राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की वोटर अधिकार यात्रा से एक बड़ा फायदा महागठबंधन को यह हुआ है कि सभी पार्टियों के बीच एकजुटता बन गई है। मुख्यमंत्री पद के लिए तेजस्वी यादव की घोषणा भले अभी तक कांग्रेस ने नहीं की है लेकिन राहुल गांधी की मौजूदगी में तेजस्वी खुद को सीएम घोषित कर चुके हैं। इसलिए वह समस्या नहीं है। समस्या सीट बंटवारे को लेकर थी, जिस पर सहमति बन गई है। जानकार सूत्रों का कहना है कि राष्ट्रीय जनता दल ने डेढ़ सौ सीट और कांग्रेस ने कम से कम 60 सीट लड़ने की जिद छोड़ दी है। गौरतलब है कि कांग्रेस पिछली बार 70 और राजद 144 सीटों पर लड़ी थी। इस बार दोनों अपनी सीट छोड़ने पर राजी हैं क्योंकि उनको कम से कम दो नई पार्टियों को एडजस्ट करना है। एक तीसरी पार्टी भी गठबंधन में शामिल हो सकती है।
जानकार सूत्रों का कहना है कि वोटर अधिकार यात्रा के दौरान सीट बंटवारे पर चर्चा हुई। सबसे पहले छोटे सहयोगी दलों और लेफ्ट को एडजस्ट करने पर सहमति बनी। पिछली बार तीन वामपंथी पार्टियों को 29 सीटें मिली थीं, जिसमें 19 सीट सीपीआई माले की थी, सीपीआई को छह और सीपीएम को चार सीट मिली थी। माले ने 19 में से 12 सीटें जीतीं। उसका स्ट्राइक रेट सबसे अच्छा था और लोकसभा चुनाव में भी तीन सीटों पर लड़ कर दो सीटों पर उसे जीत मिली। इसलिए उसकी सीटें बढ़ सकती हैं। तीनों लेफ्ट पार्टियों को पिछली बार के मुकाबले एक या दो सीट ज्यादा मिल सकती हैं। इसी तरह पिछली बार साथ छोड़ गए विकासशील इंसान पार्टी के नेता मुकेश सहनी भले 60 सीट मांग रहे हैं लेकिन उनको 25 से 28 सीटें मिलने की खबर है। इनके अलावा चिराग पासवान के चाचा और पूर्व केंद्रीय मंत्री पशुपति पारस की पार्टी को तीन से चार सीट देने की चर्चा है। अगर आईपी गुप्ता की इंडियन इन्कलाब पार्टी साथ आती है तो दो सीटें उनको मिलेंगी। कहा जा रहा है कि छोटी पार्टियों और लेफ्ट में 65 सीटें बंटनी हैं। उसके बाद 178 सीटें बचती हैं। इसमें से 50 से 55 सीट पर कांग्रेस लड़ेगी और बची हुई सीटें राजद के खाते में जाएंगी। राजद के इस बार 125 से 130 सीटों पर ही लड़ने की संभावना है।
