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विपक्षी गठबंधन में एकजुटता अस्थायी है

विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के नेताओं की राहुल गांधी के नए सरकारी आवास पर बैठक हुई और सबने जरूरी राजनीतिक मुद्दों पर चर्चा के बाद एक साथ भोजन भी किया। इसके बाद कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने ‘इंडिया’ ब्लॉक के नेताओं को भोजन कराया। लेकिन इस भोजन और बैठक से क्या हासिल हुआ? क्या कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम ने इस गठबंधन के अस्तित्व को लेकर जो सवाल उठाए थे उनका जवाब मिल गया?

क्या यह स्थापित हो गया कि विपक्षी गठबंधन उसी स्वरूप में बना हुआ है, जिस स्वरूप में यह अपने गठन के समय था और आज भी इसका उद्देश्य वही है, जो 2023 के जून महीने में पटना के एक, अणे मार्ग में तय हुआ था? ये सवाल इसलिए है क्योंकि पिछले छह महीने में कई नेता ‘इंडिया’ ब्लॉक के अस्तित्व पर सवाल उठा चुके हैं और कह चुके हैं कि इसका गठन लोकसभा चुनाव 2024 के लिए किया गया था। यानी लोकसभा चुनाव 2024 खत्म तो इसका अस्तित्व भी खत्म! संसद सत्र में जो एकजुटता दिख रही है वह भी सिर्फ मानसून सत्र के लिए है और उसे दीर्घकालिक एकजुटता नहीं समझना चाहिए।

वास्तविकता यह है कि विपक्षी गठबंधन यानी ‘इंडिया’ ब्लॉक का अब वैसे ही अस्तित्व नहीं है, जैसे यूपीए का नहीं रहा। ध्यान रहे 2004 के लोकसभा चुनाव के बाद यूपीए का गठन हुआ था। मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने थे और सोनिया गांधी यूपीए की चेयरपर्सन बनी थीं। यह गठबंधन 2014 के लोकसभा चुनाव तक बना रहा। लेकिन 2014 का चुनाव हारने के बाद यह समाप्त हो गया। सोचें, कितनी हैरानी की बात है कि 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के समय बना एनडीए आज तक चल रहा है। कई बार चुनाव हारने के बाद भी एनडीए बना रहा लेकिन एक बार चुनाव हारते ही यूपीए समाप्त हो गया। वैसे ही 2024 के चुनाव से पहले ‘इंडिया’ का गठन हुआ और चुनाव नतीजों के बाद धीरे धीरे इसका अस्तित्व समाप्त हो गया। अभी निकट भविष्य में इसके रिवाइवल की संभावना नहीं दिख रही है। फिर कभी विपक्षी गठबंधन फिर बना तो हो सकता है कि उसका नाम कुछ और हो।

वैसे भी राज्यों में ‘इंडिया’ ब्लॉक नाम से कोई गठबंधन नहीं है। महाराष्ट्र में भाजपा विरोधी गठबंधन को ‘महाविकास अघाड़ी’ कहते हैं, जिसका नेतृत्व किस पार्टी के हाथ में है यह किसी को पता नहीं है। बिहार में इसे ‘महागठबंधन’ कहते हैं, जिसका नेतृत्व राजद के हाथ में है। बिहार के पड़ोसी झारखंड में भी इसे ‘महागठबंधन’ कहते हैं, जिसका नेतृत्व झारखंड मुक्ति मोर्चा के हाथ में है। तमिलनाडु में इसका नाम ‘सेकुलर प्रोग्रेसिव एलायंस’ है, जिसकी कमान एमके स्टालिन की पार्टी डीएमके संभालती है। केरल में भारतीय जनता पार्टी एक बड़ी ताकत नहीं है। वहां कांग्रेस के नेतृत्व में एक गठबंधन है, जिसका नाम यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट यानी यूडीएफ है।

इसकी लड़ाई सीपीएम के नेतृत्व वाले लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट से होती है। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी साथ मिल कर ‘इंडिया’ ब्लॉक के बैनर तले लोकसभा का चुनाव लड़े थे। विधानसभा चुनाव में इनका गठबंधन कैसे बनता है यह देखने वाली बात होगी। यह बहुत दिलचस्प बात है कि केरल को छोड़ कर जिस प्रदेश में कांग्रेस मजबूत है वहां कोई प्रादेशिक गठबंधन नहीं है। कर्नाटक से लेकर तेलंगाना और मध्य प्रदेश से लेकर छत्तीसगढ़ और गुजरात से लेकर राजस्थान, दिल्ली, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड आदि सभी राज्यों में कांग्रेस अपने भरोसे है।

बहरहाल, लोकसभा चुनाव में भी विपक्ष का गठबंधन कोई परफेक्ट नहीं था। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी ने कोई तालमेल नहीं किया था। विपक्षी गठबंधन की पार्टियां अलग अलग लड़ी थीं तो केरल में कांग्रेस और सीपीएम के नेतृत्व वाले गठबंधन में कोई तालमेल नहीं हुआ था। यह एक टैक्टिकल पोजिशन थी, जो पार्टियों ने राज्यों की राजनीतिक वास्तविकता को ध्यान में रख कर चुनी थी। लोकसभा चुनाव के बाद इस टैक्टिकल पोजिशन में भी बिखराव हुआ है और स्ट्रैटिजिकल पोजिशन भी पहले वाली नहीं है। लोकसभा चुनाव साथ मिल कर लड़ी आम आदमी पार्टी अब गठबंधन से अलग हो गई है।

विधानसभा चुनाव के लिए ममता बनर्जी साथ नहीं आ रही हैं तो केरल में भी यूडीएफ और एलडीएफ को एक दूसरे के खिलाफ ही लड़ना है। लोकसभा और विधानसभा चुनाव में साथ रही उद्धव ठाकरे की शिव सेना के बारे में पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता है कि वह स्थानीय निकाय चुनावों में कांग्रेस के साथ है। उद्धव ठाकरे ने राज ठाकरे से हाथ मिला लिया है तो वैसे भी कांग्रेस के लिए स्पेस कम हो गया है। ऐसा लग रहा है कि महाराष्ट्र में स्थानीय निकाय का चुनाव ‘इंडिया’ ब्लॉक की पार्टियां अलग अलग लड़ेंगी।

सो, संसद में विपक्ष की एकता या राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे के बुलावे पर विपक्षी नेताओं के जुटने का मतलब यह नहीं है कि ‘इंडिया’ ब्लॉक रिवाइव हो रहा है या उसको मजबूती मिल रही है। संसद सत्र के दौरान सदन में बाहर भी मौजूदा एकजुटता मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण यानी एसआईआर को लेकर है। विपक्षी पार्टियां इस मसले पर एकजुट हैं। उन्होंने अरसे बाद सड़क पर उतर कर ताकत दिखाई, जब विपक्षी सांसदों ने निर्वाचन सदन की ओर मार्च किया। उनको लग रहा है कि मतदाता सूची में होने वाला बदलाव उनको स्थायी रूप से सत्ता से दूर कर सकता है। इसलिए सभी पार्टियां साथ आ गई हैं।

मतदाता सूची, ईवीएम और चुनाव प्रक्रिया में दूसरी कथित गड़बड़ियों के नाम पर चुनाव आयोग से लड़ने में सभी पार्टियां साथ हैं। लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि उनमें कोई चुनावी तालमेल होने जा रहा है। चुनावी तालमेल उन्हीं राज्यों में होगा, जहां पहले से है। यानी यथास्थिति बनी रहेगी। बिहार में इस साल ‘महागठबंधन’ साथ में चुनाव लड़ेगा तो अगले तमिलनाडु में भी विपक्षी गठबंधन एक होकर लड़ेगा। लेकिन इसके अलावा पश्चिम बंगाल, असम और केरल में ‘इंडिया’ ब्लॉक की पार्टियां एक दूसरे के खिलाफ लड़ेंगी। विपक्षी एकजुटता तो तब मानी जाएगी, जब पश्चिम बंगाल और असम में तृणमूल कांग्रेस, कांग्रेस और लेफ्ट के बीच और केरल में यूडीएफ व एलडीएफ के बीच कोई प्रत्यक्ष या परोक्ष गठबंधन बने। इसकी संभावना नहीं दिख रही है।

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