दिल्ली में लगभग 62 लाख वाहन इस नीति से प्रभावित होने वाले थे, जिनमें कार, दोपहिया वाहन, ट्रक और यहां तक कि विंटेज वाहन भी शामिल थे। कई लोगों के लिए, ये वाहन केवल परिवहन का साधन नहीं, बल्कि उनकी आर्थिक स्थिरता का आधार थे। … दिल्ली की हवा को साफ करने का लक्ष्य तभी सार्थक होगा, जब पर्यावरण और जनता के हितों के बीच संतुलन स्थापित किया जाए।
दिल्ली, भारत की राजधानी, जो अपनी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक समृद्धि के साथ-साथ वायु प्रदूषण की गंभीर समस्या के लिए भी जानी जाती है, एक बार फिर चर्चा में है। इस बार चर्चा का विषय है दिल्ली सरकार का पुराने डीजल और पेट्रोल वाहनों पर ईंधन आपूर्ति रोकने और उनकी जब्ती का फैसला। इस नीति का उद्देश्य वायु प्रदूषण को कम करना था, लेकिन इसके लागू होने और फिर स्थगित होने की प्रक्रिया ने जनता के बीच भ्रम और असंतोष को जन्म दिया।
क्या यह फैसला जल्दबाजी में लिया गया या जन दबाव का परिणाम था? क्या सरकारें ऐसे फ़ैसले बिना सोचे-समझे लेती हैं?
दिल्ली सरकार ने 1 जुलाई 2025 से 10 वर्ष से अधिक पुराने डीजल वाहनों और 15 वर्ष से अधिक पुराने पेट्रोल वाहनों को ईंधन देने पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया। यह निर्णय कमीशन फॉर एयर क्वालिटी मैनेजमेंट (CAQM) के निर्देश पर आधारित था, जो 2014 के नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) और 2018 के सुप्रीम कोर्ट के आदेशों से प्रेरित था। इन आदेशों में दिल्ली में पुराने वाहनों के उपयोग और सार्वजनिक स्थानों पर पार्किंग पर रोक प्लेट रिकग्निशन कैमरों का उपयोग कर वाहनों की उम्र की पहचान की जानी थी, और जो वाहन ‘एंड ऑफ लाइफ’ श्रेणी में आते, उन्हें ईंधन देने से मना किया जाता। साथ ही, उल्लंघन करने वाले वाहनों को जब्त करने और स्क्रैप करने का भी प्रावधान था।
इस नीति का प्राथमिक उद्देश्य दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण को कम करना था। आंकड़ों के अनुसार, दिल्ली में वाहनों से होने वाला प्रदूषण स्थानीय प्रदूषण का लगभग 50% हिस्सा है। पुराने वाहन, जो आधुनिक उत्सर्जन मानकों का पालन नहीं करते, PM2.5 और अन्य हानिकारक प्रदूषकों के प्रमुख स्रोत हैं। इस नीति को लागू करने के पीछे पर्यावरण संरक्षण और सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार का लक्ष्य था।
हालांकि इस नीति का उद्देश्य सराहनीय था, लेकिन इसके कार्यान्वयन ने जनता के बीच व्यापक भ्रम और असंतोष पैदा किया। 1 जुलाई को नीति लागू होने के कुछ ही दिनों बाद, पेट्रोल पंपों पर पुराने वाहनों को ईंधन देने से मना किया जाने लगा और कुछ मामलों में वाहनों को जब्त भी किया गया। इससे मध्यम वर्ग और निम्न-मध्यम वर्ग के लोगों में खलबली मच गई, जो अपनी आजीविका के लिए इन पुराने वाहनों पर निर्भर हैं।
दिल्ली में लगभग 62 लाख वाहन इस नीति से प्रभावित होने वाले थे, जिनमें कार, दोपहिया वाहन, ट्रक और यहां तक कि विंटेज वाहन भी शामिल थे। कई लोगों के लिए, ये वाहन केवल परिवहन का साधन नहीं, बल्कि उनकी आर्थिक स्थिरता का आधार थे। उदाहरण के लिए, छोटे व्यापारी, डिलीवरी कर्मचारी और ऑटो-रिक्शा चालक जैसे लोग इन वाहनों पर निर्भर हैं। अचानक ईंधन की आपूर्ति बंद होने से उनकी आजीविका पर संकट मंडराने लगा।
इसके अलावा, नीति के कार्यान्वयन में तकनीकी खामियां भी सामने आईं। ANPR कैमरों की स्थापना और उनके ्लेट्स की पहचान में असमर्थता। इन तकनीकी समस्याओं ने नीति को और जटिल बना दिया।
पर्यावरण के दृष्टिकोण से, पुराने वाहनों पर प्रतिबंध लगाना एक तार्किक कदम था। लेकिन इसके साथ ही यह भी तर्क दिया जा रहा था कि यदि कोई पुराना वाहन मौजूदा प्रदूषण के मानकों में ‘पास’ पाया जाता है, उसके पास वैध प्रदूषण प्रमाण पत्र है तो वह प्रदूषण नहीं कर रहा। तो ऐसी स्थित में इस श्रेणी की गाड़ी को प्रतिबंधित क्यों किया जाए?
नीति के लागू होने के कुछ ही दिनों बाद, 3 जुलाई को दिल्ली सरकार ने इसे स्थगित कर दिया और इसे 1 नवंबर 2025 तक टाल दिया। इस फैसले के पीछे जनता का तीव्र विरोध और तकनीकी चुनौतियां प्रमुख कारण थे। दिल्ली के पर्यावरण मंत्री मंजिंदर सिंह सिरसा ने CAQM को पत्र लिखकर इस नीति को “समय से पहले और संभावित रूप से प्रतिकूल” बताया, और तकनीकी और बुनियादी ढांचे की कमियों का हवाला दिया। इसके अलावा, एक सर्वेक्षण में 79% दिल्लीवासियों ने इस नीति का विरोध किया, जिससे यह स्पष्ट होता है कि जन दबाव ने सरकार को पीछे हटने के लिए मजबूर किया। पेट्रोल डीलर्स एसोसिएशन ने भी दिल्ली हाई कोर्ट में इस नीति की व्यवहार्यता को चुनौती दी, जिसने भ्रम को और बढ़ाया।
क्या यह फैसला जल्दबाजी में लिया गया? निश्चित रूप से, नीति के कार्यान्वयन से पहले पर्याप्त जन जागरूकता अभियान, वैकल्पिक परिवहन समाधान और स्क्रैपिंग सुविधाओं की कमी ने इसे जल्दबाजी का फैसला साबित किया। साथ ही, तकनीकी बुनियादी ढांचे की अपर्याप्तता ने इसकी विफलता को और उजागर किया।
दिल्ली सरकार का पुराने वाहनों पर ईंधन प्रतिबंध और जब्ती का फैसला पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक साहसिक कदम था, लेकिन इसकी खराब योजना और कार्यान्वयन ने इसे जनता के लिए परेशानी का सबब बना दिया। पर्यावरण विशेषज्ञों का मानना है कि प्रदूषण नियंत्रण के लिए दीर्घकालिक समाधान जैसे इलेक्ट्रिक और हाइब्रिड वाहनों को बढ़ावा देना, सार्वजनिक परिवहन को मजबूत करना और उत्सर्जन-आधारित नीतियां अपनाना अधिक प्रभावी हो सकता है।
सरकार ने इस नीति को 1 नवंबर तक स्थगित कर जनता को राहत तो अवश्य दी है, लेकिन यह स्पष्ट है कि भविष्य में ऐसी नीतियों को लागू करने से पहले बेहतर योजना, जन जागरूकता और बुनियादी ढांचे की जरूरत है। दिल्ली की हवा को साफ करने का लक्ष्य तभी सार्थक होगा, जब पर्यावरण और जनता के हितों के बीच संतुलन स्थापित किया जाए।