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पीयूष गोयल ने बड़ी हिम्मत दिखाई

Piyush Goyal

वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल मुंबई में रहते हैं और इस बार तो राज्यसभा छोड़ कर मुंबई की एक सीट से लोकसभा का चुनाव जीते हैं। वे कॉरपोरेट के चहेते नेता हैं। इसी योग्यता की वजह से वे लंबे समय तक भाजपा के कोषाध्यक्ष रहे। यह पद उनको विरासत में मिला था। पहले उनके पिता वेद प्रकाश गोयल भी भाजपा के कोषाध्यक्ष थे। यानी वे पीढ़ियों से कॉरपोरेट फ्रेंडली हैं। इसके बावजूद उन्होंने ऐसी बात कही है, जो निश्चित रूप से इस देश के किसी कॉरपोरेट को पसंद नहीं आई होगी। कई लोगों ने तो खुल कर प्रतिक्रिया भी दी और बाकी लोग मन ही मन कुढ़ रहे होंगे। गोयल ने राजनीतिक जोखिम भी लिया है।

उन्होंने जब कहा कि भारत में सिर्फ फूड डिलीवरी, इंस्टेंट ग्रॉसरी डिलीवरी या बेटिंग, गेमिंग के स्टार्टअप्स बन रहे हैं, जबकि चीन में एआई और ईवी के स्टार्टअप्स बन रहे हैं तो उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दावे पर भी सवाल खड़ा कर दिया। प्रधानमंत्री मोदी बार बार कहते रहे हैं कि भारत स्टार्टअप्स का कैपिटल है और दावा करते हैं कि भारत के कितने स्टार्टअप्स यूनिकॉर्न बन गए यानी सौ करोड़ डॉलर से ज्यादा का कारोबार करने वाले बन गए। लेकिन उनके इस दावे के बरक्स पीयूष गोयल ने भारत के स्टार्टअप्स की हकीकत बताई है। उन्होंने बड़ा जोखिम लिया है।

पीयूष गोयल ने स्टार्टअप महाकुंभ में बोलते हुए कहा, ‘भारत में स्टार्टअप्स फूड डिलीवरी, फैंसी आइसक्रीम व कुकीज, इंस्टेंट ग्रॉसरी डिलीवरी, बेटिंग व फैंटेसी स्पोर्ट्स ऐप्स और रील्स व इन्फ्लूएंसर्स इकोनॉमी बनाने में बिजी हैं’। उन्होंने भारत के स्टार्टअप्स की तुलना चीन से करते हुए कहा कि दूसरी ओर चीन में ‘ईवी व बैटरी टेक्नोलॉजी, सेमीकंडक्टर, एआई रोबोटिक्स व ऑटोमेशन, ग्लोबल लॉजिस्टिक्स, ट्रेड व डीप टेक और इंफ्रास्ट्रक्चर से जुड़े स्टार्टअप्स शुरू हो रहे है’। गोयल इतने पर नहीं रूके उन्होंने यह भी कहा कि वे ऐसे तीन या चार अरबपतियों को जानते हैं, जिनके बच्चों ने बहुत फैंसी आइसक्रीम और कुकीज के ब्रांड बनाए और वे सफल कारोबार चला रहे हैं। उन्होंने कहा कि उन्हें इससे दिक्कत नहीं है लेकिन क्या यही भारत का भविष्य है और क्या देश इससे संतुष्ट है? उनको सुनते हुए कई बार लगा कि कोई कम्युनिस्ट या सोशलिस्ट लीडर बोल रहा है। उन्होंने कहा, ‘आज भारत का स्टार्टअप क्या है? हम फूड डिलीवरी ऐप्स पर ध्यान केंद्रित किए हुए हैं और बेरोजगार युवाओं को सस्ता मजदूर बना रहे हैं ताकि अमीर लोग घर से निकले बगैर अपना भोजन प्राप्त कर सकें’।

भारत के वाणिज्य मंत्री ने अपने इस भाषण से ऐसी दुखद सचाई को एक्सपोज किया है, जिस पर अभी तक परदा डाला जाता रहा है और ऐसी छोटी छोटी चीजों को बड़ा बना कर देश की उपलब्धि के तौर पर पेश किया जाता रहा है। सवाल है कि भारत क्यों ऐसी स्थिति में है? भारत इस स्थिति में इसलिए है क्योंकि भारत के कारोबारी जोखिम नहीं ले सकते हैं। वे इनोवेशन यानी नई चीजों के रिसर्च में पैसा खर्च नहीं कर सकते हैं। वे अनदेखे क्षेत्र में कदम ही नहीं रख सकते हैं। बचपन से इस देश में ‘महाजनो येन गतः स पंथा’ पढ़ाया जाता है। यानी समझदार लोग जिस रास्ते पर गए हों उसी पर चलें। लीक छोड़ कर चलने की शिक्षा नहीं दी जाती है। तभी भारत के कारोबारी इंतजार करते हैं कि दुनिया के दूसरे देशों में लोग रिसर्च पर पैसे खर्च करें और नई तकनीक ईजाद करें और उत्पाद बना लें तो वे बाद में उसका इस्तेमाल कर लेंगे। यानी इनोवेटर नहीं कंज्यूमर बनने की ही सोच देश के खरबपतियों की भी है।

तभी दुनिया भर के देशों में जब फूड डिलीवरी ऐप्स बन गए, डिजिटल भुगतान के ऐप्स बन गए, कैब और फूड एग्रीगेटर के ऐप्स बन गए तो भारत के अरबपतियों ने उनकी नकल करके अपने ऐप्स बनाए और सचमुच भारत के बेरोजगार युवाओं को सस्ते मजदूर में बदल दिया। स्विगी, जोमैटो से लेकर ब्लिंकिट और बिग बास्केट तक और भारत पे से लेकर पेटीएम तक और ओला से लेकर मिंत्रा तक और जेरोधा से लेकर ग्रो तक जितने भी ऐप्स बन हैं और जिनसे भारत में नई पीढ़ी के अरबपति बने हैं उनमें से कोई भी ऐप नया इनोवेशन नहीं है और कोई भी ऐप ऐसा नहीं है, जो भारत से बाहर दुनिया के दूसरे देश में इस्तेमाल किया जा रहा हो और उससे भारत में पैसा आ रहा हो। लगभग सारे स्टार्टअप्स और सारे ऐप्स भारत के लोगों को छोटी छोटी सुविधाएं देने के लिए ही हैं। उनसे भारत को बड़ी इकोनॉमी बनाने या भारत की बुनियादी व चिरंतन समस्याओं के समाधान का रास्ता नहीं बनता है।

पीयूष गोयल ने सिर्फ चीन से तुलना की अगर अमेरिका और यूरोप के देशों से तुलना की जाए तो भारत के स्टार्टअप्स और भी थके हुए और समय से पीछे के दिखाई देंगे। कोई भी नया इनोवेशन नहीं है। कोई भी तकनीक ऐसी नहीं है, जिसे पेटेंट कराया जाए तो दुनिया वाह कहे और उसका इस्तेमाल करने के लिए लाखों, करोड़ों डॉलर खर्च करे। भारत के खरबपति सरकारी नियम, कानूनों और देश की संपदा का इस्तेमाल करके अपनी संपत्ति बढ़ाते हैं। उनको नया कुछ भी करने की जरुरत नहीं है। इसी तरह भारत के जो स्टार्टअप्स हैं उन्हें शुरू करने वालों के पास भी कोई नया आइडिया नहीं है। वे दुनिया में आजमा लिए गए आइडिया पर ही काम करते हैं। सैम ऑल्टमैन और इलॉन मस्क ने आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस पर काम किया और ओपन एआई की स्थापना की, जिससे पूरी दुनिया में एआई की क्रांति आई है। गूगल, फेसबुक, यूट्यूब, एक्स से लेकर आयोस, एंड्रॉयड तक सारी प्रौद्योगिकी का आविष्कार दूसरे लोगों ने किया। भारत के खरबपति और स्टार्टअप्स शुरू करने वाले युवा ऐसी ही तकनीकों का इस्तेमाल करके कमाई कर रहे हैं।

ऐसा नहीं हुआ कि अमेरिका में ओपन एआई के तहत चैटजीपीटी बना तो भारत में किसी ने जेनेरेटिव एआई टूल्स बनाने में निवेश किया और कुछ नया बना लिया लेकिन चीन के एक उद्यमी ने डीपसीक बना लिया। अब भारत या तो चैटजीपीटी का इस्तेमाल करेगा या डीपसीक का करेगा। इस मामले में अफ्रीका और लैटिन अमेरिकी देशों से बेहतर नहीं है भारत की स्थिति। उधर चीन में बैटरी तकनीक पर इतना काम हुआ है कि उसकी इलेक्ट्रिक वाहन बनाने वाली कंपनी बीवाईडी और ली ऑटो ने अमेरिका की टेस्ला और जर्मनी के फॉक्सवैगन की नींद उड़ा रखी है।

इधर भारत में ओला ने ईवी स्कूटर बनाया तो हजारों, लाखों ग्राहक रोज शिकायत लेकर पहुंच रहे हैं और कंपनी उनकी शिकायतें दूर करने में सक्षम नहीं है। भारत में डीप टेक यानी बड़े तकनीकी आविष्कार की सोच और क्षमता नहीं है। स्टार्टअप्स करने वाले युवाओं के पास भी कोई आइडिया या तकनीकी जानकारी नहीं है। चीन में डीप टेक के काम में लगी छह हजार कंपनियों ने एक सौ अरब डॉलर का वेंचर कैपिटल जुटाया है। ये कंपनियां एडवांस्ड साइंटिफिक रिसर्च के काम में लगी हैं। ये आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस, बायोटेक्नोलॉजी, क्वांटम कंप्यूटिंग, रोबोटिक्स, एयरोस्पेस, क्लीन एनर्जी और एडवांस्ड मैटेरियल के फील्ड में रिसर्च कर रही हैं। भारत में शायद ही इस तरह के फील्ड में कोई स्टार्टअप कंपनी काम कर रही है।

सरकार भी ऐसे फील्ड में रिसर्च में ज्यादा पैसा खर्च नहीं करती है। सो, पीयूष गोयल ने जो सवाल उठाए हैं उनका जवाब भारत सरकार को भी देना चाहिए। भारत में अगर तकनीक के क्षेत्र में कुछ निवेश और स्टार्टअप्स हैं भी तो सिर्फ ‘सॉफ्टवेयर एज अ सर्विस सेक्टर’ यानी कॉल सेंटर या आईटी आधारित सेवाओं में है। यह भी कुलीगीरी का ही काम है। यह सही है कि चीन में भी बहुत सी कंपनियों ने पहले घरेलू उपभोक्ताओं का ध्यान रख कर उनकी जरूरतों को पूरा करने वाला ऐप बनाया लेकिन यह बहुत पहले की बात है। भारत में जो आज हो रहा वह कई बरस पहले चीन में हो चुका है। भारत पे बनाने वाले अशनीर ग्रोवर ने कहा कि चीन में भी पहले फूड डिलीवरी ऐप बने और तब डीप टेक के ऐप्स बने। लेकिन क्या भारत में ऐसा हो सकता है कि जो फूड डिलीवरी ऐप बना रहे हैं वे डीप टेक में रिसर्च करेंगे? जेप्टो के आदित पलिचा या भारत के अशनीर ग्रोवर या शादी डॉटकॉम के अनुपम मित्तल बेवजह आहत हुए हैं। ये लोग कुछ नहीं कर रहे हैं और न कर सकते हैं। इन लोगों ने दुनिया के विकसित देशों की तकनीक की नकल करके जो कुछ भी बनाया है उसमें भी कंपीटिशन नहीं झेल सकते हैं। कोई बाहरी खिलाड़ी आ जाए तो उसको अपना सब कुछ बेच कर निकल लेंगे।

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