भारत की कूटनीति बेहद दयनीय स्थिति में है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप लगातार भारत को अपमानित कर रहे हैं लेकिन किसी की हिम्मत नहीं हो रही है ट्रंप और अमेरिका का नाम लेने की। पिछले एक महीना 10 दिन से गोलमोल तरीके से ट्रंप की बातों का जवाब दिया जा रहा है। अब या तो ट्रंप सच बोल रहे हैं कि उन्होंने दबाव डाल कर या व्यापार और टैरिफ का भय दिखा कर भारत और पाकिस्तान का युद्ध रूकवाया इसलिए भारत उनको झूठा नहीं ठहरा पा रहा है या अगर ट्रंप झूठ बोल रहे हैं तो भारत डरा हुआ कि उनको झूठ को झूठ नहीं कह पा रहा है? ये दोनों ही स्थितियां बहुत खराब हैं। इनसे भारत की दयनीयता ही जाहिर हो रही है। भारत यह भी स्वीकार नहीं कर सकता है कि ट्रंप ने धमका कर सीजफायर कराया और न यह कह सकता है कि ट्रंप झूठ बोल रहे हैं। इसलिए गोलमोल तरीके से देश के लोगों को बरगलाने वाली बातें कही जा रही हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रपति ट्रंप के साथ 35 मिनट तक टेलीफोन पर बात की। लेकिन इस बारे में उन्होंने खुद कुछ नहीं बताया, जबकि इससे पहले हर नेता के साथ टेलीफोन पर होने वाली बात का ब्योरा खुद प्रधानमंत्री अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर देते थे। इसी से संदेह पैदा होता है। मोदी और ट्रंप की बातचीत का ब्योरा विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने दिया और कहा कि प्रधानमंत्री ने ट्रंप से दो टूक अंदाज में कहा कि पाकिस्तान से बातचीत करके भारत ने सीजफायर किया था और ऑपरेशन सिंदूर के दौरान किसी समय व्यापार को लेकर वार्ता नहीं हुई थी। यह बहुत ही अस्पष्ट और संदेह पैदा करने वाली बात है। उधर मिसरी ने सुबह यह बात कही और शाम होते होते ट्रंप ने कहा कि उनकी मोदी से बात हुई है और यह दोहराया कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान का युद्ध रूकवाया। अब भी अगर भारत की ओर से ट्रंप का नाम लेकर नहीं कहा जाता है कि वे झूठ बोल रहे हैं और भारत ने उनके कहने से सीजफायर नहीं किया तो प्रधानमंत्री की वार्ता और विदेश सचिव के बयान की क्या साख रह जाएगी? ट्रंप अभी तक 14 या 15 बार युद्ध रूकवाने का श्रेय ले चुके हैं और एक बार भी भारत ने उनका नाम लेकर उनकी बात का खंडन नहीं किया है। क्या भारत को ऐसा लग रहा है कि ट्रंप का नाम नहीं लेना कोई बड़ी कूटनीतिक समझ है और इससे अमेरिका के साथ व्यापार संधि भारत के अनुकूल हो जाएगी तो यह बहुत बड़ी गलतफहमी है।