Naya India-Hindi News, Latest Hindi News, Breaking News, Hindi Samachar

कांग्रेस कोई सबक नहीं सीखती

एक तरफ देश की बदलती हुई राजनीति है तो दूसरी ओर कांग्रेस पार्टी है, जो कुछ भी सीखने के लिए तैयार नहीं दिख रही है। उसके नेता आज भी इस उम्मीद में हैं कि अंततः लोग भाजपा और नरेंद्र मोदी व अमित शाह से ऊब जाएंगे तो कांग्रेस को वोट करेंगे। इसके लिए कांग्रेस को सिर्फ इतना करना है कि प्रासंगिक बने रहना है। राजनीति करते रहनी है। सो, जीत हार से निरपेक्ष कांग्रेस के नेता राजनीति कर रहे हैं। उनको लग रहा है कि मुख्य विपक्षी पार्टी बने रहेंगे तो देर सबेर सत्ता आ जाएगी। और इसके लिए जितनी राजनीति की जानी चाहिए उतनी हो रही है। पूछिए कि मोदी और शाह की तरह राहुल गांधी मेहनत क्यों नहीं करते तो कांग्रेस के नेता बताने लगेंगे कि राहुल ने अभी हाल में तो भारत जोड़ो यात्रा की। ठीक है कि राहुल ने भारत जोड़ो यात्रा की लेकिन राजनीति तो रोजमर्रा का काम है। एक बार पांच महीने पैदल चल लेने से जीवन भर की राजनीति नहीं सध जाती है। राजनीति में रोज और 24 घंटे खपे रहना होता है।

कांग्रेस के सर्वोच्च नेता राहुल गांधी कभी इस अंदाज में राजनीति नहीं करते हैं। लेकिन मुश्किल यह है कि देश में इस समय भाजपा विरोध के नाम पर यूट्यूबर्स और सोशल मीडिया के पत्रकारों की जो बाढ़ आई है वह राहुल गांधी के इसी नजरिए को जस्टिफाई करता रहता है। वह इस पर लहालोट होता है कि राहुल गांधी स्विमिंग कर रहे हैं, राहुल गांधी पैराग्लाइडिंग कर रहे हैं, राहुल गांधी कैम्ब्रिज में लेक्चर दे रहे हैं और इसके साथ ही वह नरेंद्र मोदी का मजाक उड़ाते हुए कहेगा कि क्या वे ऐसा कर सकते हैं! अरे भाई नरेंद्र मोदी यह करने के लिए राजनीति में नहीं आए हैं। वे सत्ता के लिए राजनीति में आए हैं और उसके लिए जो करना है वह करते हैं।

फिर यह तर्क आता है कि राहुल गांधी सत्ता के वैसे लालची नहीं हैं। तो कैसे लालची हैं? और अगर सत्ता की राजनीति नहीं करनी है तो फिर सब छोड़ दें, जिसको सत्ता का लालच होगा, जिसमें जुनून और जज्बा होगा वह करेगा! लेकिन वह भी नहीं करना है। कांग्रेस पार्टी का सर्वोच्च नेता बने रहना है, कमान संभाले रहनी है, मोदी का विकल्प बनने का भ्रम पाले रहना है लेकिन मोदी की तरह राजनीति नहीं करनी है! सोशल मीडिया के बौद्धिक और कांग्रेस का इकोसिस्टम राहुल गांधी की हर उलटी सीधी बात को न्यायसंगत ठहराता है, जिससे वे और उनकी टीम इस भ्रम में रहते हैं, जो कर रहे हैं वह ठीक है।

तभी न तो कांग्रेस का संगठन बदलने की कोई कवायद होती है, न कांग्रेस को रिइन्वेंट करने का कोई प्रयास होता है, न नया नैरेटिव सेट किया जाता है और न आक्रामक तरीके से प्रचार प्रसार का काम होता है। सोचें, मल्लिकार्जुन खड़गे अक्टूबर 2022 से कांग्रेस के अध्यक्ष हैं और प्रियंका गांधी वाड्रा उनकी टीम में महासचिव हैं लेकिन प्रियंका बिना किसी जिम्मेदारी के हैं। पहले वे उत्तर प्रदेश की महासचिव थी लेकिन खड़गे की टीम में बिना जिम्मेदारी के हैं। वे वायनाड से लोकसभा का चुनाव लड़ने पहुंचीं तो राहुल गांधी ने निश्चित जीत वाली सीट पर चार दिन चुनावी कार्यक्रम किया। देश के 14 राज्यों की 47 विधानसभा और दो लोकसभा सीट पर उपचुनाव घोषित हुए थे लेकिन राहुल की नजर सिर्फ वायनाड पर रही, जहां कांग्रेस निश्चित रूप से जीत रही है। दो राज्यों में विधानसभा के चुनाव हो रहे हैं लेकिन राहुल गांधी इस अंदाज में प्रचार करने गए कि चार चार सभाएं कर देना पर्याप्त है। प्रधानमंत्री एक दिन में दो दो सभाएं और रोड शो कर रहे हैं लेकिन कांग्रेस के टटपूंजिया मैनेजर अब भी इस सोच में हैं कि राहुल गांधी को बचा बचा कर खर्च करना है।

Exit mobile version