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सत्ता की स्पर्धा…. देश का रक्षक कौन…?

भोपाल। आज देश के सामने सबसे अहम यही सवाल है कि आज ‘राष्ट्र सेवा’ और ‘राष्ट्रभक्ति’ का दम भरने वाला हर राजनेता और उसका राजनीतिक दल सिर्फ और सिर्फ सत्ता प्राप्ति के लिए ही संघर्ष कर रहा है और देश व देशवासियों की रक्षा सुरक्षा की किसी को भी कोई चिंता नहीं है, जो सत्ता से बाहर है वह ‘सत्तासीनों’ को सत्ता के सिंहासन से उतारने के प्रयास में जुटा है और जो सत्ता में है वह अपनी सत्ता की ‘उम्रदराजी’ के प्रयासों में जुटा है, ऐसे में देशवासी अपनी समस्याएं लेकर कहां व किसके पास जाएं? चुनाव के समय राजनीतिक दलों द्वारा जारी किए जा रहे वादों के पुलिंदे याने घोषणा पत्रों का सत्ता प्राप्ति के बाद 20% भाग भी पूरा नहीं हो पाता और नए चुनाव में नए वादों का अंबार लग जाता है। राजनीति के पाठ्यक्रम से देशसेवा का तो पाठ ही हटा दिया गया है।

आज की सबसे बड़ी चिंता देश की रक्षा सुरक्षा है, जिसकी चिंता राजनेताओं को नहीं देश की आम जनता को है, देश किस दिशा में जा रहा है या ले जाया जा रहा है? इस प्रश्न पर विचार करने की आज किसी को कोई फुर्सत ही नहीं है। इसका ताजा उदाहरण हमारे देश का पूर्वोत्तर भाग है, जहां न सिर्फ हिंसा और आतंक व्याप्त है, बल्कि अब तो यह भाग धीरे-धीरे खाली होता जा रहा है, क्योंकि यहां भी जनता ने अपनी सरक्षा के भय से व्यापक स्तर पर पलायन जो शुरू कर दिया है? और हमारी मौजूदा सरकार अपने कान और आंख दोनों बंद करके बैठी है, विदेशों में भारत की प्रशंसा के गीत गाए जा रहे हैं और यह गीत भारत में वास्तविकता से कितने दूर है, यह हर भारतवासी जानता है।
आज सच्चे राष्ट्र भक्तों की सबसे बड़ी चिंता ही यही है कि यह पूर्वोत्तर की आग कहां-कहां तक फैलेगी? और… कितने प्रदेश इससे झूलसेंगे? …और यदि मणिपुर सही सलामत नहीं रहा तो क्या मिजोरम व अन्य पूर्व उत्तर प्रदेश सही सलामत रह पाएंगे? आखिर सरकार इस अहम मसले पर ध्यान क्यों नहीं दे रही है, क्या वह इस आंदोलन का विस्तार चाहती है या पूरे देश में यही माहौल बनाकर अपनी राजनीतिक लड़ाई जीतना चाहती है? आज यही अहम सवाल देश के हर राष्ट्रभक्त बुद्धिजीवी के दिल दिमाग में छाया हुआ है, जिसका उसे कहीं से भी सही जवाब नहीं मिल रहा है, आज मणिपुर के रहवासियों का मददगार कौन? जब सरकार ही अपने उत्तरदायित्व से पल्ला झाड़ रही है तो उनकी रक्षा कौन करेगा।

…और आखिर हमारे देश का आम नागरिक अपनी सुरक्षा की लड़ाई कब शुरू करेगा? वह किसकी राह देख रहा है? देश को आजाद हुए 75 साल हो गए क्या देश की जागरूकता के लिए यह अवधि कम है? यह सब बयान कर मेरा मतलब “सशस्त्र क्रांति” कतई नहीं है, किंतु देश के आम नागरिक को अब किसी और के भरोसे नहीं रहकर खुद के ही भरोसे रहना है, क्योंकि आज देश के कथित जनसेवको का ध्येय राजनीति और उसके माध्यम से सत्ता ही रह गया है, अब देश की जनता को स्वयं ही अपनी चिंता करना पड़ेगी तभी वह सुरक्षित रह पाएंगे? यदि अभी भी जनता नहीं जागी तो पूरे देश को मणिपुर बनने में अधिक समय नहीं लगेगा।

75 साल पहले हमने देश की आजादी व सुरक्षा के लिए लंबा संघर्ष किया और अब ऐसा लगता है देश की आम जनता को अपने स्वयं की सुरक्षा के लिए कथित अपनों से ही संघर्ष शुरू करना पड़ेगा..?

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