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बिहार में लेफ्ट का क्या अलग होगा

माओवादियों

ऐसा लग रहा है कि बिहार में राजद, जदयू और कांग्रेस के बीच सहमति की संभावना के बाद तीनों वामपंथी पार्टियां लोकसभा चुनाव में अलग रास्ता पकड़ सकती हैं। हालांकि गठबंधन की सरकार को उनका समर्थन बरकरार रहेगा लेकिन चूंकि वे सरकार में नहीं शामिल हैं इसलिए अलग लोकसभा चुनाव लड़ने में दिक्कत नहीं है। इसका संकेत इस बात से मिला है कि तीनों वामपंथी पार्टियों ने गठबंधन में 12 सीटों की मांग की है। सोचें, एक तरफ लालू प्रसाद और नीतीश तीनों वामपंथी पार्टियों- सीपीआई, सीपीएम और सीपीआई एमएल को एक या दो सीट देकर गठबंधन में रखने की बात कर रहे हैं तो दूसरी ओर तीनों पार्टियां 12 सीटें मांग रही हैं!

बिहार की 40 सीटों में से तीनों पार्टियों को 12 तो छोड़िए तीनों को मिला कर चार सीट देने की भी संभावना नहीं है। पिछले दिनों सीपीआई के नेता डी राजा बिहार गए थे तो लालू प्रसाद और नीतीश कुमार दोनों से मिले थे। बताया जा रहा है कि दोनों ने कहा कि गठबंधन में एक बेगूसराय की सीट उनके लिए छोड़ी जा सकती है। लेकिन वे मधुबनी और बांकी की सीट भी चाहते हैं। ये दोनों राजद कोटे की सीट है। राजद और जदयू दोनों 17-17 सीटों पर लड़ने की बात कर रहे हैं। अगर दोनों 16-16 सीटों पर राजी हो जाते हैं तो उसके बाद आठ सीटें बचेंगी।

तब कांग्रेस को छह और लेफ्ट को दो सीटें मिल सकती हैं। अगर कांग्रेस पांच लोकसभा और एक राज्यसभा सीट पर राजी होती है तो लेफ्ट को तीन सीटें मिल सकती हैं। लेकिन सीपीआई ने बेगूसराय, मधुबनी और बांका सीट पर दावेदारी की है तो सीपीएम ने खड़गिया, उजियारपुर, समस्तीपुर और महाराजगंज सीट मांगी है। 12 विधायकों वाली सीपीआई एमएल की नजर आरा, सिवान, काराकाट, जहानाबाद और पाटलीपुत्र सीट पर है।

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