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स्वच्छ यमुना से छठ व्रतियों में उमंग

पूर्वांचली समुदाय की सांस्कृतिक समृद्धि का पर्व छठ पर्व अब दिल्ली का पर्व हो चुका है, अब यमुना का पर्व हो चुका है। हर टेंपो, ऑटो, कार, गाड़ी में चलते चलते आपको छठ पर्व के भोजपुरी, मैथिली लोक धुन के गीत सुनाई पड़ जाएंगे. अब तो दिल्ली के घरों से भी ठेकुआ की सुगंध निकलती है।

सूर्योपासना के छठ पर्व पर विशेष

दिल्ली में पूर्वांचल के लोगों की संख्या करीब एक तिहाई है। छठ पूजा उनके लिए सबसे बड़ा त्योहार है। हर वर्ष यमुना घाटों की सफाई एक बड़ा मुद्दा रहता है। हालांकि, पहले की सरकारें इस वादे को पूरा करने में विफल रही थीं, लेकिन इस बार भाजपा सरकार ने अपने वादे को निभाते हुए यमुना जी के घाटों की सफाई सुनिश्चित की है। यमुना के साफ पानी को देखकर एक श्रद्धालु ने कहा कि पहली बार लग रहा है की सनातन की सरकार है। सालों से छठ व्रतियों को जिन प्रदूषित घाटों पर पूजा करनी पड़ती थी, वहां इस साल भाजपा सरकार के प्रयासों से सुधार स्पष्ट दिख रहा है।

पूर्वांचल समाज की सांस्कृतिक समृद्धि का प्रतिबिंब है छठ। महापर्व छठ महापर्व यानी सूर्य षष्ठी व्रत यानि सूर्योपासना का महान त्योहार यूं तो बिहार की धरती से निकला एक महान सनातनी सांस्कृतिक एवं धार्मिक आयोजन है, मगर अब यह पर्व सिर्फ बिहार का पर्व नहीं रह गया है। अब तो भारत वर्ष के कोने कोने के अलावा पूरी दुनिया के कई देशों में, जहां पुरबिया सनातनी समाज रहता है वहां यह सांस्कृतिक पर्व हर्षोल्लास से मनाया जाता है।

एक सदी पहले जिन देशों में पुरबिया प्रवासी गए जैसे मॉरीशस, फिजी, गुयाना, त्रिनिदाद आदि देशों के अलावा पश्चिम और पूरब के विकसित देशों जैसे अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, जापान सहित दक्षिण अफ्रीका आदि देशों में पूरी श्रद्धा के साथ छठ का महापर्व मनाया जाता है। अगर भारत के बात करें तो राजधानी दिल्ली और देश की वित्तीय राजधानी मुंबई सहित उत्तर से दक्षिण और पूरब से पश्चिम तक यह पर्व मनाया जाता है। पंजाब के शहरों में छठ की धूम होती है तो देश के आईटी कैपिटल बेंगलुरू में भी वैसी ही धूम होती है। देश भर में तीन दिन तक धार्मिक आस्था के साथ साथ पूर्वांचल की संस्कृति और प्रकृति से एकाकार होने की तस्वीरें आती रहती हैं। यह देख, सुन कर एक पूर्वांचली होने के नाते मन हर्षित हो जाता है।

बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश, झारखंड तो इस पर्व का मूल स्थान है ही मगर जैसे जैसे प्रवासी पूर्वांचली समुदाय राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में अपनी जड़े स्थापित करता गया वैसे वैसे अब यह त्योहार हर दिल्ली वासी को गर्व की अनुभूति करवाता है। आज से तीन, चार दशक पहले से ही दिल्ली में पूर्वांचली समुदाय की आबादी तेजी से बढ़ने लगी थी, रोजी कमाने के लिए बिहार, यूपी झारखंड की जन्मभूमि को छोड़कर अपने परिवार का भरण पोषण करने के उद्देश्य से दिल्ली आए इस श्रम साधक समाज ने दिल्ली एनसीआर गुड़गांव, फरीदाबाद, गाजियाबाद सहित दिल्ली के पॉश इलाकों में भी अपनी जड़े जमा लीं है। सिर्फ़ मजदूरी करने के लिए दिल्ली आया हुआ पूर्वांचली समाज अब तो दिल्ली की व्यापारिक, सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक गतिविधियों में भी महत्वपूर्ण और सम्मानजनक स्थिति को प्राप्त कर चुका है। अनेकों अपमानजनक टिप्पणी और आर्थिक संघर्ष के बीच पूर्वांचली समाज ने दिल्ली वालों को सूर्योपासना के महान पर्व से परिचित कराया, धीरे धीरे यमुना जी के घाटों की रौनक बढ़ने लगी और छठ पर्व पर वजीराबाद से लेकर कालिंदी कुंज हर जगह आस्था का मेला देखकर दिल्ली की सांस्कृतिक समृद्धि निखर कर चमकने लगी।

यमुना घाटों के अलावा दिल्ली में लगभग पांच से सात हजार छोटे छोटे समाज निर्मित घाटों पर छठ के गीत गूंज उठते हैं। आज सरकारी आंकड़ों के हिसाब से छोटे बड़े लगभग 11 सौ छठ घाटों पर छठ पूजा की जाती है. लोक जागरण के इस महान उपक्रम को देखकर दिल्ली का अनभिज्ञ समाज पहले तो कौतुक दृष्टि से निहारता रहा मगर जैसे जैसे छठ पर्व पर पूर्वांचली समाज स्त्री, पुरुष, बाल, वृद्ध का रेला घाटों की ओर निकाला पूरी दिल्ली के सभी समाज के लोग आस्था के इस महान लोक जागरण के आगे नतमस्तक होते गए। धीरे धीरे सभी राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक संगठन भी छठ पूजा और सूर्य आराधना के इस पर्व में सम्मिलित होते गए। यही हमारी सांस्कृतिक समृद्धि का द्योतक है।

आर्थिक रूप से श्रमिक पूर्वांचली समुदाय ने अपनी सांस्कृतिक अमीरी से सबको समाहित कर लिया। सैकड़ों पूर्वांचली समाज सेवियों ने अपने छठ मईया और पूर्वांचली अस्मिता के लिए संघर्ष किया है, जिसका परिणाम यह हुआ कि तत्कालीन मुख्यमंत्री श्रीमती शीला दीक्षित की सरकार ने छठ पर्व पर स्वैछिक अवकाश की घोषणा की। आज तो किसी भी पार्टी की सरकार हो कांग्रेस, आप या भाजपा का नेतृत्व सभी छठ पूजा और घाटों की तैयारी में सम्मिलित होते हैं।
लूट खसोट, भ्रष्टाचार पर विवाद हो सकता है। राजनीतिक आरोप प्रत्यारोप हो सकता है मगर छठ पर्व की गरिमा, गौरव, आस्था, स्वच्छता, शुचिता, से जो हमारी गौरवशाली छवि दिल्ली में बनी है उसमें छठ मईया की अपरंपार कृपा है।

आज दिल्ली के गली गली में, आजादपुर, केशोपुर, गाजीपुर सहित सभी मंडियों में छठ पर्व से संबंधित सामान सूप, दउरा, गन्ना, हल्दी, सुथनी, सब कुछ मिलता है। हर टेंपो, ऑटो, कार, गाड़ी में चलते चलते आपको छठ पर्व के भोजपुरी, मैथिली लोक धुन के गीत सुनाई पड़ जाएंगे. अब तो दिल्ली के घरों से भी ठेकुआ की सुगंध निकलती है। पूर्वांचली समुदाय की सांस्कृतिक समृद्धि का पर्व छठ पर्व अब दिल्ली का पर्व हो चुका है, अब यमुना का पर्व हो चुका है। आइए अपनी महान संस्कृति की रक्षा करें अपने आने वाली पीढ़ियों को इस गौरवशाली परंपरा से अवगत कराएं। (लेखक विश्व भोजपुरी सम्मेलन संस्था के राष्ट्रीय अध्यक्ष और मैथिली, भोजपुरी अकादमी दिल्ली के पूर्व उपाध्यक्ष, सामाजिक, सांस्कृतिक विषयों के विचारक हैं।)

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