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एक देश, एक चुनाव से किसको फायदा?

लम्बी शांति के बाद एक बार फिर एक देश, एक चुनाव को लेकर खबर आई है। खबर आई पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के उत्तर प्रदेश के रायबरेली में दिए एक भाषण से। उन्होंने मीडिया से बात करते हुए कहा कि पूरे देश में एक साथ चुनाव होगा तो जो भी केंद्र की सत्ता में होगा उसको फायदा होगा। उन्होंने इस बात को विस्तार देते हुए कहा कि यह किसी एक पार्टी की बात नहीं है। चाहे भाजपा हो या कांग्रेस हो या कोई और दल हो, जो भी केंद्र की सत्ता में होगा उसको एक साथ चुनाव से फायदा होगा। इसके बाद उन्होंने कहा कि सबसे ज्यादा फायदा जनता को होगा क्योंकि एक साथ चुनाव कराने से जो पैसे बचेंगे उनसे विकास का काम किया जाएगा। सवाल है कि जो केंद्र में होगा उसको फायदा होगा कहने का क्या मतलब है?

पूरे देश में एक साथ चुनाव होगा तो केंद्र में सत्तारूढ़ दल को कैसे फायदा होगा? क्या पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के कहने का यह मतलब था कि एक साथ चुनाव होने से केंद्र का पैसा बचेगा, जिससे आम लोगों के लिए काम होगा और यह बात केंद्र में सत्तारूढ़ दल के लिए फायदेमंद है? लेकिन अगर ऐसी बात है तो यह कोई बड़े फायदे की बात नहीं है। एक रिपोर्ट के मुताबिक 2014 का लोकसभा चुनाव कराने पर 38 सौ करोड़ रुपए से कुछ ज्यादा खर्च आया था। पांच साल बाद यह बढ़ कर पांच हजार करोड़ हो गया होगा और हो सकता है कि अगले साल छह हजार करोड़ रुपए खर्च हो। राज्यों के चुनाव का कुल खर्च भी इतना ही मानें तोकुल 12 हजार करोड़ रुपए का खर्च आता है। अगर सारे चुनाव एक साथ होंगे तब भी छह-सात हजार करोड़ रुपए का खर्च होगा। यानी केंद्र सरकार की बचत पांच हजार करोड़ रुपए की होगी। सोचें, 40 लाख करोड़ रुपए का बजट पेश करने वाली भारत सरकार पांच हजार करोड़ रुपए बचा लेगी तो केंद्र में सत्तारूढ़ दल को कितना फायदा होगा?

सो, जाहिर है कि रामनाथ कोविंद का इशारा खर्च में बचत की ओर नहीं था। वे सत्तारूढ़ दल के राजनीतिक फायदे की बात कर रहे थे। उनके कहना का मतलब था कि जो केंद्र में सत्ता में होगा उसको एक साथ चुनाव होने का राजनीतिक लाभ मिलेगा। तो यही बात तो विपक्षी पार्टियां और स्वतंत्र व निष्पक्ष टिप्पणीकार कर रहे हैं! उनका भी कहना है कि पूरे देश में एक साथ चुनाव होने पर सभी पार्टियों के लिए बराबरी का मैदान नहीं रह जाएगा। जो सत्ता में होगा उसको फायदा होगा। इस आधार पर ही इस आइडिया का विरोध हो रहा है।

बहरहाल, रामनाथ कोविंद के इस बयान से विपक्षी पार्टियों को इस आइडिया का विरोध करने का मौका मिलेगा क्योंकि वे इस मसले पर विचार के लिए केंद्र सरकार की ओर से बनाई गई कमेटी के अध्यक्ष हैं। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल भी उस कमेटी में हैं। कमेटी की पिछली बैठक में सभी एजेंसियों और राजनीतिक दलों की राय लेने का फैसला हुआ था लेकिन उसमें आगे क्या हुआ है यह किसी को पता नहीं है। दूसरी ओर विधि आयोग ने 2029 से एक साथ चुनाव कराने की एक टाइमलाइन पर चर्चा की है। कोविंद ने रायबरेली में इस आइडिया का समर्थन करते हुए कहा कि अब तक जितनी संस्थाओं ने इस पर विचार किया है वे इसके पक्ष में हैं। उन्होंने नीति आयोग, चुनाव आयोग, संसदीय समिति आदि की रिपोर्ट्स का जिक्र किया।

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