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युद्ध की तैयारी रखें!

पाकिस्तान से निश्चित लड़ाई होगी। और चीन करवाएगा। यों पाकिस्तान स्वंय भी लड़ना चाहता है वही राष्ट्रपति शी जिनफिंग के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की वैश्विक उथलपुथल में मौका जबरदस्त है। चीन के कारण ही ट्रंप की लल्लोचप्पो के बावजूद पुतिन ने यूक्रेन से सुलह की बात नहीं बढ़ाई। चीन को हर हाल में अमेरिका का वर्चस्व खत्म करना है। राष्ट्रपति शी के दो उद्देश्य साफ दिख रहे हैं। अपनी धुरी पर विश्व राजनीति को केंद्रित करना तथा अमेरिका व डॉलर करेंसी को दूसरे नंबर पर धकेलना। इसलिए रूस-यूक्रेन की लड़ाई चलती रहेगी। वही चीन देर सबेर ताईवान पर कब्जा कर प्रशांत-एशिया क्षेत्र में वर्चस्व स्थापित करेगा। इधर दक्षिण एशिया में भारत से सीधे लड़ने की बजाय वह पाकिस्तान को भारत से लड़ा कर भारत का महाशक्ति होने का वैश्विक दंभ तोड़ने का इरादा बनाए हुए है।

भारत बनाम पाकिस्तान को भिड़ाने की जल्दी क्यों? इसलिए कि ऑपरेशन सिंदूर से भारत के आत्मबल, सैनिक ताकत, वैश्विक हैसियत का इस्लामाबाद, बीजिंग सहित सभी विश्व राजधानियों में पोस्टमार्टम गहरा हुआ है। मोदी सरकार भारत के लोगों से चाहे जितना छुपाए रखे, दुनिया ने मोदी सरकार की जर्जरता को बूझ लिया है। आज भी पुतिन के एक सहायक ने ट्रंप-पुतिन की लंबी फोन वार्ता का ब्योरा देते हुए ट्रंप द्वारा ही भारत और पाकिस्तान में सीजफायर करवाने की बात कही। गुरूवार को पाकिस्तान का विदेश मंत्री यह कहते हुए था कि शिमला समझौता अब खत्म है। अर्थात मसला दोपक्षीय नहीं रहा।

सो, चीन की रणनीति है कि वह भारतीय बाजार में सप्लाई से उसे अपने ऊपर निर्भर रख बेइंतहां कमाए। वही अपने गुर्गे पाकिस्तान को हथियार दे कर भारत से भिड़ाए। तथ्य नोट करेः ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के साथ चीन की पीपल्स लिबरेशन आर्मी एयर फोर्स ने तुरंत पीएल-15 मिसाइलें बीवीआर (Beyond Visual Range) श्रेणी की हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइलें पाकिस्तान को पहुंचाई। जानकार रिपोर्टों के अनुसार पाकिस्तान के जेएफ-17 ब्लॉक थ्री लड़ाकू विमानों को इन पीएल-15 मिसाइलों से लैस किया गया है। चीन ने 2021 में ही पाकिस्तान की वायु रक्षा प्रणाली को बहुउद्देश्यीय जे-10सी लड़ाकू विमानों से लैस किया हुआ है। चीन से उसे सप्लाई और रणनीति जानकारियां मिलती हुई थीं तो उधर तुर्की से पाकिस्तान में ड्रोन से भरे विमान पहुंचे।

उसके बाद क्या हुआ? चीन ने अफगानिस्तान और पाकिस्तान के साथ बैठकर वह समझौता किया, जिससे तीनों देशों में साझा पक्का बने। चीन प्रोएक्टिव पाकिस्तान का मददगार है। जबकि दूसरी तरफ उसने भारत की ऑटोमोबाइल कंपनियों में हाहाकार बनवा दिया है। चीन ने भारत को दुर्लभ पृथ्वी खनिज (rare earth mineral) देना कम कर दिया है। इससे भारत का रक्षा- इलेक्ट्रोनिक उत्पादन ठप होगा। चीन ने अप्रैल से इनकी आयात प्रक्रिया को इतना जटिल बना दिया है कि भारत की सामान्य ऑटो कंपनियों को भी रक्षा क्षेत्र में इनके उपयोग नहीं होने की गारंटी का ‘एंड-यूज़ सर्टिफिकेट’ देना पड़ रहा है। ऑटोमोबाइल कंपनियां कार उत्पादन रोक रही हैं। कल ही खबर थी कि मारूति-सुजुकी ने स्विफ्ट का उत्पादन रोका है। यह खनिज भारत में उत्पादित नहीं होता है।

ऑटोमोबाइल कंपनियों, एयरोस्पेस निर्माताओं, सेमीकंडक्टर कंपनियों और रक्षा उत्पादक कंपनियों का उच्च-प्रदर्शन (high-performance) तथा निम्न-स्तरीय (low-end) मैग्नेट के बिना काम नहीं चलता है। चीन यदि ऑटोमोबाइल कंपनियों की आवश्यकता का हल्का मैग्नेट देने में भी भारत को रूला कर सप्लाई दे रहा है तो सोचें भारत को वह कैसे रक्षा उत्पादन में आगे बढ़ने देने या आत्मनिर्भर बनने देने का दुर्लभ पृथ्वी खनिज देगा? ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद सप्लाई को ले कर बना हाहाकार बताता है कि चीन भारत को मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र में अपना विकल्प नहीं बनने देगा। जबकि राष्ट्रपति शी जिनफिंग ने हाल में वियतनाम जा कर उसे प्रोत्साहित किया कि ट्रंप के टैरिफ की चिंता नहीं करें। हम सब देंगे और लेंगे। और नोट रखें जी-7 की बैठक के बाद प्रधानमंत्री मोदी ब्राजील में आयोजित चीनी छाया की ब्रिक्स बैठक में जाएंगे। मेरा मानना है वहां शी जिनफिंग अपने मोदीजी को पाठ पढ़ाएंगे मेरी शरण में आओ तो सब पाओगे। और यह वही होगा जो पिछले ग्यारह वर्षों से लगातार है। जो नेहरू के समय भी था और मोदी के समय में भी है कि आओ साथ-साथ झूला झूलें। मैं तुम्हें ठगूं तुम दूसरों को ठगो और करो धंधा मेरी विश्गुरूता मानकर!

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