राजसी परिवार की कहानी शानदार ढंग से शुरू होती है, मगर एपिसोड्स के बढ़ने के साथ कहीं कहीं बिखराव को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है। राजसी जिंदगी और सेट डिजाइन की डिटेलिंग शानदार हैं। कई ऐसे दृश्य हैं जो इस शो को भव्यता प्रदान करने में खासा योगदान देते हैं। सीरीज में महिलावाद और समलैंगिक संबंधों को थोड़ी और सहजता से लाया जाता तो दिलचस्पी और बढ़ती।
सिने–सोहबत
आज के ‘सिने-सोहबत’ में पिछले दिनों ओटीटी पर आई हिंदी वेब सीरीज़ ‘द रॉयल्स’ के माध्यम से राजसी घरानों की खोई हुई ठसक की कसक पर चर्चा करते हैं। आठ एपिसोड वाली इस वेब सीरीज का निर्देशन किया है प्रियंका घोष और नूपुर अस्थाना ने। इस कहानी में कई गंभीर मुद्दों को टटोलने की कोशिश हुई है।
राजसी परंपराओं के ताने-बाने, झूठे दिखावे, गहरे राज़, आपसी द्वेष के साथ साथ फ़ेमिनिज़्म और फिर एलजीबीटीक्यू से जुड़े मुद्दों को भी बारीक़ी से दिखाने की कोशिश हुई है है। कहानी के ज़्यादातर एलिमेंट्स पहले भी देखे सुने से हैं लेकिन कलाकारों का अभिनय कौशल दर्शकों को इतना तो ज़रूर बांध लेता है कि वे इसे ‘वन टाइम वाच लिस्ट’ में डाल ही देते हैं।
कहानी की बात करें, तो राजस्थान के मोरपुर के राजसी घराने के बारे में यही कहा जा सकता है कि हर चमकती चीज सोना नहीं होती। वही हाल इन रॉयल्स का भी है। मोरपुर के महाराज युवनाथ सिंह (मिलिंद सोमन) के आकस्मिक निधन के बाद मोरपुर के मोतीबाग महल का कार्यभार महाराज के बड़े बेटे अविराज सिंह (ईशान खट्टर) को सौंपा जाता है। मगर महाराज के जाने के बाद अविराज की मां रानी पद्मजा (साक्षी तंवर) और मांजी साहिब (जीनत अमान) के सामने यह राज खुल जाता है कि उनका राजपाठ कर्ज में डूबा हुआ है।
द रॉयल्स वेब सीरीज का विश्लेषण
इस कर्ज से छुटकारा दिलाने के लिए सोफिया कनमनी (भूमि पेडनेकर), वर्क पोटैटो नामक कंपनी के जरिए आम जनता को राजसी ठाट बाट से रूबरू करवाकर रॉयल बीएनबी शुरू करने की पहल करती है। जहां आम लोगों को राजसी दुनिया को करीब से अनुभव करने का मौका मिलेगा और राजसी परिवार आर्थिक समस्याओं से छुटकारा पा सकेगा। मगर जैसे-जैसे सोफिया इन रॉयल्स के करीब जाती है, कहानी के आगे बढ़ने के साथ ही परत दर परत इनका शाही मुखौटा उतरने लगता है।
अविराज नए राजकुमार के रूप में अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाना चाहता। उसके छोटे भाई दिग्विजय (विहान समत) को शेफ बनने की धुन सवार है, जबकि दिव्य रंजनी (काव्या त्रेहान) अपनी पहचान और सोच के साथ संघर्ष करने वाली राजकुमारी है।
यहां राजसी परिवार को आर्थिक परेशानी से छुटकारा दिलाने के लिए आई सोफिया और अविराज के बीच पहले तकरार और फिर प्यार का सिलसिला शुरू होता है, जहां रिश्तों की जटिलता बढ़ती जाती है। कहानी जैसे-जैसे आगे बढ़ती जाती है, हालत और किरदार जटिल होते जाते हैं, मगर क्या ये अपनी मंजिल तक पहुंच पाते हैं, इसका पता आपको सीरीज देखने के बाद ही चल पाएगा।
राजसी परिवार की कहानी शानदार ढंग से शुरू होती है, मगर एपिसोड्स के बढ़ने के साथ कहीं कहीं बिखराव को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है। राजसी जिंदगी और सेट डिजाइन की डिटेलिंग शानदार हैं। कई ऐसे दृश्य हैं जो इस शो को भव्यता प्रदान करने में खासा योगदान देते हैं। सीरीज में महिलावाद और समलैंगिक संबंधों को थोड़ी और सहजता से लाया जाता तो दिलचस्पी और बढ़ती।
बीच-बीच में कहानी अपनी रफ्तार पकड़ती है, कुछ सीन्स में इमोशनल आर्क भी मजबूत मालूम पड़ता है, मगर फिर प्रेडिक्टिबल हो जाती है। इस सीरीज का बैकग्राउंड स्कोर और गाने शानदार और सब्जेक्ट के हिसाब से बेहद प्रासंगिक हैं।
इस बात में किसी को कोई शक नहीं कि इस सीरीज़ के मेल प्रोटागोनिस्ट ईशान खट्टर एक शानदार कलाकार हैं। ईशान अभी अभी संपन्न हुए कान फ़िल्म फेस्टिवल में भी धूम मचाने वाली नीरज घेवान की फ़िल्म ‘होमबाउंड’ के हीरो हैं लेकिन ‘द रॉयल्स’ के इस रोल के लिए उनके बड़े भाई साहब शाहिद कपूर की कमी बहुत खली। कई बार ऐसा भी महसूस हुआ कि क्या पता मेकर्स ने शाहिद को सोचकर ही ये किरदार लिखा हो और इसमें कास्टिंग के लिए
पहले उन्हें ही अप्रोच किया हो। शाहिद इस किरदार में एक अलग जादू भर देते। कास्टिंग में चूक हुई है। भूमि पेडनेकर ने अपनी किरदार के साथ न्याय किया है। सीनियर एक्ट्रेस जीनत अमान जानदार लगी हैं। हालांकि उन्हें और अधिक स्क्रीन स्पेस मिलना चाहिए था। हो सकता है अगले सीजन में इस बात का ध्यान रखा जाए।
पहले टेलीविज़न सीरियल्स और बाद में सार्थक फिल्म ‘दंगल’ से छाई साक्षी तंवर अपने किरदार में चौंकाती हैं। विहान समत और काव्या त्रेहान ने अपने चरित्रों को खूबसूरती से पेश किया है। बुजुर्ग बॉलीवुड के हीरो के रूप में चंकी पांडे मनोरंजन करवाते हैं। नोरा फतेही और डीनो मोरिया स्पेशल अपीयरेंस में हैं। उदित अरोड़ा, लीसा मिश्रा और सुमुखि सुरेश ने भी अच्छा काम किया है।
‘द रॉयल्स’ की कहानी की एक रोचक बात ये है कि इसमें सभी प्रमुख किरदारों की अपनी खुद की आतंरिक यात्रा को भी काफी संवेदनशीलता से दिखाया गया है। नायक अविराज पहले अपनी ज़िम्मेदारियों से भाग कर न्यूयॉर्क में रहते हुए एक कूल लाइफ जीना चाहता है लेकिन धीरे धीरे वो अपनी हकीकत को समझ कर अपनी तथाकथित कूल से अनुकूल की यात्रा करता है। प्रिंस अविराज का छोटा भाई दिग्विजय जो दिल से शेफ़ है और पहले रसोई में छुप कर ज़ायक़ेदार भोजन पकाया करता है वो भी अपने कम्फर्ट ज़ोन से निकल कर किसी आम प्रतिभागी की तरह कुकिंग रियलिटी शो में हिस्सा लेने निकलता है।
भूमि के किरदार में भी शेड्स के साथ प्रयोग किए गए हैं और उन्होंने अपने किरदार को सार्थकता प्रदान किया है। दिलचस्प है कि इस कहानी में रॉयल्स को सिर्फ़ पुराने ‘राज’ के स्वाग में न रखकर उन्हें आज के ज़माने के ज़रूरी ‘काज’ से भी जोड़कर दिखाया गया है। अच्छी ब्लेंडिंग है। इस तरह के पुराने ज़माने के राजसी घरानों की कहानियों के किरदारों की खोटी प्रासंगिकता और जीवन के कॉन्फ्लिक्ट्स को देखने में एक अलग तरह का आनंद है।
आज़ादी के पहले के रजवाड़ों की अप्रासंगिकता और उनके महलों में रहने वाले चमगादड़ लगातार ये याद दिलाने का काम करती है चलो अच्छा हुआ अब हम डेमोक्रेसी में सांस लेते हैं। राजसी घरानों की खोई ठसक की कसक आज के आम दर्शक के चेहरे पर एक हलकी मुस्कान तो ले ही आती है। अगर आपको राजसी परिवारों के इन रजवाड़ों की ‘लिव लाइफ किंग साइज़’ वाली कहानियों में मन लगता है तो आप ये अनुभव ले सकते हैं। नेटफ़्लिक्स पर है, देख लीजिएगा।
(पंकज दुबे मशहूर बाइलिंग्वल उपन्यासकार और चर्चित यूट्यूब चैट शो, “स्मॉल टाउन्स बिग स्टोरिज़” के होस्ट हैं।)
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