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कांग्रेस को भी बिहार में सवर्ण वोट नहीं चाहिए

कांग्रेस पार्टी ने अखिलेश प्रसाद सिंह को बिहार प्रदेश अध्यक्ष पद से हटा दिया है। उनकी जगह दलित समाज के राजेश राम अध्यक्ष बने हैं। इससे पहले कांग्रेस ने मोहन प्रकाश की जगह कृष्णा अलवरू को बिहार का प्रभारी बनाया। इस बदलाव के बाद राहुल पहली बार बिहार पहुंचे तो उन्होंने सवर्ण नेताओं को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाने को कांग्रेस की भूल बताया और कहा कि वे भूल सुधार कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह काम कांग्रेस को पहले करना चाहिए था लेकिन अब किया जा रहा है। राहुल ने कहा कि पहले कांग्रेस के जिला अध्यक्षों में 75 फीसदी सवर्ण थे लेकिन अब 75 फीसदी पिछड़े और दलित हो गए हैं। उन्होंने बिहार की सभा में ओबीसी, दलित और आदिवासी के लिए कहा कि वे दूसरे दर्जे के नागरिक हैं। चाहे वे कुछ भी बन जाएं लेकिन वे दूसरे दर्जे के नागरिक ही रहेंगे।

यह बहुत हैरान करने वाली बात है क्योंकि बिहार में जहां खड़े होकर राहुल गांधी यह बात कह रहे थे वहां हिंदू सवर्णों की आबादी सिर्फ 10 फीसदी है और वहां पिछले 35 साल से पिछड़ी जातियों की राजनीति को दो चैंपियन, लालू प्रसाद और नीतीश कुमार ही सत्ता में रहे हैं। बिहार में एक प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी को छोड़ दें तो सभी पार्टियां का नेतृत्व पिछड़े और दलितों का है। राजद, जदयू, भाजपा, कांग्रेस, हम, लोजपा, रालोपा आदि सभी पार्टियों के नेता पिछड़ी जाति के हैं और सवर्णों को उनके यहां दरबारी करके राजनीतिक जगह या टिकट आदि हासिल करना होता है। बिहार में सवर्ण तीसरे या चौथे दर्जे के नागरिक हैं। लेकिन राहुल इसके उलट बात कह रहे थे। ऐसा लग रहा है कि उनको भी सवर्ण वोट की परवाह नहीं है। वे समझ रहे हैं कि सवर्ण टैक्टिकल वोटिंग करेंगे और जहां उनका उम्मीदवार होगा वहां उसको वोट मिल जाएगा। लेकिन अगर उस पर हमला किया जाए तो पिछड़ा, दलित वोट हासिल किया जा सकता है। इस सोच में उन्होंने पिछड़ा और दलित प्रेम दिखाया है।

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