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बिहार का सीएम समय तय करेगा

Bihar politics

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पिछले दो महीने में तीन बार बिहार के दौरे पर गए। पहलगाम कांड के दो दिन बाद 24 अप्रैल को प्रधानमंत्री मधुबनी पहुंचे थे और पिछले महीने 27 मई को वे औरंगाबाद के बिक्रमगंज पहुंचे। इसके बाद 20 जून को उन्होंने सीवान में कई परियोजनाओं का उद्घाटन और शिलान्यास किया और एक जनसभा को संबोधित किया। तीनों सभाओं में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार मौजूद रहे। उन्होंने तीनों सभाओं में कम से कम 10-10 बार प्रधानमंत्री मोदी का आभार जताया, अभिनंदन किया और सभा में मौजूद लोगों से प्रधानमंत्री को नमन कराया। लेकिन नीतीश और जनता दल यू को जिसकी उम्मीद थी वह उम्मीद पूरी नहीं हुई। प्रधानमंत्री मोदी ने एक बार भी नहीं कहा कि 2025 में एनडीए जीतेगा तो नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री होंगे। इससे पहले 2020 में नीतीश को सीएम चेहरा घोषित करके चुनाव लड़ा गया था और इसलिए नीतीश की पार्टी को सिर्फ 43 सीटें आने के बाद भी उनको मुख्यमंत्री बनाना पड़ा था। इस बार भाजपा वैसी कोई घोषणा करके अपने हाथ नहीं बांधना चाहती है।

इस बीच केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने दोहरा दिया कि चुनाव से पहले एनडीए की ओर से सीएम पद का दावेदार घोषित नहीं होगा। वे पहले भी यह बात कह चुके हैं। उन्होंने इस साल के शुरू में ‘इंडिया टुडे’ समूह के एक कार्यक्रम में कहा था कि बिहार के मुख्यमंत्री का फैसला चुनाव के बाद होगा। अब उन्होंने ‘इकोनॉमिक टाइम्स’ को दिए इंटरव्यू में कहा है कि बिहार का मुख्यमंत्री समय तय करेगा। इसका मतलब है कि समय आने पर यानी चुनाव नतीजों के बाद मुख्यमंत्री का फैसला होगा। इसका मतलब है कि भाजपा कहती रहेगी कि नीतीश के नेतृत्व में चुनाव होगा लेकिन चुनाव के बाद अगर सरकार बनाने की स्थिति आती है तो नीतीश सीएम नहीं होंगे। यह मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र का मॉडल है। मध्य प्रदेश में भाजपा तत्कालीन सीएम शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में लड़ी और चुनाव जीतने के बाद मोहन यादव सीएम बने। ऐसे ही महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में लड़े और चुनाव जीतने के बाद देवेंद्र् फड़नवीस को मुख्यमंत्री बनाया गया।

लेकिन सवाल है कि क्या मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र का फॉर्मूला बिहार में चल सकता है? जब तक नीतीश कुमार शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ थे तब तक तो इस बारे में सोचा भी नहीं जा सकता था। लेकिन अब वे मानसिक रूप से अस्थिर हैं। वे बातें भूलने लगे हैं। तभी भाजपा को मौका मिला है कि वह जनता दल यू की दूसरी कतार के नेताओं और नीतीश कुमार का प्रशासन संभाल रहे रिटायर अधिकारियों पर दबाव डाल कर या उनको मैनेज करके मनमाने फैसले कराए। हालांकि जनता दल यू के नेता अब भी नीतीश कुमार को ही मुख्यमंत्री पद का दावेदार बता रहे हैं। उन्होंने नारा दिया है, ‘25 से 30 फिर से नीतीश’। लेकिन भाजपा के नेता यह नारा नहीं लगा रहे हैं। वे अपना मुख्यमंत्री बनाने की तैयारी में हैं। तभी माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में दोनों गठबंधनों में टकराव बढ़ेगा। अगर नीतीश को सीएम पद का चेहरा नहीं घोषित किया गया तो जदयू की ओर से ज्यादा सीटों की मांग की जाएगी। अगर तालमेल की बातचीत में नीतीश के करीबी नेता और पूर्व आईएएस मनीष वर्मा और प्रदेश सरकार के मंत्री श्रवण कुमार को शामिल किया गया तो भाजपा के लिए जदयू को कम सीटों पर निपटाना आसान नहीं रह जाएगा।

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