Naya India-Hindi News, Latest Hindi News, Breaking News, Hindi Samachar

जनता ने जिंदा रखा है

एक फिल्मी डायलॉग के हिसाब से भारतीय राजनीति के बारे में कहा जाता है कि कांग्रेस और दूसरी विपक्षी पार्टियों को नरेंद्र मोदी और अमित शाह जीने नहीं दे रहे हें और जनता मरने नहीं दे रही है। इस बार पांच राज्यों के चुनाव में भी यह दिखा कि जनता ने कांग्रेस को जीत नहीं दिलाई लेकिन मरने भी नहीं दिया। कांग्रेस पांच में चार राज्यों में चुनाव हार गई। वह सिर्फ एक तेलंगाना में चुनाव जीती। नया राज्य बनने के बाद हुए तीसरे चुनाव में पहली बार कांग्रेस जीती और पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई। कांग्रेस हिंदी पट्टी के तीन राज्यों और एक पूर्वोत्तर के राज्य में चुनाव हार गई। इसके बावजूद इन चार राज्यों में कांग्रेस को चार करोड़ से ज्यादा वोट मिले।

अगर तेलंगाना को भी जोड़ लें तो पांच राज्यों में कांग्रेस को भाजपा के मुकाबले 10 लाख वोट ज्यादा मिले हैं। हालांकि यह एक तकनीकी मामला है और हिंदी पट्टी के राज्यों में भाजपा को कांग्रेस से 50 लाख वोट ज्यादा मिले हैं। फिर भी मिजोरम छोड़ कर बाकी चारों राज्यों में कांग्रेस को 40 फीसदी के करीब वोट मिले हैं। किसी भी पार्टी के लिए इतना वोट बहुत महत्व रखता है। राजस्थान में कांग्रेस दो फीसदी वोट से पीछे रही तो छत्तीसगढ़ में चार फीसदी वोट का अंतर रहा। मध्य प्रदेश में जरूर कांग्रेस आठ फीसदी वोट से पीछे रही। लेकिन बाकी दो राज्यों में उसने कड़ी टक्कर दी।

सो, भाजपा के लिए भी यह खतरे की घंटी है। भाजपा नेताओं को लग गया है कि कांग्रेस मुक्त भारत नहीं होना है। जहां कांग्रेस है और भाजपा से सीधी लड़ाई है वहां वह टक्कर भी दे सकती है। अगर राजस्थान विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस के वोट को लोकसभा के हिसाब से देखें तो कांग्रेस नौ से 10 लोकसभा सीट जीत सकती है। सो, निश्चित रूप से भाजपा ने कांग्रेस की इस चुनौती को समझा होगा और उस हिसाब से अपनी तैयारी करते हुए कांग्रेस को मजबूत विपक्ष के तौर पर देख रही होगी।

इन आंकड़ों का एक फायदा कांग्रेस को यह हुआ है कि जो विपक्षी पार्टियां तलवार लेकर खड़ी थीं उनको लगा है कि कांग्रेस अब भी बड़ी ताकत है। अगर कांग्रेस को दो या तीन राज्यों में जीत गई होती तो कांग्रेस के नेताओं का दिमाग खराब होता और वे फिर विपक्षी पार्टियों पर दबाव बनाते। वह नहीं हुआ है। लेकिन अगर कांग्रेस को इतने वोट नहीं मिले होते और वह बुरी तरह से हारी होती तो विपक्षी पार्टियों का दिमाग खराब होता और वह कांग्रेस के ऊपर दबाव बना कर ज्यादा सीट हासिल करने की कोशिश करती। यह भी संभव था कि विपक्षी पार्टियां कांग्रेस से ज्यादा सीट हासिल नहीं कर पातीं तो उसे उसके हाल पर छोड़तीं। लेकिन अब शुरुआती प्रतिक्रिया के बाद सारी विपक्षी पार्टियां कांग्रेस के साथ गोलबंद हुई हैं। लगभग सभी विपक्षी पार्टियों ने कहा है कि वे कांग्रेस के साथ मिल कर अगला चुनाव लड़ेंगी। विपक्षी गठबंधन की अगली बैठक जल्दी ही होगी और उसमें सीट बंटवारे से लेकर चुनावी रणनीति और मुद्दों आदि पर चर्चा होगी।

Exit mobile version