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राष्ट्र प्रथम का संघ उद्घोष

भारत के लिए यह बहुत ही शुभ स्थिति है कि राष्ट्र की सांस्कृतिक सत्ता के प्रतिनिधि संघ प्रमुख  मोहन भागवत और राजनीतिक सत्ता के प्रतिनिधि प्रधानमंत्री  नरेंद्र मोदी के बीच इन समस्त विषयों पर सहमति है और साथ मिल कर राष्ट्र को प्रगति पथ पर ले जाने का संकल्प भी है। संघ प्रमुख ने ‘जेन जी’ के आंदोलन को लेकर एक अहम बात कही कि ‘सक्षम प्रशासक’ की कमी से उन देशों में आंदोलन भड़के। पर भारत में ऐसा नहीं हो सकता है क्योंकि भारत में प्रशासन बेहद सक्षम हाथों में है।

राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ, आरएसएस की सुदीर्घ यात्रा के सौ वर्ष वास्तव में राष्ट्र प्रथम के उद्घोष की ही यात्रा है। एक सौ वर्ष पहले जब भारतवर्ष गुलामी की जंजीरों में जकड़ा था तब गुलामी से मुक्ति और मां भारती का गौरव वापस लौटाने के संकल्प के साथ राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ की स्थापना हुई थी। संघ अनवरत इस लक्ष्य की प्राप्ति की ओर बढ़ रहा है। ध्यान रहे राजनीतिक रूप से भारतवर्ष को गुलामी से मुक्ति प्राप्त हो गई है कि लेकिन मानसिक गुलामी से मुक्ति की यात्रा अभी जारी है। राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के साथ  प्रधानमंत्री   नरेंद्र मोदी अनेक प्रकार के कानूनी व प्रशासनिक बदलावों के सहारे देश और इसके नागरिकों को मानसिक गुलामी से मुक्त करने का महायज्ञ कर रहे हैं।

संघ की स्थापना के शताब्दी वर्ष के अवसर पर विजयादशमी के दिन  मोहन भागवत का उद्बोधन राष्ट्र प्रथम और मां भारती के गौरव को सर्वोच्च शिखर पर स्थापित करने के संघ के संकल्प का ही उद्घोष था। उन्होंने एक राष्ट्र के रूप में भारत की यात्रा के साथ साथ संघ की यात्रा के अहम पड़ावों को रेखांकित किया तो साथ ही सरकार की ओर से राष्ट्र प्रथम की भावना से उठाए जा रहे कदमों को भी रेखांकित किया।  संघ प्रमुख ने राष्ट्र के सामने उपस्थित चुनौतियों की ओर भी ध्यान दिलाया। उन्होंने भारत और इसके 140 करोड़ नागरिकों की असीम क्षमताओं के बारे में बताया और यह भरोसा भी दिया कि इन क्षमताओं से कितनी महान उपलब्धियां प्राप्त की जा सकती हैं। तभी उनका उद्बोधन राष्ट्र को नई दिशा देने वाला और भारत को असीम उपलब्धियां प्राप्त करने के लिए तैयार करने वाला था।

यह अनायास नहीं था कि मोहन भागवत के उद्बोधन के बाद  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसकी प्रशंसा करते हुए इसे प्रेरणादायक बताया। वास्तव में यह उद्बोधन केंद्र सरकार के साथ साथ सभी राज्यों और नागरिकों को भी प्रेरित करने वाला था।  प्रधानमंत्री ने मोहन भागवत के उद्बोधन की प्रशंसा करते हुए कहा कि उन्होंने राष्ट्र निर्माण में आरएसएस के समृद्ध योगदान पर प्रकाश डाला और पूरे विश्व को लाभान्वित करते हुए गौरव की नई ऊंचाइयों को प्राप्त करने की भारत की अंतर्निहित क्षमता पर जोर दिया।  प्रधानमंत्री ने कहा- मोहन भागवत का एक प्रेरणादायक संबोधन, जिसमें राष्ट्र निर्माण में आरएसएस के समृद्ध योगदान पर प्रकाश डाला गया है और हमारे देश की जन्मजात क्षमता पर जोर दिया गया है ताकि वह गौरव की नई ऊंचाइयों को प्राप्त कर सके, जिससे हमारे पूरे ग्रह को लाभ हो’। निश्चित रूप से भागवत का उद्बोधन राष्ट्र प्रथम के साथ साथ पूरी पृथ्वी के कल्याण की अंतर्निहित भावना वाला था। उन्होंने राजनीतिक व्यवस्था की खामियों को दूर करते हुए सबके कल्याण की नई व्यवस्था बनाने के साथ साथ भारत को आर्थिक निर्भरता से मुक्त करके विकास के रास्ते पर द्रुत गति से आगे बढ़ने का मंत्र और संकल्प दोनों प्रकट किया। इसमें तनिक भी संदेह नहीं होना चाहिए कि दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र और सबसे बड़ी जनसंख्या वाला देश स्वतंत्र विचार के साथ आत्मनिर्भर होकर विश्व कल्याण की भावना से आगे बढ़ेगा तभी पूरी पृथ्वी का भला होगा।

मोहन भागवत का उद्बोधन स्पष्ट रूप से भारत का सर्वोच्च गौरव वापस प्राप्त करने का रोडमैप बताने वाला था। उन्होंने एक राष्ट्र के रूप में भारत की अंतर्निहित क्षमताओं और वर्तमान विश्व की भू राजनीतिक स्थितियों से उत्पन्न चुनौतियों के बारे में बताया। उन्होंने जम्मू कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद दुनिया के देशों के व्यवहार के बारे में बताया और कहा कि उस समय भारत के मित्र देशों की पहचान हुई। उन्होंने बहुत स्पष्ट शब्दों में कहा कि भारत के दूसरे देशों के साथ भी अच्छे संबंध हैं, जिन्हें बनाए रखना आवश्यक है। परंतु जब देश की सुरक्षा की बात आती है तो हमें ज्यादा सावधान, ज्यादा सतर्क और मजबूत होने की जरुरत है। इसी तरह अमेरिका की ओर से लगाए गए टैरिफ को उन्होंने एक चुनौती मान कर भारत की दुनिया के दूसरे देशों पर निर्भरता कम करने का मंत्र दिया। उन्होंने कहा, ‘हाल ही में अमेरिका ने जो टैरिफ नीति अपनाई, उसकी मार सभी पर पड़ रही है। ऐसे में हमें मौजूदा अर्थ प्रणाली पर पूरी तरह से निर्भर नहीं होना चाहिए। निर्भरता मजबूरी में न बदलनी चाहिए। इसलिए निर्भरता को मानते हुए इसको मजबूरी न बनाते हुए जीना है तो स्वदेशी और स्वावलंबी जीवन जीना पड़ेगा। साथ ही राजनयिक, आर्थिक संबंध भी दुनिया के साथ रखने पड़ेंगे, लेकिन उन पर पूरी तरह से निर्भरता नहीं रहनी चाहिए’।

वास्तव में यह राष्ट्रीय सुरक्षा से लेकर देश के विकास और आर्थिक प्रगति के मामले में आत्मनिर्भर होने का मंत्र है। भारत अपने वास्तविक गौरव को तभी प्राप्त कर सकेगा, जब वह सुरक्षा के मामले में शक्तिशाली और आत्मनिर्भर हो और उसका आर्थिक विकास का मॉडल आत्मनिर्भरता वाला हो। इससे नागरिकों को आत्मविश्वास प्राप्त होगा और वे देश के विकास में ज्यादा सार्थक योगदान कर पाएंगे।  प्रधानमंत्री   नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार पहले ही इस दिशा में पहल कर चुकी है। स्वदेशी को प्रोत्साहित करने वाले अनेक कदम उठाए गए हैं। तभी भारत के सशस्त्र सेनाओं को स्वदेश में बनी सामग्री उपलब्ध होने लगी है। इसी तरह आर्थिक विकास का मॉडल भी स्वावलंबन वाला बनाया गया है। मोहन भागवत ने आत्मनिर्भर होने का मंत्र भारत की अंतर्निहित क्षमताओं को समझते हुए दिया। अब आवश्यकता इस बात की है कि देश इन क्षमताओं को समझे और उसके अनुरूप विकास की दिशा में आगे बढ़े। भारत की अंतर्निहित क्षमताओं के बारे में बताते हुए  सरसंघचालक ने भारत की विविधता, संस्कृति और राष्ट्रीयता को इसकी शक्ति बताया। उन्होंने भारत की विविधता का स्वागत किया। मोहन भागवत ने कहा, ‘हमारी संस्कृति ही हमारी एकता का आधार है’। उन्होंने ‘हिंदू’ शब्द को भारतीय राष्ट्रीयता का प्रतीक बताया और स्पष्ट किया कि भारत का राष्ट्र किसी राज्य पर आधारित नहीं है, बल्कि हमारी संस्कृति इसे बनाती है। उनकी इस बात के मर्म को समझने की आवश्यकता है।

मोहन भागवत ने विजयादशमी के दिन राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ की स्थापना के शताब्दी वर्ष समारोह को संबोधित करते हुए व्यक्तिगत चरित्र निर्माण के महत्व और अनुशासन एवं मूल्य संचालित नागरिकों के पोषण में संघ की शाखा प्रणाली की केंद्रीय भूमिका पर जोर दिया। ध्यान रहे देश में लगभग एक लाख शाखाओं के जरिए संघ करोड़ों नागरिकों के अंदर उन मूल्यों को स्थापित कर रहा है, जिन मूल्यों के सहारे भारत को अपना सर्वोच्च गौरव प्राप्त करना है। संघ प्रमुख ने अपने उद्बोधन में देश के लिए समग्र और एकीकृत दृष्टिकोण पर आधारित एक सफल विकास मॉडल की आवश्यकता पर बल दिया ताकि आगामी चुनौतियों से बचा जा सके। उन्होंने कहा, ‘हम अभी भी उन राजनीति और ढांचों के भीतर काम कर रहे हैं, जिनकी अपर्याप्तताएं हमारे सामने उजागर हो चुकी हैं, लंबे समय में हमें धीरे धीरे बदलाव करना होगा’। उन्होंने कहा, ‘हमें अपने समग्र और एकीकृत दृष्टिकोण के आधार पर एक सफल विकास मॉडल बनाने और इसे दुनिया के सामने पेश करने की आवश्यकता है’।

संघ प्रमुख ने आगामी चुनौतियों को स्पष्ट करते हुए कहा कि बढ़ती असमानता और आर्थिक शक्ति का केंद्रीकरण एक बड़ी चुनौती है। उन्होंने शोषकों द्वारा शोषण को आसान बनाने वाले नए तंत्रों को मजबूत करने, पर्यावरण क्षरण तथा वास्तविक पारस्परिक संबंधों के बजाय लेन देनवाद एवं अमानवीयता के उदय जैसी कमियों का भी जिक्र किया। यह उनकी व्यक्तिगत और व्यापक रूप से संघ की विश्व दृष्टि को बताने वाला है। भागवत ने कहा, ‘प्रचलित अर्थ प्रणाली के अनुसार, देश आर्थिक विकास कर रहा है। लेकिन प्रचलित अर्थ प्रणाली के कुछ दोष भी सामने आ रहे हैं। इस व्यवस्था में शोषण करने के लिए नया तंत्र खड़ा हो सकता है और इससे पर्यावरण की हानि हो सकती है’। उन्होंने पड़ोसी देशों जैसे बांग्लादेश, श्रीलंका और नेपाल में नई पीढ़ी यानी ‘जेन जी’ के दिशाहीन आंदोलन की ओर भी ध्यान दिलाया और भारत सरकार को सचेत रहने की सलाह देते हुए कहा कि भारत में इस तरह की अशांति फैलाने के लिए देश के अंदर और बाहर शक्तियां सक्रिय हैं। ध्यान रहे आमतौर पर विचारक और मनीषी सूत्रों में अपनी बात कहते हैं। तभी  सरसंघचालक ने जो बातें कहीं उनमें छिपे सूत्रों को पहचानने और उनके अनुरूप कार्य करने की आवश्यकता है।

भारत के लिए यह बहुत ही शुभ स्थिति है कि राष्ट्र की सांस्कृतिक सत्ता के प्रतिनिधि संघ प्रमुख  मोहन भागवत और राजनीतिक सत्ता के प्रतिनिधि प्रधानमंत्री  नरेंद्र मोदी के बीच इन समस्त विषयों पर सहमति है और साथ मिल कर राष्ट्र को प्रगति पथ पर ले जाने का संकल्प भी है। संघ प्रमुख ने ‘जेन जी’ के आंदोलन को लेकर एक अहम बात कही कि ‘सक्षम प्रशासक’ की कमी से उन देशों में आंदोलन भड़के। इसका संकेत स्पष्ट है कि भारत में ऐसा नहीं हो सकता है क्योंकि भारत में प्रशासन बेहद सक्षम हाथों में है। ऐसे ही उन्होंने न्याय और विकास की कमी को चरमपंथ के पनपने का कारण बताया तो वह भी भारत में संभव नहीं है क्योंकि भारत में  प्रधानमंत्री ने ‘सबका साथ, सबका विकास’ के मंत्र से ‘सबका विश्वास’ हासिल किया है। यह मंत्र भारत को हर प्रकार की चुनौतियों से पार पाने की शक्ति देगा। भारत इसी शक्ति और संकल्प के साथ प्रगति के पथ पर अग्रसर होगा और राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ की उपस्थिति हर पड़ाव पर भारत को संबल प्रदान करेगी। (लेखक दिल्ली में सिक्किम के मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तामंग (गोले) के कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त विशेष कार्यवाहक अधिकारी हैं।)

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