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मानो दिवाली का तोहफा ‘दरबार मूव’

लंबे समय से जम्मू के लोगों की मांग थी कि 2021 में अचानक बंद कर दी गई दरबार मूवपरंपरा को फिर से शुरू किया जाए। पिछले चार साल में जम्मू के लोगों को परंपरा के बंद होने से भारी नुक्सान उठाना पड़ा है। इस तरह की स्थिति पहले कभी देखी नहीं गई थी। दरबार मूवके बंद होने से क्या नुक्सान झेलना पड़ सकता है यह कभी भी किसी ने सोचा नही था।

लगभग चार वर्षों के अंतराल के बाद कश्मीर व जम्मू के बीच सेतु का काम करने वाली ‘दरबार मूव’ परंपरा फिर से बहाल हो गई है। जम्मू में जश्न का माहौल है और हर छोटे-बड़े कारोबारी के साथ-साथ आम लोग भी बेहद खुश दिखाई दे रहे हैं। जम्मू के व्यापारियों के लिए ‘दरबार’ की वापसी दिवाली के तोहफे जैसी है, उन्हें पूरी उम्मीद है कि ‘दरबार’ के आने से बाजारों में फिर से रौनक लौटने लगेगी।

हर तरफ उमर सरकार द्वारा ‘दरबार मूव’ को दोबारा शुरू करने के फैसले पर चर्चा भी हो रही है और तारिफ भी। लंबे समय के बाद यह ऐसा बड़ा व अहम फैसला सामने आया है जिसका व्यापक स्तर पर असर देखने को मिल रहा है। बड़े व्यापारियों से लेकर गली-नुक्कड़ में बैठे छोटे दुकानदार भी ‘दरबार मूव’ की वापसी से खुश दिख रहे हैं। व्यापारी ही नही आम लोग भी इसे लेकर उत्साहित हैं, उनको भी भरोसा है कि जम्मू की अर्थव्यवस्था सुधरने से उनको भी कहीं न कहीं लाभ मिलेगा।

प्रदेश की शीतकालीन राजधानी जम्मू में ‘दरबार’ के खुलने पर बाजारों में मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला का भव्य स्वागत किया गया। उमर अब्दुल्ला अपने मंत्रिमंडल के सहयोगियों के साथ ‘दरबार’ खुलने के पहले दिन अपने निवास स्थान से पैदल ही सचिवालय के लिए निकले। जम्मू के रेजीडेन्सी रोड, वीर मार्ग, रघुनाथ बाज़ार व शालामार बाज़ार से होते हुए सचिवालय पहुंचे। हर जगह उनका फूल-मालाएं पहना कर भव्य स्वागत किया गया। जम्मू के व्यापारियों की प्रमुख संस्था चैंबर ऑफ कामर्स ने भी बकायदा मुख्यमंत्री का स्वागत किया।

‘दरबार’ के जम्मू में खुलने के साथ ही अब अगले छह माह के लिए जम्मू-कश्मीर की राजधानी जम्मू में रहेगी और प्रदेश सरकार के सचिवालय सगित तमाम अन्य कार्यालय जम्मू से काम करेंगे। गर्मियां आते ही प्रदेश सचिवालय व अन्य कार्यालय वापस प्रदेश की ग्रीष्मकालीन राजधानी श्रीनगर चले जाएंगे। राजधानियों के इसी स्थानांतरण की प्रक्रिया को ‘दरबार मूव’ कहा जाता है।

लंबे समय से जम्मू के लोगों की मांग थी कि 2021 में अचानक बंद कर दी गई ‘दरबार मूव’ परंपरा को फिर से शुरू किया जाए। पिछले चार साल में जम्मू के लोगों को परंपरा के बंद होने से भारी नुक्सान उठाना पड़ा है। इस तरह की स्थिति पहले कभी देखी नहीं गई थी। ‘दरबार मूव’ के बंद होने से क्या नुक्सान झेलना पड़ सकता है यह कभी भी किसी ने सोचा नही था। क्योंकि अगर 2021 से लेकर 2025 के बीच की अवधि को छोड़ दिया जाए तो पूर्व डोगरा शासक महाराजा रणबीर सिंह द्वारा 1872 में शुरू की गई इस अर्धवार्षिक परंपरा में कभी भी कोई रुकावट नही आई थी।

जम्मू के व्यापारी वर्ग को भारतीय जनता पार्टी का एक बड़ा समर्थक माना जाता है। इस वर्ग के व्यापक समर्थन से ही भारतीय जनता पार्टी को जम्मू में अपनी पैठ बनाने में सफलता मिली है ।

लेकिन इसे एक बड़ी विडंबना ही कहा जाएगा कि उन्ही व्यापारियों और जम्मू के हितों को ताक पर रखकर भारतीय जनता पार्टी के दौर में ही 2021 में अचानक पहली बार ‘दरबार मूव’ की परंपरा को बंद कर दिया गया।

‘दरबार मूव’ को बंद करने के पीछे यह तर्क दिया गया कि सरकारी दफ्तरों और कर्मचारियों को श्रीनगर से जम्मू स्थानांतरित करने और वापस जम्मू से श्रीनगर भेजने की प्रक्रिया में लगभग 200 करोड़ रुपये की धनराशि का व्यय होता है। इस खर्च को बचाने का दावा करते हुए ‘दरबार मूव’ की परंपरा पर रेक लगा दी गई। यह 200 करोड़ का आंकड़ा कहां से आया और कितना सही है यह भी अपने आप में एक अनबूझी पहेली है। यह निर्णय लेते समय दूरदर्शिता से काम नही लिया गया।

एक समय ऐसा जरूर था जब सचिवालय और अन्य सरकारी कार्यालयों की एक-एक चीज, श्रीनगर से जम्मू और जम्मू से श्रीनगर स्थानान्तरित करनी पड़ती थी। आज सुनने-पढ़ने में भले ही अटपटा लगे मगर संसाधनों की कमी के कारण दो दशक पहले तक ‘दरबार मूव’ के दौरान कुर्सी-मेज से लेकर तमाम छोटा-मोटा सामान और सरकारी दस्तावेज ट्रको में भरकर लाए जाते थे।

लेकिन समय के साथ कई बदलाव होते चले गए। जम्मू और श्रीनगर में स्थाई रूप से सचिवालय व अन्य दफ्तरों में फर्नीचर और अन्य ज़रूरी सामान उपलब्ध करवा दिया गया। कर्मचारियों के लिए जम्मू और श्रीनगर में स्थाई आवासीय सुविधाएं भी मुहैया करवा दी गईं। यही नही तकनीकी उन्नति के बाद कई अन्य चीजों को इधर से उधर ले जाने में आसानी होने लगी है जिससे खर्चों में बेहद कमी आई है। अब तो एक पेन ड्राइव में तमाम दस्तावेज समेटे जा सकते हैं। इसलिए 200 करोड़ रुपये की बात बेमानी लगती है।

इसके ठीक विपरीत ‘दरबार मूव’ के बंद होने से जम्मू की अर्थव्यवस्था बुरी तरह से प्रभावित हुई। अर्थव्यवस्था को पहुंचने वाली हानि का कोई ठोस आकलन तो अभी तक नही हुआ है मगर जिस तरह से गत चार वर्षों में धीरे-धीरे जम्मू के बाजारों से रौनक गायब हुई उससे साफ पता चलता गया कि ‘दरबार मूव’ के बिना कारोबार का क्या हाल है। गत चार वर्षों के दौरान जम्मू के बाज़ार हर दिन अपनी कहानी खुद ही बताते रहे हैं। हर समय गुलज़ार रहने वाले जम्मू के बाज़ार अचानक सुनसान नज़र आने लगे थे। ग्राहकों की कमी के कारण कई प्रतिष्ठान बंद तक हो गए। छोटे कारोबारी तो बुरी तरह से प्रभावित हुए।

‘दरबार मूव’ के बंद होने के साथ-साथ जम्मू के कारोबारियों को उस समय और भी बड़ा झटका लगा जब अधिकतर रेलगाड़ियां जम्मू की जगह कटड़ा तक आने-जाने लगीं। इस कारणवश वैष्णोदेवी के दर्शनों के लिए देश भर से आने वाले श्रद्धालु जम्मू रेलवे स्टेशन पर उतरने की जगह सीधा कटड़ा तक जाने लगे।

अभी इस झटके से व्यापार जगत उभरा भी नही था कि कश्मीर घाटी तक रेलगाड़ियों के चलने से व्यापारियों की चिंताए और भी गहरी हो गई।

जब ‘दरबार मूव’ बंद हुआ तो उस निर्णय को चुपचाप स्वीकार कर लिया गया था और कोई विशेष विरोध नही हुआ। लेकिन बाद में जैसे-जैसे कारोबार में कमी आने लगी और जम्मू की अर्थव्यवस्था चरमराने लगी तो ‘दरबार मूव’ की कमी शिद्दत से महसूस की जाने लगी ।

जम्मू के व्यापारी फिर से ‘दरबार मूव’ को शुरू करने की मांग करने लगे। गत वर्ष हुए विधानसभा चुनाव में भी ‘दरबार मूव’ का मुद्दा गरमाया रहा। विभिन्न व्यापारिक संगठनों ने लगभग हर मंच पर इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाना शुरू किया। हालांकि भारतीय जनता पार्टी ने इस मुद्दे पर खामोशी अपनाए रखी है।

जबकि एक समय ऐसा भी था जब भारतीय जनता पार्टी ‘दरबार मूव’ परंपरा को बनाए रखने के पक्ष में सड़कों पर उतरी थी।

हुआ था आंदोलन

‘दरबार मूव’ को बंद करने की एक असफल कोशिश 1987 में तत्कालीन फारूक अब्दुल्ला सरकार ने भी की थी। लेकिन सरकार के उस फैसले का सख्त विरोध हुआ और जम्मू बार एसोसिएशन के तत्वाधान में एक लंबा आंदोलन जम्मू में हुआ। बाद में फारूक अब्दुल्ला सरकार को अपना फैसला वापस लेना पड़ा और ‘दरबार मूव’ परंपरा पहले की तरह अनवरत चलती रही।

यहां यह बताना भी जरूरी है कि 1987 ‘दरबार मूव’ आंदोलन को भारतीय जनता पार्टी ने भी अपना भरपूर समर्थन दिया था। पार्टी के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी सहित कई अन्य नेता कई दिनों तक जम्मू में बैठकर ‘दरबार मूव’ आंदोलन के समर्थन में जनसभाएं करते रहे। लेकिन 2021 आते-आते भारतीय जनता पार्टी की प्राथमिकताएं बदल गईं और उसी के दौर में ‘दरबार मूव’ बंद कर दिया गया।

 दरबारसे जुड़ी अर्थव्यवस्था

‘दरबार’ के साथ लगभग 15000 हज़ार सरकारी कर्मचारी सर्दियों में श्रीनगर से जम्मू आते हैं । इन कर्मचारियों के साथ उनके परिवार व अन्य रिश्तेदार आदि भी होते हैं । इसके अलावा पूरे प्रदेश से लोग सचिवालय व अन्य कार्यालयों में अपने काम करवाने के लिए जम्मू पहुंचते हैं । एक मोटे अनुमान के अनुसार ‘दरबार’ के समय एक से दो लाख लोगों की जम्मू में आवाजाही होती है। इस दौरान जम्मू के होटलों से लेकर ढाबों तक में खूब कामकाज रहता है। टैक्सी-ऑटोवालों के काम में भी रफ़्तार आती है। बड़ी संख्या में लोग जम्मू में मकान किराए पर लेते हैं।

सर्दियों में कश्मीर घाटी में शिक्षा संस्थानों में दो से तीन महीनों तक शीतकालीन अवकाश रहता है, इस वजह से बढ़ी संख्या में लोग अपने बच्चों की ट्यूशन आदि के लिए भी जम्मू पर निर्भर रहते हैं। कम शब्दों में कहा जाए तो ‘दरबार’ से जम्मू की अर्थव्यवस्था को एक बहुत बड़ी मदद मिलती रही है।

नब्बे के दशक में आतंकवाद और ध्रुवीकरण के कारण कश्मीर और जम्मू के कुछ वर्षों से जो अविश्वास की दरार उभरी उसे भी कुछ हद तक कम करने में ‘दरबार मूव’ परंपरा अपनी एक अहम भूमिका निभाती रही है।

इसमें कोई शक नही कि जम्मू-कश्मीर के दोनों बड़े हिस्सों-कश्मीर और जम्मू के बीच ‘दरबार’ ने   एक मजबूत कड़ी का काम किया है। इससे इंकार नही किया जा सकता कि इस परंपरा ने राज्य की एकता, अखंडता और सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है और सभी हिस्सों के लोगों को आपस में जोड़े रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

जिस तरह के राज्य के दोनों प्रमुख हिस्सों में राजनीतिक कारणों से गहरी खाई पैदा हो चुकी है और एक ही राज्य के दो भाग लगातार बढ़ रहे अविश्वास भरे वातावरण का शिकार हो रहे हैं। ऐसे में ‘दरबार मूव’ की परंपरा सही अर्थों में भाईचारे और सांप्रदायिक सौहार्द को बनाए रखने में अहम भूमिका निभा सकने में कामयाब साबित हो सकती है। यह परंपरा प्रदेश के दोनों प्रमुख हिस्सों कशमीर और जम्मू के बीच एक मजबूत ‘सेतु’ का काम कर सकती है। यह साफ है कि आज ‘दरबार मूव’ परंपरा का महत्व पहले से कहीं अधिक बढ़ गया है।

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