ रुपए की कमाई होती है। नहीं खेलने पर इस पैसे का नुकसान होता है। लेकिन देश के लोगों को यह भी पता है कि भारत के मैच खेलने से पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड के खाते में भी एक झटके में सैकड़ों करोड़ रुपए आएंगे। सोचें, भारत अंतरराष्ट्रीय मंचों पर यह मामला उठाता है कि पाकिस्तान को वर्ल्ड बैंक और आईएमएफ कर्ज न दें क्योंकि उस कर्ज के पैसे से वह आतंकवाद को बढ़ावा देगा लेकिन दूसरी ओर भारत यह सुनिश्चित करता है कि पाकिस्तान को क्रिकेट से सैकड़ों करोड़ रुपए की कमाई हो!
क्या इस पैसे का इस्तेमाल आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए नहीं होगा? पिछले दिनों खबर आई थी कि दूसरे फंड का पैसा डायवर्ट करके पाकिस्तान की सरकार मुरीदके में उस आतंकवादी ठिकाने को नया बनवा रही है, जिसे ऑपरेशन सिंदूर के तहत भारत की सेना ने नष्ट किया था। भाजपा और भारत सरकार के बताए से ही देश के लोग जानते हैं कि क्रिकेट से कमाई का पैसा पाकिस्तान भारत के खिलाफ ही इस्तेमाल करेगा।
टी20 के एशिया कप में भारत और पाकिस्तान के बीच एक मुकाबला हो चुका है, जो ग्रुप लेवल का है। सोचें, यह भी क्या संयोग है कि हर ऐसे मुकाबले में भारत और पाकिस्तान को एक ग्रुप में ही रखा जाता है ताकि लीग स्तर पर कम से कम एक मुकाबला हो। इसके बाद सुपर फोर में 21 सितंबर को भारत और पाकिस्तान का दूसरा मुकाबला होने की संभावना है और उसके बाद फाइनल भी इन दोनों टीमों के बीच हो सकता है। जितनी बार दोनों देशों की टीमें खेलेंगी, उतनी बार भारत सरकार और भारतीय जनता पार्टी की हिप्पोक्रेसी बेनकाब होगी। हर बार लोगों को याद आएगा कि पहलगाम कांड के बाद भारत ने क्या कहा था। ऐसा नहीं है कि भाजपा विरोधी ही इससे आहत हैं। भाजपा समर्थकों की भावनाएं ज्यादा आहत हुई हैं क्योंकि उन्होंने ज्यादा मुखर होकर क्रिकेट में पाकिस्तान के बहिष्कार का ऐलान किया था।
यह उनके लिए एक मनोवैज्ञानिक सदमा है। वे अपने परिवार, समाज और गांव, कस्बे में इस मुद्दे पर जिन लोगों से लड़े थे उनके सामने उनकी नजरें झुकी हुई हैं। वे इसे जस्टिफाई नहीं कर पा रहे हैं। उनके लिए भी यह समझना मुश्किल है कि नरेंद्र मोदी की सरकार के लिए हिंदुत्व और राष्ट्रवाद कैसे समझौते का विषय हो सकता है! विरोधी याद दिला रहे हैं कि, मोदी ने कहा था कि मेरी नस नस में बिजनेस है लेकिन समर्थक कैसे स्वीकार करें कि हिंदुत्व और राष्ट्रवाद भी बिजनेस का माध्यम हो सकते हैं?
इसलिए तय मानें कि यह मुद्दा आसानी से भाजपा का पीछा नहीं छोड़ने वाला है। यह हिंदुओं के मनोभावों को बहुत गहराई से प्रभावित करने वाली घटना है। यह उनके मोहभंग की निर्णायक घटना हो सकती है। अब इन बातों का कोई मतलब नहीं है कि टीम ने मैच जीतने के बाद पाकिस्तानी खिलाड़ियों से हाथ नहीं मिलाया या पहले मैच की जीत भारत के सशस्त्र बलों को समर्पित किया। इन बातों में एक महाभूल पर परदा डालने की दयनीय कोशिश ही दिखाई देती है।