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वक्फ कानून का मामला पीछे गया

पहलगाम

जम्मू कश्मीर के पहलगाम की घटना और उससे पहले पाकिस्तानी सेना के प्रमुख जनरल असीम मुनीर की भड़काऊ भाषण ऐसे समय में हुआ है, जब भारत में कई किस्म के सांप्रदायिक विवाद चल रहे हैं। एक बड़ा विवाद वक्फ संशोधन कानून का है, जिसे सरकार ने संसद के बजट सत्र में पास किया। तीन और चार अप्रैल को यह विधेयक क्रमशः लोकसभा और राज्यसभा से पास हुआ। छह अप्रैल को राष्ट्रपति ने इसकी मंजूरी दी और केंद्र सरकार ने दो दिन बाद इसे लागू करने की अधिसूचना जारी कर दी।

इस कानून के खिलाफ दो स्तर पर लड़ाई चल रही है। एक लड़ाई सुप्रीम कोर्ट में चल रही है, जहां 70 से ज्यादा याचिकाएं दायर की गई हैं तो दूसरी लड़ाई सड़क पर चल रही है, जिसका नेतृत्व ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड कर रहा है। पहलगाम की घटना ने वक्फ की लड़ाई से देश का ध्यान भटका दिया है।

गौरतलब है कि ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड यानी एआईएमपीएलबी ने 10 अप्रैल से 87 दिन के विरोध प्रदर्शन का ऐलान किया था और कहा था कि सात जुलाई तक उसका प्रदर्शन चलेगा। इस दौरान वक्फ कानून के खिलाफ एक करोड़ लोगों के दस्तखत जुटाए जाएंगे और उन्हें प्रधानमंत्री को भेजा जाएगा। इसके बाद एआईएमपीएलबी की ओर से विरोध प्रदर्शन के दूसरे चरण की घोषणा होनी थी।

पहलगाम हमले से वक्फ विरोध धीमा पड़ा

एआईएमपीएलबी के साथ साथ जमात ए उलमा ए हिंद की ओर से भी प्रदर्शन हो रहा था और इसके अलावा हर जुमे को नमाज के बाद किसी न किसी रूप में विरोध प्रदर्शन किया जा रहा था। परंतु पहलगाम में आतंकवादियों द्वारा पर्यटकों से ‘कलमा’ पढ़वाने और धर्म पूछ कर हत्या कर देने की घटना के बाद समूचा विरोध प्रदर्शन एक तरह से स्थगित हो गया है। आम लोगों का ध्यान भी इससे हट गया है।

य़ह ऐसी घटना हुई है, जैसी इससे पहले कश्मीर घाटी में देखने सुनने को नहीं मिली थी। कुछ आतंकवादी बाहरी लोगों की हत्या कर रहे थे लेकिन पर्यटकों को निशाना नहीं बनाया जा रहा था। इसी वजह से सुरक्षा बल भी लापरवाह हो गए थे। पंजाब में आतंकवाद के समय धर्म पूछ कर हत्या करने की अनेक घटनाएं हुई थीं और उसके बाद उसको खत्म करने में समय नहीं लगा। कश्मीर घाटी में ऐसा नहीं होता था। पहली बार ऐसा हुआ कि हिंदुओं को धर्म पूछ कर मारा गया। इस वजह से वक्फ कानून के खिलाफ लड़ रहे संगठन और नेता भी बैकफुट हैं और व्यापक रूप से मुस्लिम आबादी भी हिली हुई है।

उसको लग रहा है कि इससे भारतीय समाज में उनका अलगाव पहले से ज्यादा बढ़ेगा। यही कारण है कि ऑल इंडिया एमआईएम के नेता हों यो एआईएमपीएलबी और जमात के नेता, सब आगे बढ़ कर इस आतंकवादी घटना की निंदा कर रहे हैं। उनमें होड़ लगी है कि कौन ज्यादा कठोर शब्द में निंदा कर सकता है। इतना ही नहीं उन्होंने देश भर के मुस्लिम लोगों से कहा कि वे इस जुमे को यानी शुक्रवार, 25 अप्रैल को नमाज के दौरान काली पट्टी बांध कर पहलगाम की घटना का विरोध जताएं।

सोचें, जो मुस्लिम समाज जुमे की नमाज के दौरान काली पट्टी बांध कर वक्फ संशोधन कानून का विरोध कर रहा था और उसको उत्तर प्रदेश सरकार नोटिस  भेज रही थी उसने काली पट्टी बांध कर कश्मीर में हुए आतंकवादी हमले का विरोध जताया है।

हालांकि ऐसा नहीं है कि इससे स्थायी रूप से वक्फ का मामला समाप्त हो जाएगा। लेकिन कानून बनने के बाद जो मोमेंटम था वह अब वापस नहीं मिल पाएगा। अब इसका विरोध औपचारिकता है क्योंकि पहलगाम की घटना से जो घटनाक्रम शुरू हुआ है वह तुरंत समाप्त नहीं होने वाला है। भारत की ओर से इसका बदला लेने की बात कही जा रही है तो दूसरी ओर पाकिस्तान ने कहा है कि अगर पानी रोका गया तो ऐलान ए जंग होगा। दोनों तरफ से तैयारियां चल रही हैं। भारत की ओर से कुछ न कुछ किया जाएगा। कुछ होने से पहले और होने के बाद भी लंबे समय तक उबाल बना रहना है।

इसलिए वक्फ कानून के विरोध की बजाय ‘इस्लामिक आतंकवाद’ का मुद्दा नैरेटिव के केंद्र में रहेगा और मुस्लिम समाज को अपनी लड़ाई लड़ने की बजाय सफाई ज्यादा देनी होगी। पार्टियों, संगठनों, नेताओं पर निष्ठा साबित करने का दबाव बढ़ गया है। ऐसा लग रहा है कि मुनीर और आईएसआई के हैंडलर्स ने अपनी घरेलू राजनीति बचाने के चक्कर में भारत के मुसलमानों के लिए समस्या खड़ी कर दी और बैठे बिठाए भाजपा को नैरेटिव बदलने का जरिया दे दिया।

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Pic Credit: ANI

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