Naya India-Hindi News, Latest Hindi News, Breaking News, Hindi Samachar

चौबीस से दो-चार: वोट की चिंता…वोटर की नहीं…?

भोपाल। अब लगभग यह तय समझिये की अगले 200 दिन तक देश में जनहित के कोई कार्य नहीं होना है, क्योंकि एक सौ दिन बाद चार राज्यों में विधानसभाओ के और 200 दिन बाद देश की लोकसभा के चुनाव होना है, इसलिए देश की पूरी राजनीति और उसके ‘खेवनहार’ सिर्फ और सिर्फ सत्ता के सपनों में ही खोए रहने वाले हैं, उन्हें अब ना तो देश से कोई मतलब रहेगा और ना ही देशवासियों से?

विश्व का सबसे “आदर्श लोकतंत्र” हमारे भारत में ही माना जाता रहा है, किंतु वास्तव में यह हमारे लिए “दूर के ढोल सुहावने” जैसा है, विश्व के देश चाहे भारत के लोकतंत्र की दुहाई देते हो किंतु हम देशवासी ही यह जानते हैं कि हमारा लोकतंत्र कैसा व कितना मजबूत है? कहने को हमारे देश में सत्तारूढ़ दल का कार्यकाल 5 साल होता है, किंतु इस 5 साल की अवधि में हमारे देश के कर्णधार हमारे देश का कितना भला करते हैं? यह सिर्फ एक भारतवासी ही जान सकता है, क्योंकि 5 साल की अवधि में से पहला साल सत्ता व उसकी राजनीति को समझने में गुजार दिया जाता है और आखरी साल अपनी सत्ता को ‘दीर्घायु’ बनाने की उधेड़बुन में। शेष जो 3 साल बचे होते हैं उसमें ‘देशहित’ प्राथमिकता की सूची में सबसे नीचे रखा जाता है और पहले क्रम पर ‘स्वार्थ सिद्धि’ ही होता है एक बार सत्तारूढ़ होने वाला उम्र भर सत्तारूढ़ बना रहना चाहता है और तिरंगे में लिपट कर जाने की तमन्ना रखता है और सत्तारूढ़ अवधि में वह यह कतई नहीं सोच पाता कि ‘वैध’ क्या है… और ‘अवैध’ क्या है? उसे तो सिर्फ और सिर्फ स्वार्थ ही हर कहीं नजर आता है।

यदि हम देश की मौजूदा स्थिति की चर्चा करें तो इसमें कोई दो राय नहीं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र भाई मोदी बहुत ईमानदार व नेक चरित्र वाले इंसान हैं, उसका कारण यह भी है कि वे आखिर कमाए भी तो किसके लिए? उनका अपना कोई परिवार तो है नहीं इसलिए वे ‘वंशवादी राजनीति’ के भी खिलाफ हैं, किंतु क्या मोदी जी अपने दिल पर हाथ रख कर यह कह सकते हैं कि उनकी सरकार में जितने भी उनके साथी देश या राज्यों में अहम पदों पर हैं, वह भी उनके ही (मोदी जी) जैसे हैं? सत्तारूढ़ दल में एक भी नेता भ्रष्ट या बेईमान नहीं है? क्या भाजपा वही पार्टी नहीं है, जिसके एक राष्ट्रीय अध्यक्ष को रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों पकड़ा गया? वैसे आज की वास्तविकता तो यह है कि भारत की राजनीति में कोई “दूध का धुला” नहीं है, हर एक के दामन पर कोई ना कोई दाग है ही?

अब यदि हम देश की मौजूदा राजनीतिक स्थिति की चर्चा करें तो मेरा अनुभव यह कहता है कि देश प्रदेश के मतदाताओं के सामने मतदान करते समय मोदी के अलावा कोई विकल्प रहने वाला नहीं है, क्योंकि कांग्रेस तो वैसे ही डूब रही है और शेष यदि बची भी है तो राहुल गांधी के जेल जाने से (जैसे की संभावना व्यक्त की जा रही है) डूब जाएगी और भाजपा कांग्रेस के अलावा कोई राष्ट्रीय दल की श्रेणी में है ही नहीं। इसलिए इस बार चाहे विधानसभा चुनाव हो या लोकसभा केवल और केवल भाजपा ही सामने रहेगी उसका कोई विकल्प नहीं, इसलिए हर वोटर के सामने यही विकल्प रहेगा कि या तो वह भाजपा को वोट दें या फिर वोट ना दें?

वैसे मौजूदा राजनीतिक परिवेश में देश की पूरी राजनीति चौबीस के दो-चार में खोकर रह गई है और देशवासियों को उनके भाग्य पर छोड़ दिया गया है, अब तो राजनीति का एकमात्र लक्ष्य ‘सत्ता’ और उसे ‘दीर्घायु’ प्रदान करना है, इसलिए देश की जनता को अगले 200 दिन अपने ही भरोसे रहना, किसी अन्य के भरोसे नहीं?

Exit mobile version