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आतंकवाद के खिलाफ जंग कभी समाप्त नहीं होगी!

नक्सलवाद के खिलाफ भारत जंग जीत रहा है। सुरक्षा बलों की लगातार कार्रवाई में नक्सली कमांडर मारे जा रहे है। दंतेवाड़ा और झीरम घाटी जैसे बड़े हमलों का मास्टरमाइंड और सबसे खतरनाक नक्सली कमांडरों में से एक माडवी हिडमा को भी सुरक्षा बलों ने मार गिराया है। केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से नक्सलवाद को खत्म करने की डेडलाइन मार्च 2026 तय की गई है और ऐसा लग रहा है कि उस समय तक यह लक्ष्य हासिल कर लिया जाएगा। लेकिन क्या आतंकवाद के खिलाफ जंग के बारे में भी ऐसा कहा जा सकता है? क्या यह सोचा जा सकता है कि आतंकवाद समाप्त हो जाएगा? दिल्ली में लाल किले के सामने हुए कार विस्फोट के बाद एक बार फिर यह सवाल बहुत प्रासंगिक हो गया है।

पिछले एक दशक से केंद्र सरकार की ओर से दावा किया जा रहा था कि जम्मू कश्मीर के बाहर कहीं भी आतंकवादी हमला होना बंद हो गया है। प्रधानमंत्री स्वंय अपने भाषणों में कह रहे थे कि पहले हर जगह यह चेतावनी लिखी होती थी कि लावारिस वस्तु को हाथ न लगाएं वह बम हो सकता है। प्रधानमंत्री का दावा है कि अब ऐसा नहीं लिखा होता है। हालांकि दिल्ली मेट्रो में सफर करने वाले हर व्यक्ति को दो स्टेशन के बीच की यात्रा में भी यह लाइन कई बार सुनने को मिलती है। लगता है प्रधानमंत्री को इस बारे में जानकारी नहीं है।

बहरहाल, वे जो कह रहे थे वह धारणा प्रबंधन का हिस्सा था। वे लोगों को भरोसा दिलाना चाहते थे कि देश आतंकवाद के खिलाफ जंग में भी जीत रहा है। यह भी बार बार कहा जा रहा था कि आतंकवादी हमले जम्मू कश्मीर तक सिमट गए हैं और वहां भी हालात सुधर रहे हैं। हालांकि यह सिर्फ आंकड़ों की बात है। जम्मू कश्मीर में कई बड़े आतंकी हमले हुए हैं और कई हमलों का तो अभी तक सुराग भी नहीं मिल पाया है। इस साल अप्रैल में पहलगाम की बायसरन घाटी में हुआ हमला सबसे बड़ी मिसाल है। उस हमले के बाद भारत ने आतंकवादियों के खिलाफ सैन्य कार्रवाई की और पाकिस्तान की सीमा में कई आतंकी ठिकानों को नष्ट किया लेकिन पहलगाम कांड को अंजाम देने वाले अभी तक सुरक्षा बलों की पकड़ से बाहर हैं। उनको अपने किए की सजा नहीं मिल पाई है।

अभी पहलगाम कांड के घाव भरे नहीं थे कि राजधानी दिल्ली में लाल किले के सामने कार विस्फोट हुआ, जिसमें 13 लोग मारे गए और करीब 20 लोग घायल हुए। इस बम विस्फोट से पहले सुरक्षा बलों ने व्हाइट कॉलर टेरर मॉड्यूल की पहचान की थी और गिरफ्तारियां शुरू की थीं। इस घटना के बाद जम्मू कश्मीर पुलिस, दिल्ली पुलिस, हरियाणा और उत्तर प्रदेश पुलिस ने ताबड़तोड़ कार्रवाई की और अनेक लोगों को गिरफ्तार किया। गिरफ्तार लोगों में ज्यादातर डॉक्टर हैं और एक मेडिकल कॉलेज से जुड़े कर्मचारी हैं। अब इस मामले की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी यानी एनआईए कर रही है। जिस व्हाइट कॉलर टेरर इकोसिस्टम ने इस घटना को अंजाम दिया है उसकी जांच के क्रम में दिल्ली से सटे फरीदाबाद में तीन टन विस्फोटक बनाने की सामग्री और कई अत्याधुनिक हथियार बरामद हुआ। अब जांच एजेंसियों के सामने सबसे बड़ा टास्क तो यह पता लगाना है कि आखिर इतनी बड़ी मात्रा में विस्फोटक कैसे इकट्ठा किया गया, इसका नेटवर्क कितना बड़ा है, इसके पीछे असली ताकत कौन सी है और उसका असली मकसद क्या था? इसका पता लगाए बगैर कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं हो पाएगी।

चाहे छह साल पहले हुआ पुलवामा कांड हो या इस साल का पहलगाम कांड हो या दिल्ली का विस्फोट हो, सबसे बड़ा सवाल खुफिया एजेंसियों की विफलता का है। खुफिया एजेंसियां यह नहीं पता लगा सकी हैं कि पुलवामा कांड को अंजाम देने के लिए उतनी बड़ी मात्रा में आरडीएक्स कैसे पहुंचा था। ऐसे ही यह भी पता नहीं चल पाया है कि पहलगाम कांड को अंजाम देने वाले कहां गायब हो गए। और अब यह पता लगाने की चुनौती है कि दिल्ली में इतना विस्फोटक कैसे जमा हुआ और कार विस्फोट में मारे गए आत्मघाती हमलावर उमर का हैंडलर कौन है और उसके साथ कितने लोग जुड़े हैं। संदिग्धों की गिरफ्तारी से कुछ परतें खुल रही हैं लेकिन मुख्य साजिश का खुलासा अभी बाकी है। खुफिया एजेंसियों की विफलता चिंता में डालने वाली है। क्योंकि अगर समय रहते जानकारी नहीं मिलेगी तो आतंकी वारदात को अंजाम दे दिए जाने के बाद किसी कार्रवाई का कोई मतलब नहीं रह जाएगा। इसका यह भी मतलब होगा कि आतंकवादी जब चाहें तब किसी घटना को अंजाम दे सकते हैं।

कार विस्फोट में मारा गया आतंकवादी उमर उन नबी पुलवामा का रहने वाला है। पुलिस और राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने जितने लोगों को पकड़ा है, सब कश्मीर के रहने वाले हैं। परंतु कश्मीर के नेताओं का कहना है कि सभी कश्मीरियों को संदेह की नजर से नहीं देखना चाहिए। विधानसभा चुनाव में बुरी तरह से हारीं पीडीपी की नेता महबूबा मुफ्ती और बडगाम उपचुनाव हारी नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता फारूक अब्दुल्ला एक कदम आगे बढ़ कर पकड़े गए संदिग्धों को प्रति भी हमदर्दी दिखाने लगे हैं। फारूक ने कहा कि डॉक्टर लोग किन हालात में आतंकी बने यह भी देखना चाहिए। उधर महबूबा मुफ्ती ने तो यहां तक कह दिया कि जम्मू कश्मीर की परेशानी दिल्ली के लाल किले के सामने गूंजी। उनका कहना है कि जम्मू कश्मीर के साथ अन्याय हो रहा है और इसलिए एक पढ़ा लिखा युवक बम लगा कर विस्फोट कर ले रहा है। सवाल है कि क्या जम्मू कश्मीर के नेता राज्य का दर्जा नहीं मिलने या अनुच्छेद 370 हटाए जाने या राज्य के विभाजन को वैसा ही क्षण मान रहे हैं, जैसा 1987 के चुनाव के बाद का था? क्या वे यह संकेत दे रहे हैं कि केंद्र सरकार जम्मू कश्मीर के साथ जो कर रही है उसका प्रतिकार करने के लिए नए सिरे से घाटी में आतंकवाद सर उठा रहा है? सुरक्षा एजेंसियां दावा कर रही थीं कि अब घरेलू आतंकवादी बहुत कम बचे हैं और आतंकवादी घटनाओं को भाड़े के आतंकी अंजाम दे रहे हैं। लेकिन कश्मीर नेताओं के बयान दूसरा संकेत दे रहे हैं, जो ज्यादा चिंताजनक हैं।

तभी ऐसा लग रहा है कि आतंकवाद के खिलाफ जंग तुरंत समाप्त नहीं होने वाली है, बल्कि यह भी कह सकते हैं कि यह निरंतर जारी रहने वाली जंग में बन गया है। नक्सलवाद जिस विचाऱधारा से संचालित होता था वह विचारधारा पूरी दुनिया में अप्रसांगिक हो गई है और जब किसी आंदोलन के पीछे का विचार खत्म होता या कमजोर होता है तो उस आंदोलन का खत्म होना अवश्यम्भावी हो जाता है। परंतु आतंकवाद के साथ ऐसा नहीं है। उसके पीछे जिहाद का एक धार्मिक विचार भी कहीं न कहीं काम करता है। इसलिए भी इसकी लड़ाई नक्सलवाद के खिलाफ लड़ाई से भिन्न है। उसके लिए नए टूल्स और नए तरीके खोजने होंगे।

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