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सुर-राग के धनी इंद्रेशजी

वृंदावन की व्यासपीठ के 26 वर्षीय युवा इंद्रेशजी जनमानस के आत्मविकास में लगे हुए हैं।  भक्तिपथ पर चलने वाले इंद्रेश जी जब “वृंदावन प्यारो वृंदावन” गाते हैं तो सुनने वाले स्वभाव में वृंदावन ही पहुंच जाते हैं। वे सुर-राग के धनी हैं तो रस-भाव के भी धनी हैं। इन्द्रेश जी के छवि चित्र में ही उनका चरित्र भाव दिखता है।    आज जब पंथ-जमात के कई प्रतिष्ठित हुए व लोकप्रिय माने गए गुरु जेल में अपने कर्मों की सजा भुगत रहे हैं तो भागवत कथाकार इन्द्रेश जी सभी का मन मोह रहे हैं।

नया साल नई संभावनाएं लिए आता है। समय कैसा भी रहे अपन समाज के प्रति अपनी आशा तो बनाए रख ही सकते हैं। समाज से संवाद तो चलाया जा ही सकता है। समाज से ही निकले सभ्य-सुशील लोग नयी समय-समझ गढ़ने में भी लगते हैं। उनके नए संवाद से भी समाज की समझ बनती-बढ़ती है। इसलिए आशा है समाज में श्रद्धा, सौहार्द और विवेक का माहौल बने। भौतिक विकास के साथ आत्मिक विकास भी हो। वृंदावन की व्यासपीठ के 26 वर्षीय युवा इंद्रेश जी जनमानस के आत्मविकास में लगे देखे जा सकते हैं।

किसी का भी अस्तित्व तो उसकी सच्ची आस्था के आत्मविश्वास से ही प्रकट होता है। वही आस्था जो हमारे जीवन के अर्थ व हमारे रोजमर्रा के कामों से प्रदर्शित होती है। और फिर हमारे वही अर्थपूर्ण कामकाज ही हमें प्रतिष्ठित व लोकप्रिय बनाते है। मगर आकार से न हमारा अस्तित्व तय होता है न ही संख्या से हमारी सार्थकता। आज जब पंथ-जमात के कई प्रतिष्ठित हुए व लोकप्रिय माने गए गुरु जेल में अपने कर्मों की सजा भुगत रहे हैं तो भागवत कथाकार इन्द्रेश जी सभी का मन मोह रहे हैं। इसलिए सारे देश में इंद्रेश जी, इंद्रईश दुलारे हो गए हैं।

पिछले दिनों इन्द्रेश जी ने चंडीगढ़ में वृंदावन प्रकट उत्सव मनाया। वृंदावन का महिमामृत व भाव कहा व गाकर सुनाया। चंडीगढ़ के ही लोकप्रिय गायक-संगीतकार बी-प्राक ने इन्द्रेश जी को रस, रास और राग के महात्म्य के लिए बुलाया था। वृंदावन प्रकृति-प्रेम का प्रतीक है तो कुरुक्षेत्र गीता-ज्ञान का रणक्षेत्र। उसी से लगे चंडीगढ़ में इन्द्रेश जी वृंदावन के राधाकृष्ण प्रेम को उत्सव रूप में प्रकट कर रहे थे। अपने रसमय भागवत प्रेम के कथा-पाठ के साथ रागमय संगीत रच रहे थे। इन्द्रेश जी परंपरा से प्राप्त कृष्ण-प्रेम को नए युवाओं के लिए नवोदित चिंतन प्रदान करने में लगे हैं। बृज की सरससता से देश में समरसता जगाने में लगे हैं।

भक्तिपथ पर चलने वाले इंद्रेश जी जब “वृंदावन प्यारो वृंदावन” गाते हैं तो सुनने वाले स्वभाव में वृंदावन ही पहुंच जाते हैं। वे सुर-राग के धनी हैं तो रस-भाव के भी धनी हैं। इन्द्रेश जी के छवि चित्र में ही उनका चरित्र भाव दिखता है। दिखने में पुरुषत्व सुंदरता लिए, इंद्रेश जी की वाणी सुर में सुरीली, राग में लचीली व भाव से भरी है। काले-घने लहराते केश से घिरा, नीचे साफ-चौड़ा माथा है। उनके चौड़े माथे पर सीधा चलता लाल तिलक उनके स्वरूप को कांति देता है। उनकी जुल्फों से नीचे निकलती लंबी कलम कान को खास आकार और चेहरे को साकार करती हैं।

हंसमुख होंठ व गोल-गोल गाल कहने-सुनने के लिए आकर्षित करते हैं। उनकी कटीली भौंह उनकी प्रकाशमय आंखों को चमत्कर्ष बना देते हैं। एक ही कान में मोती उनको आज के युवा-युवती से जोड़ता है। लेकिन इंद्रेश जी के चेहरे में सबसे आकर्षित करने वाली तो उनकी भावमय, रसमय आंखें ही हैं जो अनकहा भी कह जाती हैं। यानी कूल मिला कर एक व्यक्तित्व जो कला में श्रेष्ठ, गायन में सुरीला और रूप में सुखमय निखर कर आता है। राग व अनुराग से भरा पूरा चरित्र।

इन सब चेहरे के चित्र से अलग इंद्रेश जी का चरित्र उनके क्रिकेट प्रेम से भी झलकता है। युवाओं के खेल प्रेम से उन्हें जोड़ता भी है। भारत-न्यूजीलैंड टेस्ट मैच श्रृंखला का कानपुर टेस्ट देखने उनको ग्रीन पार्क मैदान पर भी ले जाता है। मानव कल्याण, जीव कल्याण व गऊ कल्याण का पाठ पढ़ाते हुए इंद्रेश जी जीवन को युवाओं के लिए आनंद का खेल बना देते हैं। और चंडीगढ़ में सुहावनी सुंदर संगत जमा देते हैं। भारतीयों में आज अगर थोड़ा सा भी कुछ सनातन बचा है तो उसे भी जगाते हैं। जिसको देखा-सुना नहीं उसके प्रति प्रेम भक्ति जगाते हैं।

सनातन धर्म की सच्ची शिक्षा इन्द्रेश जी जैसे ही पंथनिष्ठ कथा-संतों से सजती है। समाज को नैतिक निष्ठा के लिए संजोता है। समरस, समभाव का समाज रचने में लगती है। आज का युवा भी इंद्रेश जी के संगीतमय, भक्तिमय और रसमय भागवत कथा पाठ पर चल व थिरक भी सकता है। इंद्रेश जी देश के दुलारे हैं क्योंकि उनके जैसे कथा-संतों से ही सनातन धर्म चलता आया है।

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