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भारत आत्मनिर्भरता की और है!

New Delhi, Sep 26 (ANI): Prime Minister Narendra Modi speaks during virtual launch of Bihar's Mukhyamantri Mahila Rojgar Yojana, in New Delhi on Friday. (DPR PMO/ANI Photo)

आज का भारत केवल बढ़ नहीं रहा, बल्कि शेष दुनिया को दिशा भी दे रहा है। यहां परंपरा और आधुनिकता का संगम है, जहां अर्थव्यवस्था केवल लाभ का नहीं, बल्कि लोककल्याण का माध्यम है। यह वही भारत है, जो अब दूसरों की शर्तों पर नहीं, बल्कि अपने हितों और स्वाभिमान के लिए दुनिया में पहचान स्थापित कर रहा है।

बीते एक माह से देश उत्सवमय है। यह केवल सांस्कृतिक आनंद का प्रतीक नहीं, बल्कि देश की स्वस्थ आर्थिक धमनियों का भी सूचक है। बाजार की रौनक बताती है कि भारतीय अर्थव्यवस्था— राहुल गांधी और डोनाल्ड ट्रंप की भाषा में— ‘मृत’ नहीं, बल्कि पहले से कहीं अधिक सशक्त, गतिशील और सामर्थ्यवान हो चुकी है। संक्षेप में कहें, तो कालजयी परंपरा और आधुनिक प्रगति— दोनों आज हाथों में हाथ डाले साथ चल रहे हैं। शारदीय नवरात्र के पहले दिन से लागू हुए ‘नेक्स्ट-जेन जीएसटी सुधार’ ने मानो देश की अर्थव्यवस्था में चमक बिखेर दी है। जो भारत 1970-80 के दशक में बाह्य वामपंथ प्रेरित समाजवाद के मकड़जाल में उलझा हुआ था— जिसमें आम नागरिक को दूध, चीनी जैसी रोजमर्रा की चीजों के लिए लंबी कतारों में खड़ा होना पड़ता था, सीमेंट, स्कूटर या टेलीफोन के लिए वर्षों इंतजार करना पड़ता था,  आयकर की दर 97 प्रतिशत तक थी और आर्थिक स्वतंत्रता लगभग शून्य— वही आज न सिर्फ उस नारकीय दौर से बहुत आगे निकल आया है, साथ ही अंतरराष्ट्रीय चुनौतियों के बीच भी अपनी स्थिरता और गति को बनाए रखे हुए है।

ट्रंप शासित अमेरिका ने भारत पर 50% का टैरिफ थोपा हुआ है। ‘ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव’ (जीटीआरआई) के अनुसार, सितंबर 2025 में अमेरिका में भारतीय निर्यात 5.5 अरब डॉलर रहा, जोकि अगस्त की तुलना में 20.3% कम है। ट्रंप प्रशासन ने भारत पर भारी टैरिफ लगाने के पीछे रूस-यूक्रेन युद्ध को ‘बढ़ावा’ देने का कुतर्क दिया है, जिसे लेकर वे अपनों के ही निशाने पर है। भारत ने रूसी तेल की खरीद पर राष्ट्रहितों को सर्वोपरि रखा है। इस पृष्ठभूमि में विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने भारत की अनुमानित विकास दर को बढ़ाकर क्रमशः 6.5% और 6.6% कर दिया है।

इससे पहले जनवरी–मार्च 2025 तिमाही में भारत की जीडीपी 7.4%, तो अप्रैल-जून में अप्रत्याशित रूप से 7.8% की दर से बढ़ी थी। नवंबर 2024 में जब ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति बने, तो उन्होंने अपने देश के सभी व्यापारिक साझेदारों पर ऊंचे शुल्क लगाने की घोषणा कर दी। तब विश्व बैंक और आईएमएफ ने भी भारतीय विकास दर का अनुमान घटा दिया था। यहां तक तब देश के कई अर्थशास्त्रियों ने भारत में मंदी आने का संकेत दे दिया था। लेकिन इसके उलट भारत की अर्थव्यवस्था ने तीव्र रफ्तार पकड़ी, जिसका मुख्य कारण मजबूत निर्यात के साथ निजी खपत और सरकारी खर्च में वृद्धि है। बीते सप्ताह वाणिज्य मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़े के अनुसार, अप्रैल-सितंबर 2025 के दौरान कुल निर्यात (वस्तु-सेवा) 413 बिलियन अमेरिकी डॉलर होने का अनुमान है, जबकि अप्रैल-सितंबर 2024 में यह लगभग 396 बिलियन अमेरिकी डॉलर था। स्पष्ट है कि अंतराष्ट्रीय चुनौतियों के बावजूद मौजूदा वित्तीय वर्ष में सामूल निर्यात 4.45% तक बढ़ गया है।

वित्तवर्ष 2025 में भारत की जीडीपी में निजी खपत का हिस्सा बढ़कर 61.4 प्रतिशत हो गया, जबकि वित्त वर्ष 2024 में यह 60.2 प्रतिशत था। यह बीते दो दशकों की सबसे ऊंची दर है, जिसमें देश की आर्थिक गतिविधियों और लोगों की क्रयशक्ति का महत्वपूर्ण संकेत छिपा है। अभी भारतीय आर्थिकी किस स्थिति में है, यह इस वर्ष धनतेरस के दिन चारपहिया वाहनों की रिकॉर्ड बिक्री से स्पष्ट है। सिर्फ 24 घंटों में देशभर में 1 लाख से ज्यादा चारपहिया वाहन ग्राहकों को वितरित कर दी गईं। इनमें सबसे ज्यादा बिक्री मारुति सुजुकी की रही, जिसने अकेले 51,000 से अधिक गाड़ियां दीं। इसके अतिरिक्त, टाटा और हुंडई मोटर ने भी शानदार प्रदर्शन करते हुए क्रमश: 25,000 और 14,000 वाहनों को ग्राहकों तक पहुंचा दिया। बात अगर सितंबर माह की करें, तो देश में लगभग पौने चार लाख छोटी-बड़ी गाड़ियों की बिक्री हुई थी, जोकि पिछले साल की तुलना में 4.4% अधिक है। यह वही भारत है, जहां बकौल ‘सोसायटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स’ रिपोर्ट— 1970 के दशक में सालभर में केवल 32,000 यात्री वाहन बिका करते थे। इसी तरह, हवाई यात्रा करने वालों की संख्या वर्ष 2014 के 11 करोड़ से बढ़कर वर्ष 2025 में 25 करोड़ तक पहुंच गई है। यह सामाजिक गतिशीलता और नागरिक समृद्धि का प्रतीक है।

भारत का यह आर्थिक उत्थान किसी छलावे या सीमित क्षेत्रीय वृद्धि का परिणाम नहीं है। यह समग्र विकास का परिचायक है— जिसमें उद्योग, विनिर्माण, कृषि, सेवा, ऊर्जा और बुनियादी ढांचा— सभी क्षेत्रों का महत्वपूर्ण योगदान है। यही कारण है कि आज गोल्डमैन सैक्स रूपी वैश्विक आर्थिक विशेषज्ञ भारत को न केवल स्थिर अर्थव्यवस्था मानते हैं, बल्कि उसे आने वाले दशकों में वैश्विक अर्थव्यवस्था की दिशा तय करने वाली शक्ति के रूप में देखते हैं। यह परिवर्तन अचानक नहीं हुआ है।

दरअसल, वर्तमान भारतीय नेतृत्व उस विदेशी और औपनिवेशिक मार्क्स-मैकॉले मानसिकता से मुक्त है, जिसके मानसपुत्रों ने 1947 से कई दशकों तक आर्थिक नीतियों पर नियंत्रण रखकर देश को गरीबी, भुखमरी और संसाधनों की कमी की ओर धकेल दिया था। निजी उद्यमिता को ‘अपराध’ जैसा बना दिया, तो गरीबी केवल ‘चुनावी राजनीति’ का मुद्दा। 1978 में वामपंथी अर्थशास्त्री प्रो। राजकृष्ण ने ‘हिंदू रेट ऑफ ग्रोथ’ कहकर इस आर्थिक संकट के लिए भारत की सांस्कृतिक परंपराओं को जिम्मेदार ठहराया। बाद में पॉल बैरॉच और एंगस मेडिसन रूपी विश्वसनीय अंतरराष्ट्रीय अर्थशास्त्रियों ने यह प्रमाणित किया कि भारत की सनातन संस्कृति सदियों से आर्थिक स्थिरता और सामाजिक संतुलन की मूल प्रेरणा रही है।

वर्ष 1991 में पी.वी. नरसिम्हा राव सरकार द्वारा शुरू किए गए आर्थिक उदारीकरण ने दशकों से जकड़ी भारतीय प्रतिभा को खुलकर सामने आने का अवसर दिया। इसे अटल बिहारी वाजपेयी सरकार (1998–2004) ने नई दिशा दी। लेकिन 2004-14 के बीच भ्रष्टाचार, घोटालों और लकवाग्रस्त शासन ने भारत की प्रगति को फिर से सुस्त कर दिया। परंतु नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में नया युग आरंभ हुआ— जहां पारदर्शी शासन, जनहित योजनाओं का भ्रष्टाचार-मुक्त निष्पादन, आत्मनिर्भरता रूपी समावेशी नीति ने अर्थव्यवस्था को नई, स्थायी और सकारात्मक ऊर्जा प्रदान की है।

आज का भारत केवल बढ़ नहीं रहा, बल्कि शेष दुनिया को दिशा भी दे रहा है। यहां परंपरा और आधुनिकता का संगम है, जहां अर्थव्यवस्था केवल लाभ का नहीं, बल्कि लोककल्याण का माध्यम है। यह वही भारत है, जो अब दूसरों की शर्तों पर नहीं, बल्कि अपने हितों और स्वाभिमान के लिए दुनिया में पहचान स्थापित कर रहा है।

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