हिंदी को लेकर अलग अलग कारणों से देश के अनेक राज्यों में नफरत बढ़ रही है। भाषा के आधार पर जिन राज्यों का गठन हुआ है वहां तो हिंदी लगभग अछूत हो ही गई है लेकिन जो हिंदी भाषी राज्य हैं वहां भी हिंदी से रोजगार की संभावना मजदूरी में है या फिर राजनीति में। उच्च शिक्षा और खास कर तकनीकी शिक्षा के लिए माध्यम भाषा के तौर पर हिंदी वाले ही हिंदी को नहीं अपना रहे हैं। भले अपनी राजनीति चमकाने के लिए ही किया हो लेकिन केंद्र सरकार ने तीन साल पहले अक्टूबर 2022 में मेडिकल की पढ़ाई हिंदी भाषा में कराने का ऐलान किया था। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 12 अक्टूबर 2022 को इसकी शुरुआत की थी। लेकिन कहीं भी मेडिकल के छात्र हिंदी में परीक्षा नहीं दे रहे हैं।
मध्य प्रदेश में पिछले तीन साल में किसी भी सेमेस्टर में हिंदी में किसी छात्र ने परीक्षा नहीं दी है। मध्य प्रदेश में हिंदी में मेडिकल की पढ़ाई के लिए 10 करोड़ रुपए खर्च करके किताबें छपवाई गई थीं। तब शिवराज सिंह चौहान राज्य के मुख्यमंत्री थे और उन्होंने इस पर बड़ा जोर दिया था। लेकिन मुश्किल यह है कि कॉलेजों में पढ़ाई के तरीकों में कोई बदलाव नहीं आया। पढ़ाई की माध्यम भाषा अंग्रेजी बनी रही फिर कैसे कोई छात्र हिंदी में परीक्षा देगा? सो, हिंदी में मेडिकल की पढ़ाई का प्रयास अभी तक असफल दिख रहा है। यही हाल हिंदी में इंजीनियरिंग की पढ़ाई का भी है। जब तक प्रांरभिक व माध्यमिक शिक्षा की माध्यम भाषा के तौर पर हिंदी को नहीं अपनाया जाएगा और प्रतियोगिता परीक्षाओं में हिंदी भाषी छात्र उतीर्ण नहीं होंगे तब तक तकनीकी शिक्षा की माध्यम भाषा हिंदी नहीं हो सकती है।