Naya India-Hindi News, Latest Hindi News, Breaking News, Hindi Samachar

हॉलीवुड जलकर हो रहा ख़ाक

Los Angeles Fires

Los Angeles Fires : जलवायु परिवर्तन पर नज़र रखने वाले यूएन के वैज्ञानिकों ने अक्तूबर 2018 में चेतावनी दी थी कि अगर पर्यावरण को बचाने के लिए कड़े कदम नहीं उठाए गए तो बढ़ते तापमान की वजह से 2040 तक भयंकर बाढ़, सूखा, अकाल और जंगल की आग का सामना करना पड़ सकता है। दुनिया का कोई भी देश हो क्या कोई इन वैज्ञानिक शोधकर्ताओं और विशेषज्ञों की सलाह को कभी सुनेगा?

also read: कड़ाके की ठंड के बीच शुरू हुआ महाकुंभ, लाखों श्रद्धालुओं ने लगाई डुबकी

आज से 50 साल पहले इस्कॉन के संस्थापक आचार्य स्वामी प्रभुपाद कार में कैलिफ़ोर्निया हाईवे पर जा रहे थे। खिड़की के बाहर दूर से बहुमंजलीय अट्टालिकाओं की क़तार दिखाई दे रही थी।

श्री प्रभुपाद के मुँह से अचानक निकला कि इन लोगों ने रावण की सोने की लंका बनाकर खड़ी कर दी है जो एक दिन ख़ाक हो जाएगी।

और अब जिस तेज़ी से लॉस एंजल्स का हॉलीवुड भयावह आग की चपेट में लगातार जल रहा रहा है तो  उससे 50 वर्ष पूर्व की गई एक सिद्ध संत की भविष्यवाणी क्या बताती हुई है?

कैलिफ़ॉर्निया राज्य के शहर लॉस एंजेलिस के जंगलों में फैली आग भयावह हैI अब तक इस आग की चपेट में छह जंगल आ चुके हैं और इसका दायरा निरंतर बढ़ता जा रहा है।

आग की वजह से अब तक 16 लोगों की मौत हो चुकी है। लगभग दो लाख से अधिक लोगों को अपना घर छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा है। तेज़ हवा राहत कार्यों में बाधक बन रही है।

चार लाख से अधिक घरों की बिजली कटी हुई है। कैलिफ़ॉर्निया के इतिहास में इसे सबसे विनाशकारी हादसा बताया जा रहा है। शुरू में महज़ 10 एकड़ के इलाके में लगी थी।

वह कुछ ही दिनों में 17,200 एकड़ में फैल गई। पूरे शहर में धुएँ के बादल छाए हुए हैं। इस भयावह आग से अभी तक लगभग 135-150 अरब डॉलर (12 हज़ार अरब रुपयों) का नुक़सान अनुमानित है।

कमला हैरिस का घर भी ख़तरे में

हॉलीवुड की मशहूर अभिनेत्री पेरिस हिल्टन के मकान की तस्वीरें सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रही हैं।

मालिबू नगर में समुद्र के किनारे बने फ़िल्मी सितारों के खूबसूरत घर मलबे में तब्दील हो चुके हैं और उपपराष्ट्रपति कमला हैरिस का घर भी ख़तरे में है।

उनके घरों को भी ख़ाली कराया गया है। राजनीति, उद्योग और सिने जगत की कई जानी-मानी हस्तियों के आलीशान मकानों को ख़ाली करने के आदेश हुए हैं।

उल्लेखनीय है कि लॉस एंजेलिस अमेरिका की सबसे ज्यादा आबादी वाली काउंटी है। यहां एक करोड़ से ज्यादा लोग रहते हैं। कैलिफोर्निया में कई सालों से सूखे के हालात हैं।

इलाके में नमी की कमी है। इसके अलावा यह राज्य अमेरिका के दूसरे इलाकों की तुलना में काफी गर्म है। यही वजह है कि यहां पर गर्मी के मौसम में अक्सर जंगलों में आग लग जाती है।

यह सिलसिला बारिश का मौसम आने तक जारी रहता है। बीते कुछ सालों से हर मौसम में आग लगने की घटनाएं बढ़ी हैं।

1933 में लॉस एंजिलिस में सबसे बड़ी आग लगी 

पिछले 50 सालों में कैलिफोर्निया के जंगलों में 78 से ज्यादा बार आग लग चुकी है। कैलिफोर्निया में जंगलों के पास रिहायशी इलाके बढ़े हैं। ऐसे में आग लगने पर नुकसान ज्यादा होता है।

1933 में लॉस एंजिलिस के ग्रिफिथ पार्क में लगी आग कैलिफोर्निया की सबसे बड़ी आग थी। इसने करीब 83 हजार एकड़ के इलाके को अपनी चपेट में ले लिया था। करीब 3 लाख लोगों को अपना घर छोड़कर दूसरे शहरों जाना पड़ा था।

मौसम के हालात और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव की वजह से आने वाले दिनों में इस तरह की आग के और भड़कने की आशंका जताई जा रही है।

अमेरिका की बीमा कंपनियों को डर है कि यह अमेरिका के इतिहास में जंगलों में लगी सबसे महंगी आग साबित होगी, क्योंकि आग के दायरे में आने वाली संपत्तियों की कीमत बहुत ज़्यादा है।

यदि आग के कारणों की बात करें तो अमेरिकी सरकार के रिसर्च में स्पष्ट रूप से यह कहा गया है कि पश्चिमी अमेरिका में बड़े पैमाने पर जंगलों में लगी भीषण आग का संबंध जलवायु परिवर्तन से भी है।

पर्यावरण विशेषज्ञों का मानना है कि बढ़ती गर्मी, लंबे समय तक सूखा और प्यासे वायुमंडल सहित जलवायु परिवर्तन पश्चिमी अमेरिका के जंगलों आग के ख़तरे और इसके फैलने की प्रमुख वजह रहे हैं।

अमेरिका में दक्षिणी कैलिफोर्निया में आग लगने का मौसम आमतौर पर मई से अक्टूबर तक माना जाता है।

बड़ा कारण ‘सेंटा एना’ हवाएँ

परंतु राज्य के गवर्नर गैविन न्यूसम ने मीडिया को बताया कि आग लगना पूरे साल की एक समस्या बन गई है।

इसके साथ ही इस आग को फैलाने का एक बड़ा कारण ‘सेंटा एना’ हवाएँ भी हैं, जो ज़मीन से समुद्र तट की ओर बहती हैं।

माना जाता है कि क़रीब 100 किलोमीटर प्रति घंटे से ज़्यादा की गति से चलने वाली इन हवाओं ने आग को अधिक फैलाया। ये हवाएं साल में कई बार बहती हैं।

अमरीका हो, भारत हो या विश्व का कोई भी देश, चिंता की बात यह है कि यहाँ के सभी नेताओं का रूख, पर्यावरणवादियों के राष्ट्रीय सम्मेलन सब ख़ानापूरी करते हुए हैं।

कॉर्पोरेट घरानों के प्रभाव में और उनकी हवस को पूरा करने के लिए सारे नियम और क़ानून ताक पर रख दिये जाते हैं। पहाड़ हों, जंगल हों, नदी हो या समुद्र का तटीय प्रदेश, हर ओर विनाश का ऐसा ही तांडव जारी है।

विकास के नाम पर होने वाले विनाश यदि ऐसे ही चलते रहेंगे तो भविष्य में इससे भी भयंकर त्रासदी आएँगीं।

अक्तूबर 2018 में चेतावनी दी

अमेरिका जैसे संपन्न और विकसित देश में जब ऐसे हादसे बार-बार होते हैं तो लगता है कि वहाँ भी जाने-माने पर्यावरणविदों, इंजीनियर और वैज्ञानिकों के अनुभवों और सलाहों को खास तवज्जो नहीं दी जाती।

यदि इनकी सलाहों को गंभीरता से लिया जाए तो शायद आनेवाले समय में ऐसा न हो।

एक शोध के अनुसार जलवायु परिवर्तन पर नज़र रखने वाले यूएन के वैज्ञानिकों ने अक्तूबर 2018 में चेतावनी दी थी कि अगर पर्यावरण को बचाने के लिए कड़े कदम नहीं उठाए गए तो बढ़ते तापमान की वजह से 2040 तक भयंकर बाढ़, सूखा, अकाल और जंगल की आग का सामना करना पड़ सकता है।

दुनिया का कोई भी देश हो क्या कोई इन वैज्ञानिक शोधकर्ताओं और विशेषज्ञों की सलाह को कभी सुनेगा?

Exit mobile version