देश की राजनीति में वैसे तो सीपीआई की ज्यादा हैसियत नहीं बची है। बिहार में सीपीआई एमएल बड़ी ताकत है तो पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा और केरल में सीपीएम के हाथ में लेफ्ट मोर्चे की कमान है। कम्युनिस्ट पार्टियों के पास अब सिर्फ केरल में सत्ता बची है, जहां 10 साल से सीपीएम के पी विजयन मुख्यमंत्री हैं। अगले साल केरल में चुनाव है और संभवतः इसकी मजबूरी में ही सीपीएम को सीपीआई की बात माननी पड़ी है। सीपीआई को भी इसकी वास्तविकता का अहसास था तभी पार्टी स्कूलों में सुधार की केंद्र सरकार की पीएम श्री योजना लागू करने के राज्य सरकार के फैसले का विरोध किया।
सीपीआई के महासचिव डी राजा के विरोध को पहले तो विजयन और उनकी पार्टी के नेताओं ने दरकिनार कर दिया। लेकिन राजा अपनी बात पर अड़े रहे। उनका कहना था कि समूचा लेफ्ट जब केंद्र सरकार की नई शिक्षा नीति का विरोध कर रहा है तो फिर उसके तहत आने वाली पीएम श्री योजना केरल में कैसे लागू हो सकती है। दूसरी ओर विजयन की मजबूरी यह है कि इसे नहीं लागू करने पर डेढ़ हजार करोड़ रुपए का फंड अटका है। लेकिन जब राजा नहीं माने तो अंत में विजयन को फैसले पर रोक लगानी पड़ी। उन्होंने केंद्र सरकार के साथ जिस एमओयू पर सहमति दी थी उसे रोक दिया और सात सदस्यों की एक कमेटी बनाई है।
