बिहार विधानसभा का नतीजा ऐसा होगा, इसकी उम्मीद किसी को नहीं थी। न तो नरेंद्र मोदी ने सोचा था, न अमित शाह ने और न नीतीश कुमार ने। यह अलग बात है कि नारा 225 सीट जीतने का था या बातें 2010 की तरह 206 सीट जीतने की हो रही थी। लेकिन असल में किसी ने नहीं सोचा था कि इतना बड़ा जनादेश मिलेगा। तभी अमित शाह ने 160 सीटों की बात कही थी। उन्होंने जब 160 सीटों का लक्ष्य रखा तब भी एनडीए की साझीदार पार्टियां बहुत आश्वस्त नहीं थीं। सोचें, पहले चरण की 121 सीटों के चुनाव के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने खुद कहा कि विपक्ष की 65 वोल्ट का झटका लगा है। इसका अर्थ यह निकाला जा रहा था कि पहले चरण में एनडीए 65 सीटें जीत रहा है।
इस अनुपात में दोनों चरण मिला कर 130 से 140 सीटें हो सकती थीं। दूसरे चरण के चुनाव में मतदान पूरी तरह से दो ध्रुवीय हो गया। फिर भी डेढ़ सौ से ज्यादा सीट जाने की उम्मीद एनडीए के नेता नहीं कर रहे थे। भाजपा के बिहार प्रदेश के एक नेता ने अनौपचारिक बातचीत में कहा था कि 140 सीटें पक्की हैं और 40 सीटों पर नजदीकी मुकाबला है, जहां मेहनत करनी होगी। यानी मेहनत करके 180 सीटों तक पहुंचने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य था। उस नेता ने भी दो सौ सीटों के बारे में नहीं सोचा था।
ऊपर से तमाम एक्जिट पोल नजदीकी मुकाबला दिखा रहे थे। सबके आंकड़े में दोनों गठबंधनों के बीच दो से चार फीसदी वोट का अंतर दिख रहा था और ऐसा माना जा रहा था कि अगर एक दो फीसदी वोट भी इधर उधर हुए तो समीकरण बदल जाएगा। लेकिन दोनों गठबंधनों के बीच अंतर 10 फीसदी वोट का हो गया। यह भी किसी ने नहीं सोचा था। सबसे हैरान करने वाली बात यह रही कि पिछली बार नीतीश कुमार ने 11 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे, जिसमें से एक भी नहीं जीत पाया था, जबकि इस बार सिर्फ चार में से दो उम्मीदवार चुनाव जीत गए। जनता दल यू की ओर चैनपुर सीट पर जमां खान जीते, जबकि अररिया सीट पर शगुफ्ता अजीम चुनाव जीत गईं। इस बारे में भी किसी ने नहीं सोचा था।
इस बार जदयू पूरी तरह से भाजपा के रंग में रंगी हुई दिखाई दी। योगी आदित्यनाथ ने जनता दल यू के उम्मीदवारों की सीटों पर प्रचार किया। पूरे गठबंधन ने सिर्फ पांच मुस्लिम उम्मीदवार उतारे, जिसमें चार जदयू के और एक लोजपा का था। अमित शाह से पूछा गया कि भाजपा ने कोई मुस्लिम उम्मीदवार नहीं दिया तो उन्होंने कहा कि इसमें क्या नई बात है, भाजपा पहले भी मुस्लिम उम्मीदवार नहीं देती थी। इसके बावजूद दो मुस्लिम उम्मीदवार जीत गए। इतना नहीं 50 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम आबादी वाले ठाकुरगंज सीट पर भी जदयू के गोपाल अग्रवाल चुनाव जीत गए।
प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी के कारण जिन सीटों पर नजदीकी मुकाबले का अंदाजा लगाया जा रहा था उन सीटों पर भी भाजपा और जदयू के उम्मीदवार भारी अंतर से जीते हैं। कुम्हरार की सीट पर प्रोफेसर केसी सिन्हा के कारण भाजपा मुश्किल में लग रही थी लेकिन वह 40 हजार से ज्यादा वोट से जीती। ऐसे ही दीघा जन सुराज के रितेश रंजन के कारण मुश्किल हो रही थी तो वह सीट भाजपा 50 हजार वोट से जीती। भोजपुरी स्टार खेसारी लाल यादव के सामने भाजपा की स्थिति कमजोर थी और ऊपर से एक निर्दलीय वैश्य उम्मीदवार के कारण मुश्किल बढ़ रही थी पर वह सीट भी भाजपा जीत गई। बिहार से सबसे पॉपुलर यूट्यूबर मनीष कश्यप जन सुराज की टिकट पर चनपटिया सीट लड़ रहे थे और माना जा रहा था कि वे जीतेंगे या अपनी जाति के भाजपा उम्मीदवार को हरवा देंगे लेकिन वहां भी भाजपा ने बड़ी जीत हासिल की।
दरभंगा की अलीनगर सीट पर लोक गायिका मैथिली ठाकुर को टिकट देकर भाजपा फंस गई थी लेकिन वहां भी उसे बड़ी जीत मिली। बेतिया सीट पर पूर्व उप मुख्यमंत्री रेणु देवी बहुत देर तक पीछे चल रही थीं। बिहार में सबसे ज्यादा वोट से मेयर चुनीं गईं गरिमा सिकारिया के पति रोहित शिकारिया और जन सुराज के अनिल कुमार सिंह के कारण रेणु देवी मुश्किल में थीं लेकिन वे भी चुनाव जीत गईं। इसी तरह रक्सौल की सीट पर भाजपा के कुशवाहा और जन सुराज के कुर्मी उम्मीदवार की लड़ाई में राजद के वैश्य उम्मीदवार के जीतने की संभावना बताई जा रही थी लेकिन वहां भी भाजपा जीत गई।
