मेरा मानना है प्रधानमंत्री मोदी को जवाहरलाल नेहरू का रिकॉर्ड तोड़ना है। मतलब नेहरू यदि 16 वर्ष 286 दिन प्रधानमंत्री (हालांकि वे सितंबर 1946 से 15 अगस्त 1947 के बीच भी अंतरिम प्रधानमंत्री थे) रहे तो मोदी पूरे 17 वर्ष प्रधानमंत्री रहें। इसलिए उन्हें अपनी ही कमान में 2029 का लोकसभा चुनाव लड़ कर वापिस प्रधानमंत्री बनना है। पर बिहार के ताजा चुनाव में मोदी के भाषण, जुमले और झांकियों के जो दृश्य दिखे और योगी आदित्यनाथ का उपयोग जितना बढ़ाया गया तो संभव है आगे उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में झांकियां और फीकी हो जाएं।
याद करें और चाहें तो मोदी के बिहार के एक-एक भाषण की समीक्षा करके उनके भाषणों की सुर्खियां को याद करें तो क्या कुछ भी नया था? उन्होने बिहार को ले दे कर ‘जंगल राज’ याद दिलाया।
यों तुलना ठीक नहीं है और मैं नेहरू के समय का साक्षी भी नहीं हूं। लेकिन चुनाव के आंकड़े बतलाते हैं कि नेहरू ने हर लोकसभा चुनाव अधिक सीटों के साथ जीता। 1962 में चीन की हार के बाद भी कांग्रेस की रिकॉर्ड तोड़ जीत थी। शायद कारण यह था कि नेहरू ने चीन से हारने के बाद अपनी भूल, अपनी गलती को माना। तब भारत की मदद के लिए दुनिया दौड़ी आई। नेहरू के चेहरे, उनकी भाव-भंगिमा, भाषणों में कभी झूठ नहीं टपका। संसद में विपक्ष की कटु आलोचनाओं को उन्होंने सदन में बैठ कर सुना। वे संसद से भागे नहीं रहे। संसद में कभी गतिरोध नहीं बना। उनके स्पीकर, सभापति ने विपक्ष को बोलने का भरपूर समय दिया। नेहरू ने उन्हें सुना तो नेहरू के जवाब को विपक्ष ने भी सुना। अखबारों में नेहरू-कांग्रेस सरकार की आलोचनाएं थी और लोकतंत्र में परस्पर विश्वास का माहौल था।
वैसा आज कुछ भी नहीं है। लोकतंत्र अब मोदीतंत्र है। ऐकला चलो के सूत्र में प्रधानमंत्री मोदी ने ऐसा एक इकोसिस्टम बनाया है, जिसमें नया कुछ पैदा नहीं हो सकता। मोदी के बहीखाते में एक भी ऐसी बात, एक भी भाखड़ा नांगल, एक वह उपलब्धि नहीं है, जिससे लोगों को उनका गुडफील याकि ‘अच्छे दिन’ आए बताए जा सके। कितनी गजब बात है कि ग्यारह वर्ष के बाद भी मोदी-अमित शाह ने बिहार में ‘जंगल राज’ का जुमला और ‘जंगल राज’ की झांकी झलकाई न कि ‘अच्छे दिनों’ पर दिवाली के जश्न का आव्हान किया। नीतीश-लालू की पीढ़ी के बाद की तीसरी पीढ़ी याकि जेनरेशन जेड के लिए प्रशांत किशोर के जुमले और तरीकों में फिर भी नयापन था तो तेजस्वी का लड़कपन जोशीला। जबकि मोदी-शाह क्या बोलते हुए थे? भाइयों-बहनों याद करो ‘जगंल राज’!
हां, प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा ने ऑपरेशन सिंदूर पर वोट नहीं मांगे! खुशहाल भारत पर वोट नहीं मांगे! अमृतकाल पर वोट नहीं मांगे? आत्मनिर्भर भारत पर वोट नहीं मांगे! स्मार्ट सिटी पटना पर वोट नहीं मांगे? स्वच्छ बिहार पर वोट नहीं मांगे? डिजिटल इंडिया की तर्ज पर डिजिटल बिहार या छप्पन इंची भारत, घुसपैठियों से मुक्त भारत, कालाधन मुक्त भारत आदि एक भी किसी उस जुमले पर वोट नहीं मांगा जो मोदी सरकार के ग्यारह वर्षों के ट्रेड मार्क जुमले हैं?
सो, कल्पना करें अगले चार साल मोदी सरकार के इकोसिस्टम में नए जुमलों का कैसा सूखा रहना है? बंगाल, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश के चुनावों में पूरी तरह पुराना घीसा हुआ रिकार्ड बजेगा।
