महाराष्ट्र की देवेंद्र फड़नवीस सरकार ने राज्य में त्रिभाषा फॉर्मूला लागू कर दिया है और हिंदी को तीसरी भाषा के तौर पर अपनाने का आदेश जारी कर दिया है। अब महाराष्ट्र के स्कूलों में पांचवीं क्लास तक हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में पढ़ाया जाएगा। भाजपा शासित राज्यों में हिंदी को प्रमुखता मिलेगी इसमें किसी को संदेह नहीं है।
दूसरे तमिलनाडु के हिंदी विरोध के बीच महाराष्ट्र जैसे राज्य में हिंदी लागू करने से तमिलनाडु सहित देश के दूसरे सभी राज्यों को भी एक संदेश गया है। लेकिन हैरानी की बात यह है कि महाराष्ट्र सरकार की इस पहल का कांग्रेस ने विरोध किया है। राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के लोग इसका विरोध करें वह तो बाद समझ में आती है लेकिन कांग्रेस क्यों इसका विरोध कर रही है?
कांग्रेस का हिंदी विरोध: महाराष्ट्र में सियासी संकट?
प्रदेश की बाकी पार्टियों ने इस पर कोई खास प्रतिक्रिया नहीं दी है। सरकार की सहयोगी एनसीपी के नेता और राज्य के उप मुख्यमंत्री अजित पवार ने सरकार के फैसले का समर्थन करते हुए हिंदी का विरोध करने वालों पर सवाल उठाया है। उन्होंने कहा है कि मराठी की प्राथमिकता बनी रहेगी लेकिन हिंदी भी साथ में चलेगी। एकनाथ शिंदे की शिव सेना भी इससे सहमत है। सोचें, महाराष्ट्र की प्रादेशिक पार्टियां हिंदी अपनाए जाने का समर्थन कर रही हैं लेकिन राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस इसका विरोध कर रही है।
कांग्रेस को किसी तरह से हिंदी भाषी प्रदेशों में अपने पैरों पर खड़ा होना है लेकिन वह हिंदी का विरोध करके कैसे खड़ी हो पाएगी? यह भी सवाल है कि अभी अगले छह महीने में बिहार में विधानसभा का चुनाव है वहां अगर कांग्रेस के हिंदी विरोध का मुद्दा बना तो पार्टी क्या करेगी? कांग्रेस का भाषा विवाद में पड़ना उसके लिए बड़ा संकट खड़ा कर सकता है। जैसे तमिलनाडु में हिंदी विरोध की राजनीति में कांग्रेस शामिल नहीं हुई वैसे ही उसे महाराष्ट्र में भी करना चाहिए था।
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