इस सीज़न की सबसे बड़ी खूबसूरती यही है कि यह रानी भारती को सिर्फ़ एक ‘महिला मुख्यमंत्री’ की तरह प्रस्तुत नहीं करता। यह उन्हें सत्ता के उस द्वंद्व में फेंकता है जहां नैतिकता, राजनीति और व्यक्तिगत अस्तित्व की लड़ाई एक-दूसरे से टकराती रहती है। सत्ता के मोह और जनसेवा के उद्देश्य के बीच का संघर्ष इस बार और अधिक स्पष्ट, अधिक भावपूर्ण और अधिक वास्तविक है।
आज के सिने-सोहबत में ‘महारानी सीज़न 4’ पर चर्चा करते हैं। भारतीय राजनीति पर आधारित वेब शृंखलाओं की भीड़ में ‘महारानी’ हमेशा से एक अलग जगह रखती है। यह सिर्फ़ एक राजनीतिक कथा नहीं है, यह बिहार के सामाजिक-सांस्कृतिक ढांचे, सत्ता के चरित्र और स्त्री नेतृत्व की संभावनाओं का ऐसा तीखा अध्ययन है, जिसे अक्सर मुख्यधारा की कहानियां छू तक नहीं पातीं। चौथे सीज़न के साथ यह सीरीज़ अपने सबसे बौद्धिक, सबसे परिपक्व और सबसे प्रश्नाकुल स्वर में वापस आई है। और इस बार भी रानी भारती के किरदार में हुमा क़ुरैशी ने ऐसा प्रदर्शन किया है जो एक नायिका ही नहीं, बल्कि एक संपूर्ण चरित्र-ग्रहण करने वाले कलाकार का प्रमाण है।
सीरीज़ के निर्माता और शो रनर सुभाष कपूर, निर्देशक पुनीत प्रकाश और लेखक नंदन सिंह व उमाशंकर सिंह की टीम एक ऐसे राजनीतिक संसार को गढ़ती है जो न तो सिर्फ़ यथार्थ है, न ही मात्र कल्पना, बल्कि दोनों का एक सटीक सम्मिश्रण है। यह वह दुनिया है जहां सत्ता, नीति, जाति, मीडिया और आम जनता एक साथ घूमते हुए एक जटिल चक्रव्यूह रचते हैं। सीज़न 4 इस चक्रव्यूह को और गहरा करता है और यह पूछने की हिम्मत भी दिखाता है कि राजनीति में स्त्री की जगह क्या है, और क्यों है।
सीज़न 4 की कहानी वहीं से आगे बढ़ती है, जहा पिछला सीज़न एक अनिश्चित मोड़ पर छोड़ा गया था। रानी भारती फिर से सत्ता के केंद्र में लौट रही हैं, लेकिन इस बार उनका संघर्ष बाहरी से ज्यादा भीतरी है।
क्या वे सत्ता को सचमुच बदलने आई हैं या सत्ता उन्हें बदलने वाली है? क्या वे व्यवस्था को चुनौती दे पाएंगी या व्यवस्था उन्हें अपने ढांचे में ढाल लेगी?
इस सीज़न की सबसे बड़ी खूबसूरती यही है कि यह रानी भारती को सिर्फ़ एक ‘महिला मुख्यमंत्री’ की तरह प्रस्तुत नहीं करता। यह उन्हें सत्ता के उस द्वंद्व में फेंकता है जहां नैतिकता, राजनीति और व्यक्तिगत अस्तित्व की लड़ाई एक-दूसरे से टकराती रहती है। सत्ता के मोह और जनसेवा के उद्देश्य के बीच का संघर्ष इस बार और अधिक स्पष्ट, अधिक भावपूर्ण और अधिक वास्तविक है।
‘महारानी सीज़न 4’ राजनीति में स्त्री की स्थिति पर कुछ गहरे सवाल खड़ा करता है। क्या एक महिला, विशेषकर ग्रामीण पृष्ठभूमि से आई महिला, सत्ता में आने के बाद भी सत्ता के पुराने ढांचों को चुनौती दे सकती है? या उसे भी वही रास्ते अपनाने पड़ते हैं, जिनकी आलोचना में वह खुद खड़ी होती है?
रानी भारती के संघर्ष में यह अंतर्द्वंद्व बार-बार उभरता है और यही इस सीज़न की आत्मा बन जाता है।
हुमा कुरैशी ने अभिनय से भी आगे बढ़कर एक राजनीतिक ‘प्रतिमान’ बनाने में कोई कसर बाक़ी नहीं छोड़ी है। सीरीज़ की सफलता में सबसे बड़ा योगदान हुमा कुरैशी का है। सीज़न 4 में उनका अभिनय सिर्फ ‘परफॉर्मेंस’ नहीं लगता, यह एक जीवित अनुभव की तरह सामने आता है। फिर चाहे उनकी आंखों में भय और दृढ़ता का मिश्रण हो, या फिर संवादों में सहज देसी लय। शरीर की मुद्रा में मनोवैज्ञानिक तनाव हो या कि चुनौतियों के सामने उनका बदलता हुआ राजनीतिक वजूद। ये सब मिलकर रानी भारती को भारतीय राजनीति के सबसे दमदार महिला चरित्रों में से एक बना देते हैं।
हुमा का अभिनय इस सवाल का उत्तर भी देता है कि ‘महारानी’ क्यों सिर्फ एक सीरीज़ नहीं, बल्कि एक राजनीतिक-सांस्कृतिक प्रयोग है। वे दिखाती हैं कि नेतृत्व में स्त्री की करुणा और कठोरता समान रूप से महत्त्वपूर्ण हैं, और यह दोनों गुण वह सहजता से निभाती हैं।
जाने माने फ़िल्मकार और ‘महारानी सीज़न 4’ के निर्माता का दृष्टिकोण साफ़ तौर पर राजनीति को कहानी नहीं, एक विमर्श बनाना लगता है जो कि अपने आप में एक शानदार पहल है। दिल्ली में पत्रकारिता से मुंबई फ़िल्म इंडस्ट्री आकर अपनी सार्थक धमक बनाने वाले सुभाष की सबसे बड़ी खूबी यह है कि वे राजनीति को किसी नैतिक उपदेश में नहीं बदलते। वे उसे वैसा ही दिखाते हैं जैसा वह है, जटिल, गंदा, सुंदर, विडंबनापूर्ण और कभी-कभी बेहद मानवीय।
सीज़न 4 इस राजनीतिक दर्शन को और गहरा करता है। यह सत्ता के चरित्र पर सवाल उठाता है, लेकिन जवाब दर्शकों पर छोड़ देता है। यह समय का दस्तावेज़ भी है और समय का आलोचक भी। और यही वजह है कि ‘महारानी’ सिर्फ मनोरंजन नहीं, बल्कि एक राजनीतिक पाठ भी बन जाती है।
‘महारानी सीज़न 4’ के लेखन की बात की जाए तो इसकी कसावट वास्तविकता, व्यंग्य और कल्पना का संयोजन करने में बेहद कामयाब सिद्ध होती है। लेखक नंदन सिंह और उमाशंकर सिंह इस सीज़न में कहानी को विचारों की एक नई ज़मीन पर ले जाते हैं। संवाद छोटे हैं, पर तीखापन गहरा है।
परिस्थितियां यथार्थवादी हैं, पर उनमें कल्पना की उड़ान भी मौजूद है। राजनीति ‘ब्लैक एंड व्हाइट’ नहीं है, बल्कि कई ग्रे शेड्स में बंटी हुई है।
इस लेखन का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है इसकी नैरेटिव इंटेलिजेंस, कहानी सिर्फ़ आगे नहीं बढ़ती, वह अपने पात्रों को भीतर से बदलती भी है। रानी भारती, विपक्ष, पार्टी के कर्ताधर्ता, हर कोई इस सीज़न में एक गहरी यात्रा से गुज़रता है।
‘महारानी सीज़न 4’ देखते हुए एक विचार ये भी आता है कि क्या ये कहानी बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी की ज़िंदगी से प्रेरित है? ‘सीज़न 4’ यह स्पष्ट कर देता है कि ये वास्तविक राबड़ी देवी की ज़िंदगी नहीं दिखाती, बल्कि ये कि ‘राबड़ी देवी’ यूं होतीं तो कैसा होता? यानी कहानी तथ्य का दस्तावेज़ नहीं है, यह कल्पना का राजनीतिक अभ्यास है। ‘महारानी’ की कहानी उस स्त्री की संभावनाओं को दिखाती है, जिसे इतिहास ने एक निश्चित फ्रेम में कैद कर दिया। सीरीज़ उस फ्रेम को तोड़ती है और स्त्री नेतृत्व की नई संभावनाएं सामने लाती है।
निर्देशन के नज़रिये से कहें तो ‘महारानी सीज़न 4’ एक विज़ुअल ट्रीट है। पुनीत प्रकाश का निर्देशन महारानी के इस सीज़न को अपने चरम पर ले जाता है।
बिहार की धरती, सरकारी दफ्तरों की बासी हवा, चुनावी हलचल, नेताओं की बंद कमरे की फुसफुसाहट, सब कुछ कैमरे में इतना असली लगता है कि दर्शक कहानी के भीतर खिंच जाता है। कैमरा पात्रों की मनःस्थिति को पकड़ता है और दृश्य राजनीति के तनाव को बढ़ाते हैं। इसकी एडिटिंग भी ऐसी है जो कहानी को कसकर थामे रखती है। निर्देशन कहानी को न केवल गति देता है, बल्कि उसे विश्वसनीयता भी प्रदान करता है।
‘महारानी सीज़न 4’ की ओटीटी पर हालिया स्ट्रीमिंग का ठीक चुनावी मौसम में होना प्लेटफॉर्म की एक बेहद कुशल रणनीति लगती है। यह संयोग तो नहीं ही हो सकता कि सीज़न 4 बिहार विधानसभा चुनाव के ठीक बीच में आया। इस समय राजनीतिक चेतना, जनता का मूड और सामाजिक चर्चाएं अपने चरम पर होती हैं। ऐसे माहौल में ‘महारानी’ का आना सिर्फ मनोरंजन नहीं, बल्कि राजनीतिक संवाद का एक विस्तार लगता है। यह सीरीज़ दर्शक को चुनावों की भाषा, रणनीति और पर्दे के पीछे की हलचल को समझने का अवसर देती है और यही इसकी बड़ी ताकत है।
‘महारानी सीज़न 4′ के अंत में आये क्लिफहैंगर की बात करें तो वो अगले सीज़न की चिनगारी जलाने में बखूबी कामयाब है। सीज़न 4 का आखिरी हिस्सा एक दमदार क्लिफहैंगर पर समाप्त होता है, एक ऐसा क्षण जो पूरी कहानी को नए मोड़ पर ला खड़ा करता है और दर्शक को सोचने पर मजबूर कर देता है कि रानी भारती का अगला कदम क्या होगा। यह क्लिफहैंगर न केवल उत्सुकता जगाता है, बल्कि सीरीज़ की कथा संरचना को और ताकत देता है। स्पष्ट है कि ‘महारानी’ की यात्रा अभी खत्म नहीं हुई।
कुल मिलाकर ‘महारानी’ सीज़न 4’ एक राजनीतिक दस्तावेज़, एक चरित्र अध्ययन, और एक सांस्कृतिक विमर्श है। यह दिखाता है कि सत्ता केवल पुरुषों की जागीर नहीं, स्त्री के भीतर भी नेतृत्व और निर्णय का वही साहस और विवेक है।
हुमा क़ुरैशी का दमदार अभिनय, सुभाष कपूर का दृष्टिकोण, नंदन-उमाशंकर की लेखनी और पुनीत प्रकाश का निर्देशन, सब मिलकर एक ऐसा सीज़न रचते हैं जिसे देखा ही नहीं, समझा भी जाना चाहिए।
‘महारानी सीज़न 4’ केवल मनोरंजन नहीं, यह भारतीय राजनीति, समाज और स्त्री नेतृत्व पर एक महत्वपूर्ण टिप्पणी है। यह एक ऐसी कहानी है जो आने वाले सीज़न के लिए उत्सुकता की आग जगा देती है।सोनी लिव पर है। देख लीजिएगा। (पंकज दुबे मशहूर बाइलिंग्वल उपन्यासकार और चर्चित यूट्यूब चैट शो, “स्मॉल टाउन्स बिग स्टोरीज़” के होस्ट हैं।)
