Hindi

  • बातूनी भारत को नई मशीन!

    कल हिंदी दिवस था। और कल यह भी खबर थी कि एप्पल ने एयरपॉड्स प्रो 3 लांच किया है। एक ऐसा साधन, जो कान में किसी भी भाषा का तुरत-फुरत आपकी भाषा में अनुवाद सुना देगा। एक क्लिक में अंग्रेज़ी, फ़्रेंच या स्पैनिश हिंदी हो जाएगी। सोचें, हम हिंदीभाषी इस मशीन का कैसा उपयोग करेंगे? हिंदी के लिए एक और वायरस! इसलिए क्योंकि मेरा मानना है कि सोशल मीडिया ने भारत को पहले ही बातूनी, भाषाविहीन, बुद्धिहीन बना दिया है तो आगे यह मशीन हमारी भाषा, किताब और सोच को भी चबा-चबा कर सतही और फास्ट बनाएगी। एयरपॉड्स चुनिंदा भाषाओं...

  • हिंदी में मेडिकल की पढ़ाई का विफल अभियान

    हिंदी को लेकर अलग अलग कारणों से देश के अनेक राज्यों में नफरत बढ़ रही है। भाषा के आधार पर जिन राज्यों का गठन हुआ है वहां तो हिंदी लगभग अछूत हो ही गई है लेकिन जो हिंदी भाषी राज्य हैं वहां भी हिंदी से रोजगार की संभावना मजदूरी में है या फिर राजनीति में। उच्च शिक्षा और खास कर तकनीकी शिक्षा के लिए माध्यम भाषा के तौर पर हिंदी वाले ही हिंदी को नहीं अपना रहे हैं। भले अपनी राजनीति चमकाने के लिए ही किया हो लेकिन केंद्र सरकार ने तीन साल पहले अक्टूबर 2022 में मेडिकल की पढ़ाई...

  • केरल में पहली से हिंदी अनिवार्य करने की सिफारिश

    महाराष्ट्र में पहली क्लास से हिंदी अनिवार्य करने का फैसला हुआ तो उसका इतना विरोध हुआ कि सरकार को फैसला वापस लेना पड़ा। इसके बावजूद आंदोलन शुरू हो गया। हिंदी अनिवार्य करने के फैसले ने उद्धव और राज ठाकरे को एक कर दिया उधर तमिलनाडु में अलग हिंदी विरोध का आंदोलन चल रहा है। कर्नाटक में भी हिंदी का विरोध हो रहा है। लेकिन इनसे अलग केरल में जहां अधिकतर आबादी मलयालम भाषा बोलने वाली है वहां पहली क्लास से हिंदी अनिवार्य करने पर विचार हो रहा है। ध्यान रहे केरल में हिंदी विरोध कभी भी राजनीति का मुद्दा नहीं...

  • सत्ता अपनी भाषा कब सुधारेगी?

    हिंदी को अहिंदी राज्यों में अलगाव में थोपने के बजाए हिंदी को जोड़ने व संपर्क भाषा होना हैं। हिंसा तो सत्ता खोने के डर से या सर्वसत्ता पाने की लालसा से ही उकसाई जाती है। समाज अपने व्यवहार की भाषा जानता-समझता है लेकिन सत्ता अपनी व्यवस्था-व्यापार की भाषा कब सुधारेगी? पण सत्तेचे ध्येय फक्त सत्ता आहे। भाषा के सदाचार से ही समाज में सदविचार और सद्भावना कायम होती हैं। इसलिए भाषा के लिए किसी के भी जीवन को दाव पर लगाना, हिंसा करना न अपनी भाषा से प्रेम जताता है। न ही मानवता से। और मानवता से प्रेम किए बिना भाषा...

  • भाषा गुंडई, भाषा पर भी गुंडई!

    हर युग की अपनी भाषा होती है। और हर सत्ता अपने समय की भाषा से पहचानी जाती है। अपनी यादों में मैकाले के अंग्रेज शासन की जुबान, नेहरू के स्वतंत्र भारत की भाषा, और आज के नरेंद्र मोदी के कथित ‘न्यू इंडिया’ की बोली पर जरा गौर करे तो क्या लगेगा?  क्या वह अंतर नहीं जो देश, सभ्यता की पहचान या गिरावट का प्रमाण है? मैकाले की अंग्रेज़ी सिर्फ भाषा नहीं थी, वह भारत को मानसिक गुलाम बनाने के प्रोजेक्ट की गंगोत्री थी। उसका मकसद था एक ऐसा भारतीय वर्ग बनाना जो अपने रंग और रक्त में भले देसी हो,...

  • महाराष्ट्र में हिंदी का फैसला रद्द

    मुंबई। महाराष्ट्र की देवेंद्र फड़नवीस सरकार ने स्थानीय निकाय चुनावों की मजबूरी में हिंदी को अनिवार्य करने का फैसला रद्द कर दिया है। कक्षा एक से तीन भाषा फॉर्मूला लागू करने और हिंदी अनिवार्य करने के राज्य सरकार के फैसले के खिलाफ उद्धव और राज ठाकरे ने पांच जुलाई को साझा रैली करने का ऐलान किया था। उसके बाद फड़नवीस सरकार को तय करना था कि स्थानीय निकाय चुनावों की चिंता करें या हिंदी को अनिवार्य करने के फैसले पर टिके रहें। अंत में उसने चुनाव की चिंता में हिंदी भाषा का अपना फैसला बदल दिया। उद्धव और राज ठाकरे...

  • किसी विदेशी भाषा का विरोध नहीं: शाह

    नई दिल्ली। भाषा के सवाल पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह कुछ दिन पहले कही गई अपनी बात से मुकर गए हैं। उन्होंने अब कहा है कि किसी भी विदेशी भाषा का विरोध नहीं है। इससे पहले उन्होंने कहा था कि वह दिन बहुत जल्दी आएगा, जब इस देश में अंग्रेजी बोलने वाले शर्मिंदा होंगे। अब गुरुवार को शाह ने राजभाषा विभाग के एक कार्यक्रम में कहा, ‘किसी भी भाषा का विरोध नहीं है। किसी विदेशी भाषा से भी कोई विरोध नहीं करना चाहिए। लेकिन आग्रह हमारी भाषा को बोलने, उसे सम्मान देने और हमारी भाषा में सोचने का होना...

  • हिंदी का मुद्दा अब हाशिए में गया

    राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू करने और हिंदी अनिवार्य करने का मुद्दा अब लगता है कि ठंडे बस्ते में चला गया। अब कहीं इस बात की चर्चा नहीं हो रही है और न कहीं विवाद की खबर आ रही है। तमिलनाडु में भी हिंदी का मुद्दा चर्चा में नहीं है। गौरतलब है कि कुछ दिन पहले ऐसा लग रहा था कि तमिलनाडु सरकार और केंद्र सरकार के बीच हिंदी को लेकर जंग छिड़ी है और यह भी लग रहा था कि हिंदी का मुद्दा ही अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में सबसे बड़ा मुद्दा होगा। लेकिन अचानक यह मुद्दा ठंडा...

  • महाराष्ट्र सरकार पीछे हटी, हिंदी अनिवार्य नहीं होगी

    मुंबई। महाराष्ट्र की भाजपा सरकार अपने फैसले से पीछे हट गई है। विवादों को देखते हुए देवेंद्र फड़नवीस सरकार ने हिंदी को अनिवार्य भाषा बनाने का फैसला वापस ले लिया है। इसके बाद महाराष्ट्र में स्‍कूली पढ़ाई के लिए अब हिंदी अनिवार्य भाषा नहीं होगी। राज्य सरकार ने हिंदी को तीसरी अनिवार्य भाषा बनाने का फैसला वापस ले लिया है। शिक्षा मंत्री दादाजी भुसे ने कहा कि मराठी अनिवार्य होगी, अंग्रेजी दूसरी भाषा होगी और तीसरी भाषा वैकल्पिक होगी यानी छात्र कई भाषाओं में से एक चुन सकेंगे। महाराष्ट्र में त्रिभाषा नीति लागू, हिंदी अब अनिवार्य नहीं इससे पहले रविवार...

  • हिंदी पर कदम पीछे?

    इन हाल के वर्षों में ऐसा क्या बदल गया है? राजनीतिक नेतृत्व- खासकर केंद्र में सत्ताधारी दल को इस पर आत्म-निरीक्षण करना चाहिए? संकेत साफ है। हिंदी को राजनीति का औजार बनाने से इस भाषा का नुकसान ही हो रहा है। महाराष्ट्र के स्कूलों में हिंदी की पढ़ाई अनिवार्य बनाने के बाद इसकी अनिवार्यता ना होने संबंधी अब दिए गए मुख्यमंत्री के बयान का सीधा मतलब इस मुद्दे पर कदम वापसी है। नई शिक्षा नीति के प्रावधान के मुताबिक इस बारे में राज्य सरकार के फैसले पर राज्य में व्यापक विरोध भड़का। लगभग सभी राजनीतिक दलों के अंदर से इसके...

  • कांग्रेस क्यों हिंदी का विरोध कर रही है?

    महाराष्ट्र की देवेंद्र फड़नवीस सरकार ने राज्य में त्रिभाषा फॉर्मूला लागू कर दिया है और हिंदी को तीसरी भाषा के तौर पर अपनाने का आदेश जारी कर दिया है। अब महाराष्ट्र के स्कूलों में पांचवीं क्लास तक हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में पढ़ाया जाएगा। भाजपा शासित राज्यों में हिंदी को प्रमुखता मिलेगी इसमें किसी को संदेह नहीं है। दूसरे तमिलनाडु के हिंदी विरोध के बीच महाराष्ट्र जैसे राज्य में हिंदी लागू करने से तमिलनाडु सहित देश के दूसरे सभी राज्यों को भी एक संदेश गया है। लेकिन हैरानी की बात यह है कि महाराष्ट्र सरकार की इस पहल...

  • अंग्रेजी किताबों के शीर्षक हिंदी में!

    यह उत्तर भारत में देखने को मिलता है कि अंग्रेजी की पढ़ाई भी हिंदी में होती है। अंग्रेजी के मास्टर और प्रोफेसर छात्रों के हिंदी में ही पढ़ाते हैं क्योंकि 90 फीसदी से ज्यादा छात्र न तो हिंदी बोल सकते हैं और न समझ सकते हैं। लेकिन दक्षिण भारत के किसी राज्य में यह सुनने को मिलेगा कि अंग्रेजी की किताब का शीर्षक हिंदी में है तो सवाल खड़े होंगे। भारत सरकार की एजेंसी एनसीईआरटी, जो सीबीएसई पाठ्यक्रम के लिए किताबें तैयार करती है उसने केरल की किताबों के साथ ऐसा ही किया है। उसने अंग्रेजी की किताबों के शीर्षक...

  • हिंदी सहेजने की भाषा

    महात्मा गांधी का मानना था कि अगर भारत को आजादी मिलनी है तो वो संपर्क की एकजुटता से ही संभव हो सकता है। इसलिए गांधीजी का जोर था कि हिंदी को विभिन्न भारतीय भाषाओं के बीच की संपर्क भाषा बनाया जाए। बच्चों की नींव मजबूत करने वाली शुरुआती शिक्षा मातृभाषा या हिंदी में ही हो। थोड़ा बड़े होने पर फिर अंग्रेजी या कोई भी अन्य भाषा सीखने-सिखाने या पढ़ने-लिखने की भी स्वतंत्रता रहे। खुद गांधीजी ने अंतिम समय तक ग्यारह भारतीय भाषा सीखी थीं। एक-दूसरे से अपने मन की बात अपन बोल कर या पढ़-लिख कर, खास शैली में करते...

  • डीएमके नेता सात राज्यों में विपक्ष से मिलेंगे

    तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन को लग रहा है कि परिसीमन और त्रिभाषा फॉर्मूले का रूप में उनको चुनाव जीतने का महामंत्र मिल गया है। इसलिए उन्होंने इन दोनों मुद्दों पर पूरा ध्यान केंद्रित किया है। एक तरफ प्रदेश में उनके नेता इस मुद्दे को किसी न किसी तरह उठा रहे हैं तो दूसरी ओर दिल्ली में संसद के बजट सत्र के दूसरे चरण में उनकी पार्टी के सांसद रोज इस पर प्रदर्शन कर रहे हैं। विपक्षी पार्टियों का साथ भी उनको मिल रहा है। अब खबर है कि स्टालिन की पार्टी के नेता सात राज्यों के दौरे पर जाएंगे।...

  • हिंदी पर स्टालिन का बड़ा हमला

    चेन्नई। तमिलनाडु के लोगों पर हिंदी थोपने का विवाद अब नया मोड़ ले रहा है। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने कथित तौर पर हिंदी थोपे जाने का विरोध करने के साथ ही हिंदी पर बड़ा हमला किया है और कहा है कि हिंदी ने उत्तर भारत की 25 भाषाओं का अस्तित्व मिटा दिया। एमके स्टालिन ने गुरुवार को कहा कि जबरन हिंदी थोपने से एक सौ साल में उत्तर भारत की 25 भाषाएं खत्म हो गई। स्टालिन का इशारा उत्तर भारत के अलग अलग क्षेत्रों में बोली जाने वाली बोलियों की ओर था। उन्हेंने गुरुवार को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म...

  • हिंदी में किताबों का बाजार बढ़ा है!

    हिंदी के प्रकाशक लेखकों को रॉयल्टी देने में आनाकानी करते हैं। हिसाब नहीं देते। बिना कॉन्ट्रैक्ट के किताबें छापते हैं। इसका असर पुस्तक मेले में दिखाई देता है क्योंकि अच्छे लेखक नहीं जुड़ते और गुणवत्ता में कमी दिखाई देती है। जब तक पुस्तकों की खरीद बिक्री में भ्रष्टाचार रहेगा हिंदी का प्रकाशन फल फूल नहीं सकता। हिंदी पट्टी में पुस्तक मेला संस्कृति बढ़ी है पर अच्छी किताबों को पाठकों तक पहुंचना एक चुनौती है। 55वें विश्व पुस्तक मेले पर विशेष अरविंद कुमार नई आर्थिक नीति और भूमंडलीकरण के बाद देश में पिछले तीन दशकों में काफी बदलाव देखने को मिले...

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