जैसे ही भारत सरकार की ओर से सीजफायर मान लेने की घोषणा हुई वैसे ही पूरा सोशल मीडिया इंदिरा गांधी के तरानों से भर गया। पिछले छह दिन से सरकार का समर्थन कर रहे कांग्रेस समर्थकों के सोशल मीडिया अकाउंट्स पर कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश की ओर से जारी इंदिरा गांधी की एक पुरानी चिट्ठी वायरल होने लगी।
इंदिरा गांधी ने यह चिट्ठी 1971 की लड़ाई के समय अमेरिका के राष्ट्रपति को लिखी थी और उनकी ओर से दिए गए युद्धविराम के प्रस्ताव को खारिज किया था। कांग्रेस इकोसिस्टम के लोगों के सोशल मीडिया अकाउंट्स पर पिछले कुछ दिनों से निराशा का माहौल था क्योंकि उनको सरकार का समर्थन करना पड़ रहा था।
सीजफायर के बाद इंदिरा गांधी की चिट्ठी वायरल
लेकिन सीजफायर के बाद स्थिति बदल गई। सैकड़ों या हजारों अकाउंट्स पर पाकिस्तान के जनरल नियाजी के भारत के सामने आत्मसमर्पण करने की तस्वीरें शेयर की गईं। दावा किया गया कि भारत अब कभी भी ऐसा दिन नहीं देख पाएगा, जब पाकिस्तान के 90 हजार से ज्यादा सैनिकों ने भारत के सामने सरेंडर किया था। भारत ने उस समय बांग्लादेश बनवाया था। दावा किया जा रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिका के दबाव में सीजफायर स्वीकार किया गया है।
इंदिरा गांधी को नेता और मौजूदा नेतृत्व को कारोबारी बताने की होड़ भी मची है। दूसरी ओर भाजपा समर्थक जो टेलीविजन न्यूज चैनल देख कर कराची, लाहौर और इस्लामाबाद पर कब्जा होने के सपने देख रहे थे, उनकी निराशा की सीमा नहीं है। वे यह तो कह रहे हैं कि इंदिरा गांधी के समय सेना ने जो युद्ध में हासिल किया था उसे शिमला समझौते में गंवा दिया गया लेकिन उनके पास इस सवाल का जवाब नहीं है कि इस बार क्या हासिल हुआ, जिसे बातचीत में गंवाया जाएगा?
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