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मोदी को विदेश में जलवे का भरोसा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस बार लोकसभा चुनाव में झटका लगने के बाद से ग्लोबल हो गए हैं। उनके विदेश दौरे बढ़ गए हैं। लोकसभा चुनाव से पहले उन्होंने विदेश दौरे कम कर दिए थे। लेकिन नतीजों के बाद से वे ज्यादातर बहुपक्षीय सम्मेलनों में शामिल होने गए हैं और दोपक्षीय दौरे भी किए हैं। हर जगह पहले की तरह प्रवासी भारतीयों की भीड़ जुटा कर मोदी, मोदी के नारे भी लगवाए गए हैं। रूस के कजान में भी प्रवासी भारतीय जुड़े। मोदी जिस होटल में ठहरे थे वहां प्रवासी भारतीयों ने ढोल नगाड़े के साथ उनका स्वागत किया। नरेंद्र मोदी को तीसरी बार प्रधानमंत्री बने अभी पांच महीने हुए हैं लेकिन इस दौरान उन्होंने आधा दर्जन से ज्यादा विदेश दौरे किए हैं।

प्रधानमंत्री मोदी ब्रिक्स देशों के सम्मेलन में हिस्सा लेने रूस के शहर कजान पहुंचे थे। इससे पहले उन्होंने जुलाई में रूस की यात्रा की थी। तब वे भारत और रूस के सालाना सम्मेलन में हिस्सा लेने गए थे। रूस की यात्रा के बाद संतुलन बनाने के लिए वे यूक्रेन के दौरे पर गए और राष्ट्रपति वोलदोमीर जेलेंस्की से मिले। उन्होंने मॉस्को और कीव दोनों जगह कहा कि भारत युद्ध का समर्थक नहीं है और बातचीत से हर समस्या का समाधान चाहता है। इसके बाद यह चर्चा शुरू हो गई कि प्रधानमंत्री युद्ध रूकवाने के काम में लगे हैं। रूस ने कह भी दिया कि वह भारत की मदद स्वीकार करने को तैयार है। फिर इस बार ब्रिक्स के लिए मोदी रूस गए तो वहां भी कहा कि युद्ध रूकवाने के लिए भारत हर तरह की मदद करने को तैयार है। सो, भारत शांति दूत बन रहा है और मोदी के समर्थक प्रचार कर रहे हैं कि उनको शांति का नोबल मिल कर रहेगा।

बहरहाल, ब्रिक्स सम्मेलन से पहले अक्टूबर में प्रधानमंत्री मोदी आसियान देशों के सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए लाओस गए। वहां भी कई दोपक्षीय वार्ता। उससे पहले सितंबर में प्रधानमंत्री अमेरिका के दौरे पर गए थे, जहां उन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासभा के एक सत्र को भी संबोधित किया। प्रधानमंत्री ने प्रवासी भारतीयों के सम्मेलन में भी हिस्सा लिया। तीसरे कार्यकाल में प्रधानमंत्री मोदी के विदेश दौरे की शुरुआत इटली से हुई थी। चार जून को नतीजे आए थे और उसके पांच दिन बाद मोदी ने शपथ ली थी और 12 जून को इटली रवाना हो गए थे, जहां उन्होंने जी सात देशों के सम्मेलन में हिस्सा लिया। पिछले पांच महीने में प्रधानमंत्री इटली से लेकर अमेरिका और रूस से लेकर ब्रुनेई तक की यात्रा की है। हर जगह प्रवासी भारतीयों की भीड़ का स्वागत और नारे से उनके विश्व मित्र होने का हल्ला बनाया गया है। इसके मुकाबसे भारत में प्रधानमंत्री के घरेलू दौरे और कार्यक्रम कम हो गए हैं। चुनावों में भी उन्होंने कम प्रचार किया है।

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