कांग्रेस पार्टी के नेता मान रहे हैं कि पार्टी का सबसे बुरा दौर गुजर गया है। अब पार्टी वापसी के रास्ते पर है। सबसे बुरे दौर का मतलब 2014 से 2024 का था, जब दो लोकसभा चुनावों में कांग्रेस क्रमशः 44 और 52 सीटों पर जीती थी और नेता प्रतिपक्ष का पद भी उसे नहीं मिल पाया था। उस दौर में कांग्रेस लगातार राज्यों में भी हारती रही। उसकी सरकारें गिरती रहीं और उसके नेता पार्टी छोड़ कर जाते रहे। इस दौर में पार्टी के सर्वोच्च नेता राहुल गांधी की छवि को लेकर छवि का संकट भी चलता रहा। इस लिहाज से पार्टी के नेता मान रहे हैं कि पिछले एक साल में सब कुछ ठीक हुआ है। कांग्रेस के सांसदों की संख्या एक सौ पहुंच गई है। सोशल मीडिया के इकोसिस्टम ने राहुल की छवि को बेहतर किया है और अब राहुल गांधी एजेंडा तय करते दिख रहे हैं। इसके बावजूद कांग्रेस की जगह लेने की लड़ाई नहीं थम रही है, बल्कि तेज होती जा रही है।
कांग्रेस के पुराने नेता भी मान रहे हैं कि अगर बिहार में प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी चुनाव जीत गई तो वे कांग्रेस की जगह लेने की राजनीति करेंगे? असल में प्रशांत किशोर ने सबसे पहले कांग्रेस को ही टेकओवर करने का प्रयास किया था। वे सोनिया और राहुल गांधी से कई बार मिले और पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के सामने कई प्रेजेंटेशन दिए। वे चाह रहे थे कि उनको कांग्रेस की कमान सौंप दी जाए। वे यह भी मानते हैं कि कांग्रेस जिस आइडिया की राजनीति करती है उसके लिए भारत में जगह है। जब कांग्रेस के नेताओं ने उनकी योजना को पंक्चर किया तो वे अकेले राजनीति करने उतरे और प्रयोग के लिए उन्होंने अपनी जन्मभूमि बिहार को चुना। बिहार में वे पलायन, गरीबी, पिछड़ेपन, अशिक्षा आदि का मुद्दा बना कर राजनीति कर रहे हैं लेकिन वे वही सामाजिक समीकऱण गढ़ने की कोशिश कर रहे हैं, जो कभी कांग्रेस ने गढ़ा था। वे ब्राह्मण होने की वजह से सवर्ण वोट साथ आने की संभावना देख रहे हैं और उनको लग रहा है कि अगर सवर्ण खास कर ब्राह्मण उनके साथ आए तो मुस्लिम भी आएंगे और तब दलित भी जुड़ेंगे। तभी कांग्रेस नेताओं को लग रहा है कि अगर वे बिहार में कामयाब हुए तो इस फॉर्मूले पर वे देश भर में राजनीति करेंगे और कांग्रेस की जगह लेने का प्रयास करेंगे। हालांकि बिहार का रास्ता बहुत मुश्किल है।
प्रशांत किशोर से पहले अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस की जगह लेने की राजनीति शुरू की थी और गुजरात की एक विसावदर विधानसभा सीट पर उपचुनाव में जीत के बाद उन्होंने दावा करना शुरू कर दिया है कि जनता को कांग्रेस की जरुरत नहीं है। जनता कांग्रेस के विकल्प के तौर पर आम आदमी पार्टी की ओर देख रही है। वे दावा कर रहे हैं कि भाजपा गुजरात में 30 साल से राज इसलिए कर रही है क्योंकि कांग्रेस उसकी मदद कर रही है। ध्यान रहे राहुल गांधी ने खुद ही माना हुआ है कि कांग्रेस में बहुत से नेता हैं, जो भाजपा की मदद करते हैं। इसी लाइन को केजरीवाल आगे बढ़ा रहे हैं। उन्होंने कह दिया है कि वे किसी गठबंधन में नहीं हैं और साथ ही बिहार में सभी सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। ध्यान रहे उन्होंने दिल्ली और पंजाब में कांग्रेस की जगह ली है और गोवा व गुजरात में कांग्रेस को सत्ता से बहुत दूर कर दिया है। ममता बनर्जी भी कांग्रेस की जगह लेने की राजनीति कर रही हैं। उनका दूसरा मॉडल है। उन्होंने मेघालय में पूरी कांग्रेस पार्टी का विलय तृणमूल में करा लिया था। झारखंड में भी ऐसा करने का प्लान था, लेकिन कामयाबी नहीं मिली। वे पूर्वी और पूर्वोत्तर राज्यों में कांग्रेस की जगह लेने की राजनीति कर रही हैं।