Naya India-Hindi News, Latest Hindi News, Breaking News, Hindi Samachar

भारत विश्व आईने में मानो बिहार!

जैसे शेष भारत में बिहार की एक अलग पहचान है वैसी ही पहचान दुनिया में भारत की है। पचास वर्षों से बिहार बता रहा है कि लोग वहा से भाग रहे हैं। भय के कारण या अवसर और रोजगार की चाह में पलायन! क्या वैसी ही हकीकत भारत की नहीं है? सोचें, पिछले पंद्रह वर्षों से भारतीयों का पलायन क्यों कर है? अमीर, बड़े लोगों में दुबई, सिंगापुर, अमेरिका आदि जगह जाने के पीछे तरह-तरह के भय हैं। चिंताएं हैं। ढेरों हैं ऐसे आंकड़े जो बताते हैं कि उद्यमी-अमीर भारत छोड़ रहे हैं। हाल में सुनने को मिला कि अंबानियों ने इस बार ब्रिटेन में दिवाली मनाई! खाते-पीते मध्यम-अमीर वर्ग की निगाहों में भारत वह जंगल हो गया है, जहां न सांस साफ है, न वह घूमने लायक है और न शादी या सालगिरह मनाने लायक न निवेश लायक! सोचें, क्या ऐसी बुरी दशा जंगल में होती है?

तभी पते का अहम मसला भारत के लोगों को दुनिया में इस सोच में देखा जाना है कि एक भारतीय (बिहारी) सौ बीमारी। दीवाली पर अमेरिका में सोशल मीडिया में ये पोस्ट थी कि हिंदूओं ने आकर कनाडा, अमेरिका के जंगल तबाह किए! भारतीय छात्रों के साथ बदसलूकी की खबरें आम हैं। संदेह नहीं कि बिहार की तरह ही शिक्षा के साथ अवसर के जुगाड़ में भारत से जो पलायन हो रहा है वह इस सोच में है कि कैसे भी हो, कोई भी अवसर हो उसे पाना है। कुछ भी करना है। तीस साल पहले भारत से लोग खाड़ी, आसियान देशों में मजदूरी, कारीगरी, कंस्ट्रक्शन जैसे किसी भी तरह के अवसर की तलाश में पलायन कर रहे थे। बाद में आईटीकर्मी के नाते जाने लगे।

मगर तीस-चालीस साल पहले दक्षिण से, केरल से भारतीयों का पलायन कार्य-अवसर विशेष से हुआ करता था। पर मिलेनियम पीढ़ी के बाद से भारत में हर जगह से, किसी भी तरह, दुनिया के किसी भी कोने में पलायन का ट्रेंड है। सामान्य बात नहीं है कि बेसिक आईटी शिक्षा लिए भारतीय लड़के कंपूचिया, म्यांमार, वियतनान, लाओस आदि में डिजिटल अपराध गैंग की चंगुल में फंसे। मतलब वही मनोविज्ञान काम कर रहा है जो बिहार से बाहर रोजी-रोटी, बेगारी के लिए पलायन का था।

तभी अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारतीयों को हथकडी लगाकर लौटाया तो बाकी देशों में भी सभी तरफ भारतीय प्रवासियों पर फोकस हैं।

पर भारत निरूत्तर। मोदी सरकार लगातार ट्रंप की रीति-नीति (खासकर छात्रों के अवसर, पेशेवर वीजा आदि में) के आगे पस्त है। वे मई से भारत को बार-बार जलील कर रहे हैं। भारत मजबूरन मौन। सोच सकते हैं इससे कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, चीन, यूरोपीय संघ, खाड़ी-अफ्रीकी, आसियान देशों में भारत की इमेज कैसी बन रही होगी? ताजा खबर है कि प्रधानमंत्री मोदी ने आसियान बैठक, पूर्व एशिया बैठक से वैसे ही किनारा काटा है जैसे संयुक्त राष्ट्र के महाधिवेशन और शर्म अल शेख की गाजा शिखर बैठक से काटा था। ध्यान रहे आज से दक्षिण कोरिया में एपेक, आसियान-पूर्व एशियाई देशों के संगठनों की शिखर कूटनीति है। चीन के राष्ट्रपति शी जिनफिंग व ट्रंप की मुलाकात से लेकर समूचे दक्षिण-पूर्व एशिया, पूर्वी एशियाई देशों में विश्व व्यापार, राजनीति के जो दांवपेंच होंगे उन सबसे भारत के बाहर होने, प्रधानमंत्री मोदी के बाहर रहने का वही अर्थ है जो अरब-खाड़ी देशों के गाजा जमावड़े में शर्म अल शेख में उनकी अनुपस्थिति का था।

मतलब ट्रंप की वजह से अरब-खाड़ी देशों में पाकिस्तान को नए महत्व और आसियान व पूर्व एशिया में ट्रंप-शी जिनफिंग के दबदबे से प्रधानमंत्री मोदी दूर रहे हैं तो वजह घबराहट है। जबकि दूसरी तरफ चर्चा यह भी है कि तौबा कर भारत सरकार अंततः अमेरिका के कहे अनुसार कृषि उत्पादनों में भी खरीदारी करेगी। रूस से तेल आयात घटाएगी। क्यों? इसलिए क्योंकि भारत के पास है क्या जो वह कह सके कि उसे नहीं चाहिए अमेरिका से अवसर। हकीकत है कि प्रधानमंत्री मोदी हों, भारत सरकार हो या भारत के धन्ना सेठ या आम भारतीय सभी मजबूर है अमेरिका में याकि दुनिया में अवसर की ताक में!

Exit mobile version