वस्तु व सेवा कर यानी जीएसटी के दूसरे संस्करण का डंका बज रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे ‘बचत उत्सव’ का नाम दिया है। वे हर मंच से इसका प्रचार कर रहे हैं साथ ही लोगों से स्वदेशी खरीदने की अपील कर रहे हैं। सरकार के आर्थिक सलाहकार मान रहे हैं कि अमेरिका की ओर से टैरिफ बढ़ाने का जवाब जीएसटी 2.0 है। लेकिन क्या सचमुच ऐसा है? क्या सचमुच लोगों को इसका बहुत लाभ मिल रहा है? क्या सचमुच जीएसटी 2.0 से वस्तुओं और सेवाओं के बाजार में बहुत बड़ी तेजी आने वाली है? क्या जीएसटी के दो स्लैब हटाने और रोजमर्रा की वस्तुओं पर लगने वाला टैक्स कम करने या समाप्त करने से लोगों के हाथ में जो पैसे बचेंगे उसे वे बाजार में खर्च करेंगे और इससे विकास की गति बढ़ेगी?
प्रधानमंत्री दावा कर रहे हैं कि जीएसटी में कटौती से लोगों को ढाई लाख करोड़ रुपए का फायदा होगा। क्या यह ढाई लाख करोड़ रुपया खर्च होकर बाजार में तेजी लाएगा? यह सवाल इसलिए है क्योंकि भारत के आम घरों का बचत ऐतिहासिक रूप से निचले स्तर पर है। तभी कई जानकार यह भी कह रहे हैं कि लोग खर्च करने की बजाय पैसा बचाएंगे। हालांकि जीएसटी का नया दौर शुरू होने के बाद पहले कुछ दिनों में तो खरीदारी में तेजी दिख रही है। लेकिन उसका बाजार पर क्या असर होता है यह दो या तीन तिमाही के बाद पता चलेगा। अभी तो ऐसा लग रहा है कि लाल किले से 15 अगस्त को प्रधानमंत्री की घोषणा के बाद लोगों ने जो खरीदारी रोक दी थी वह लोग जीएसटी छूट के बाद खरीदारी कर रहे हैं। वैसे भी त्योहारों में खरीदारी ज्यादा होती है।
इस तिमाही यानी जुलाई से सितंबर और फिर अक्टूबर से दिसंबर के आंकड़ों से पता चलेगा कि इसका कितना असर हुआ है। ‘बचत उत्सव’ के बीच पिछली तिमाही के औद्योगिक उत्पादन यानी आईआईपी के विकास दर का चार फीसदी का आंकड़ा आया है, जो पहले से कम है। इसमें कितनी बढ़ोतरी होती है उससे अंदाजा लगेगा कि मांग कितनी बढ़ी है। इसके अलावा त्योहारों का सीजन खत्म होने के बाद बाजार में कितनी मांग बनी रहती है, इस पर भी बहुत कुछ निर्भर करेगा। आर्थिकी के जानकार मान रहे हैं कि लाल किले से प्रधानमंत्री की घोषणा के बाद लोगों ने खरीदारी रोक दी थी। गणेश उत्सव और ओणम जैसे त्योहारों के दौरान पहले जैसी खरीदारी नहीं हुई। करीब सवा महीने के विराम के बाद खरीदार बाजार में लौटे हैं इसलिए अभी तेजी दिख रही है।
बहरहाल, जीएसटी का नया संस्करण लागू होने के एक हफ्ते बाद कराए गए एक सर्वेक्षण के मुताबिक बड़ी संख्या में लोगों का कहना है कि उन्हें जीएसटी कटौती का पूरा लाभ नहीं मिल रहा है। उनका कहना है कि दुकानदार ज्यादातर उत्पादों पर पुरानी कीमत वसूल रहे हैं। यही कारण है कि एक हफ्ते में ही कई हजार शिकायतें दर्ज कराई गई हैं। लोकलसर्कल्स की ओर से देश के 323 जिलों में यह सर्वे कराया गया, जिसमें 27 हजार के करीब लोग शामिल हुए।
हिंदी के अखबार ‘दैनिक भास्कर’ में प्रकाशित इस सर्वेक्षण के मुताबिक सिर्फ 10 फीसदी ग्राहकों ने कहा कि उनको पैकेज्ड फूड पर टैक्स कटौती का लाभ मिला है, जबकि इस पर सरकार ने टैक्स 18 से घटा कर पांच फीसदी कर दिया है। इसी तरह 62 फीसदी लोगों ने कहा कि उनको दवाओं पर हुई कटौती का लाभ नहीं मिला है। व्हाइट गुड्स और इलेक्ट्रोनिक्स आइटम पर 34 फीसदी लोगों ने पूरा लाभ मिलने की बात कही तो इतने ही लोगों ने कहा कि कोई लाभ नहीं मिला है। वाहन खरीद करने वाले लोगों को सबसे ज्यादा लाभ मिला है। उसमें सबसे ज्यादा 76 फीसदी लोग संतुष्ट हैं कि उनको कटौती का लाभ मिला है। यह वाहनों की बिक्री में भी दिख रहा है।
इस सर्वे से एक खास बात यह भी उभर कर आई है कि ई कॉमर्स कंपनियां ग्राहकों को लाभ नहीं दे रही हैं और पुरानी कीमत पर ही अपने उत्पाद बेच रही हैं। गौरतलब है कि महानगरों और दूसरी व तीसरी श्रेणी के शहरों में लोग ई कॉमर्स कंपनियों जैसे ब्लिंकिट, अमेजन, बिग बास्केट आदि पर निर्भर हो गए हैं। ये कंपनियां ग्राहकों को पूरा लाभ नहीं दे रही हैं। तभी सबसे ज्यादा शिकायतें इनके खिलाफ दर्ज कराई गई हैं।
हालांकि यह इकलौती समस्या नहीं है, जो जीएसटी के दूसरे संस्करण के लागू होने के बाद दिख रही है। एक समस्या यह भी है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से लाल किले से टैक्स कटौती की घोषणा किए जाने के बाद कंपनियों ने अपने उत्पादों की कीमत में बदलाव कर दिया। उन्होंने जीएसटी 2.0 लागू होने से पहले ही उत्पादों की कीमत बढ़ा दी, जिससे टैक्स कटौती के बाद भी ग्राहकों को पूरा लाभ नहीं मिल रहा है। खाने पीने की चीजों में यह समस्या ज्यादा दिख रही है। बाजार का सर्वेक्षण करने वाली एजेंसियों ने बताया है कि दूध से लेकर मक्खन की टिकिया और ड्राई फ्रूट्स तक कई उत्पाद हैं, जिन पर टैक्स कटौती से पहले 10 फीसदी दाम बढ़ा दिए गए। बड़ी कंपनियों ने भले यह काम नहीं किया लेकिन बड़ी कंपनियों के ब्रांडेड उत्पादों के मुकाबले छोटी कंपनियों का बाजार ज्यादा बड़ा है। उन्होंने 10 फीसदी दाम बढ़ा दिए और बाद में जब खाने पीने की चीजों पर टैक्स 12 से घटा कर पांच फीसदी किया गया तो अपनी कीमत में सात फीसदी कटौती कर दी। इस तरह कंपनियां पहले के मुकाबले तीन फीसदी ज्यादा दाम पर उत्पाद बेच रही हैं।
इसके अलावा एक समस्या तैयार सामान पर टैक्स कम करने और वह सामान तैयार करने में इस्तेमाल होने वाले कच्चे उत्पाद पर टैक्स बढ़ा देने की वजह से खड़ी हो रही है। ऐसा कई उत्पादों के मामले में हो रहा है। कपड़ा इस तरह का एक उत्पाद है। कपड़ा बनाने के लिए जिस धागे या यार्न का इस्तेमाल होता है उस पर सरकार ने टैक्स 12 फीसदी से घटा कर पांच फीसदी कर दिया लेकिन धागा तैयार करने में इस्तेमाल होने वाले उत्पादों पर टैक्स 12 से बढ़ा कर 18 फीसदी कर दिया। तभी कंपनियों के सामने कीमत कम करने में समस्या आ रही है। ऐसा ही एक मामला नोटबुक यानी कॉपियों का है। सरकार ने नोटबुक पर टैक्स घटा कर शून्य कर दिया लेकिन उसे तैयार करने में इस्तेमाल होने वाले कागज पर टैक्स बढ़ा कर 12 से 18 फीसदी कर दिया। नोटबुक पर जीरो टैक्स का मतलब है कि निर्माताओं को इनपुट टैक्स क्रेडिट नहीं मिलेगा। दूसरी ओर उनको कागज पर ज्यादा टैक्स देना होगा। तभी नोटबुक सस्ती होने की बजाय महंगी हो जाएगी।
इसी तरह दवाओं पर सरकार ने टैक्स कम कर दिया है कि लेकिन एपीआई यानी दवा निर्माण में इस्तेमाल होने वाले कच्चे माल पर टैक्स 12 से बढ़ा कर 18 फीसदी कर दिया है। इसका असर दवाओं की कीमत पर दिखेगा। ऐसे ही सरकार ने जॉब वर्क पर टैक्स 12 से बढ़ा कर 18 फीसदी कर दिया है। इसका मतलब है कि अगर कोई छोटी कंपनी अपना कच्चा माल बड़ी फैक्टरी में देकर सामान तैयार कराती है तो उसे ज्यादा टैक्स देना पड़ेगा। इसका असर तैयार उत्पादों की कीमत पर पड़ेगा। जीएसटी 2.0 में सरकार ने माल ढुलाई पर टैक्स 12 से बढ़ा कर 18 फीसदी कर दिया है। चूंकि ट्रांसपोर्टेशन हर उत्पाद से जुड़ा हुआ है इसलिए इस बढ़ोतरी का असर रोजमर्रा की जरुरत की हर चीज की कीमत पर पड़ेगा। कच्चे माल की ढुलाई से लेकर फैक्टरी में तैयार माल के थोक विक्रेता तक पहुंचने और थोक विक्रेता के गोदाम से निकल कर खुदरा व्यापारी तक माल पहुंचने का खर्च बढ़ जाएगा। इसका असर भी कीमत पर पड़ेगा। तभी थोड़ा इंतजार करने की जरुरत है। जब प्रचार का गर्दो गुबार थम जाएगा और आंकड़े आएंगे तब पता चलेगा कि इसका असल में कितना असर हुआ।