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जनकल्याणकारी योजनाओं से बनी समृद्धि

बीते 11 वर्षों से मुफ्त राशन, प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डायरेक्ट बेनेफिट ट्रांसफर) और जनधन योजना जैसी पहलों ने गरीबी को कम करने में अहम योगदान दिया है। मोदी सरकार द्वारा क्रियान्वित ‘प्रधानमंत्री जनधन योजना’ के अंतर्गत, 10 जून 2025 तक 55 करोड़ से अधिक लोगों के निशुल्क बैंक खाते खोले गए, जिसमें विभिन्न जनकल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से लाभार्थियों के खाते में ढाई लाख करोड़ रुपये से अधिक हस्तांतरित किए गए है।

भारत ने गरीबी के खिलाफ एक बड़ी कामयाबी हासिल की है। विश्व बैंक की नई रिपोर्ट के अनुसार, बीते 11 वर्षों में देश के करीब 27 करोड़ लोग अत्यधिक गरीबी से बाहर निकले हैं। वर्ष 2011-12 में जहां देश की 27.1 प्रतिशत आबादी गरीबी की इस श्रेणी में थी, वहीं 2022-23 में यह आंकड़ा घटकर केवल 5.3 प्रतिशत रह गया है। यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि विश्व बैंक ने इस बार गरीबी रेखा के पैमाने को बढ़ाकर 3 डॉलर प्रतिदिन कर दिया गया है। यदि पुरानी सीमा यानी 2.15 डॉलर प्रतिदिन को आधार माना जाए, तो गरीबी दर वर्ष 2022-23 में केवल 2.3 प्रतिशत ही रह गई है। आखिर यह चमत्कार कैसे हुआ? इसके लिए बीते 78 वर्षों में देश की आर्थिक यात्रा को जानना आवश्यक है।

जिन सुधी पाठकों की उम्र पचास साल या उससे ज्यादा है, वे जानते है कि 1970 और 1980 के दौर में देश की क्या स्थिति थी। उस समय भारतीय अर्थव्यवस्था वामपंथ प्रेरित समाजवाद और योजनाओं के कारण बुरी तरह से थमी हुई थी। देश खाद्य-वस्तुओं के भीषण अकाल, कालाबाजारी, भुखमरी और बेतहाशा गरीबी से जकड़ा हुआ था। हालात ऐसे थे कि आमजन को दूध, चीनी जैसी रोज की चीजों से लेकर सीमेंट और टेलीफोन तक पाने के लिए लंबी कतारों में लगना पड़ता था। आज के जमाने में कर देने वाले शायद ही जानते होंगे कि तब सबसे ऊंची कर की दर 97 प्रतिशत थी। कार खरीदने के लिए सात साल और स्कूटर के लिए नौ साल तक इंतजार करना पड़ता था।

जब समाजवादी आर्थिक नीति पूरी तरह विफल हो गई, तब इसके पोषक वामपंथियों ने अपनी वैचारिक बाध्यता के चलते इस असफलता का दोष भारत की मौलिक पहचान— अनाधिकालीन सनातन संस्कृति पर मढ़ दिया। वर्ष 1978 में एक वामपंथी अर्थशास्त्री प्रो.राजकृष्ण ने भारत की कमजोर विकास दर को ‘हिंदू विकास दर’ कहकर बदनाम किया। वर्ष 1990-91 आते-आते हालात इतने बिगड़ चुके थे कि भारत का विदेशी मुद्रा भंडार केवल एक बिलियन डॉलर के आसपास सिमट गया, जो सिर्फ तीन सप्ताह के आयात के लिए पर्याप्त था। तब भारत को अपनी देनदारी आदि चुकाने के लिए देश का लगभग 47 टन सोना तक विदेशों में गिरवी रखना पड़ा था। जब सोवियत संघ का विघटन हुआ, तो शेष दुनिया ने भी समाजवाद का बुलबुला फूटते और इसके अंतर्गत गरीबी, भुखमरी और अराजक तानेबाने को अपनी आंखों से देखा।

जब 1991 में कांग्रेस के पीवी नरसिम्हा राव देश के 9वें प्रधानमंत्री बने, तब उनके नेतृत्व में समाजवाद की बेड़ियों का टूटना प्रारंभ हुआ। उन्होंने भारत की अर्थव्यवस्था को नए रास्ते पर ले जाने की शुरुआत की। इससे दशकों से नीतिगत जाल में फंसी देश की प्रतिभा को खुलने का मौका मिला। इससे न केवल देश की तस्वीर बदली, बल्कि भारत दुनिया के सामने एक उभरती आर्थिक ताकत बनकर खड़ा हुआ। परंतु भ्रष्टाचार रूपी दीमक— विशेषकर 2004-14 के बीच इसने देश में तरक्की की रफ्तार को दिशाहीन और कुछ क्षेत्रों तक सीमित कर दिया।

साल 2014 में जब नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में देश में एक मजबूत, दृढ़ इच्छाशक्ति से लबरेज पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनी, तब से देश में बड़े बदलाव देखने को मिल रहे है। भ्रष्टाचार से मुक्त योजनाएं शुरू हुईं, सरकारी मदद सीधे लोगों तक पहुंचने लगी, और समेकित विकास के साथ आर्थिकी को भी नई ताकत मिलने लगी। आज भारत दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। 2014 में हम 10वें स्थान पर थे। 1947 से 2014 तक भारत की अर्थव्यवस्था सिर्फ दो खरब डॉलर तक पहुंच पाई थी। लेकिन तीसरा खरब सिर्फ पांच साल (2014-19) में जुड़ गया। कोरोनाकाल के कठिन समय और फिर रूस-यूक्रेन युद्ध से प्रभावित आपूर्ति-चक्र के बावजूद भारत चार खरब डॉलर से अधिक की अर्थव्यवस्था बन गया है।

विश्व बैंक ने अपनी हालिया रिपोर्ट में माना है कि बीते 11 वर्षों से मुफ्त राशन, प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डायरेक्ट बेनेफिट ट्रांसफर) और जनधन योजना जैसी पहलों ने गरीबी को कम करने में अहम योगदान दिया है। मोदी सरकार द्वारा क्रियान्वित ‘प्रधानमंत्री जनधन योजना’ के अंतर्गत, 10 जून 2025 तक 55 करोड़ से अधिक लोगों के निशुल्क बैंक खाते खोले गए, जिसमें विभिन्न जनकल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से लाभार्थियों के खाते में ढाई लाख करोड़ रुपये से अधिक हस्तांतरित किए गए है। 2018 से जारी प्रधानमंत्री जनारोग्य योजना के अंतर्गत, पांच लाख रुपये के मुफ्त वार्षिक बीमा संबंधित 41 करोड़ आयुष्मान कार्ड जारी किया जा चुका है, जिसका लाभ तीन जून 2025 तक साढ़े नौ करोड़ से अधिक लोग ले चुके है। इसी प्रकार प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के अंतर्गत, मोदी सरकार सात करोड़ से अधिक पात्रों को मुफ्त एलपीजी गैस कनेक्शन दे चुकी है। वर्ष 2019 से पीएम-किसान सम्मान निधि योजना से औसतन 9-10 करोड़ किसानों को 6,000 रुपये वार्षिक दे रही है। कोरोनाकाल से मोदी सरकार निशुल्क टीकाकरण के साथ पिछले पांच वर्षों से ‘प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना’ के तहत देश के 80 करोड़ों लोगों को मासिक मुफ्त अनाज दे रही है। ऐसी जनकल्याणकारी योजनाओं की एक लंबी सूची है। इन सबका लाभ, लाभार्थियों को बिना किसी मजहबी-जातीय भेदभाव के पहुंच रहा है।

ऐसा नहीं है कि मई 2014 से पहले सरकारों ने लोगों के भले के लिए कोई योजना नहीं चलाई। पहले भी कई योजनाएं बनी थीं, लेकिन उस समय भ्रष्टाचार भस्मासुर बना हुआ था। खुद एक समय के प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने भी कहा था कि सरकार जो 1 रुपया भेजती है, उसमें से लोगों तक सिर्फ 15 पैसा ही पहुंचता है। लेकिन 2014 के बाद से हालात में काफी सुधार हुआ है। यह बात सही है कि भ्रष्टाचार अभी भी पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ है, लेकिन यह भी सच है कि पिछले 11 सालों से मोदी सरकार और सत्तारूढ़ भाजपा का शीर्ष नेतृत्व भ्रष्टाचार और वित्तीय गड़बड़ियों से मुक्त है।

भारत की यह प्रगति केवल आंकड़ों की नहीं, बल्कि देश की सामाजिक और आर्थिक दिशा में हुए सकारात्मक बदलाव की कहानी है। यदि यही रफ्तार बनी रही, तो आने वाले वर्षों में भारत गरीबी मुक्त राष्ट्र बनने की दिशा में एक ठोस कदम और बढ़ा सकता है।

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