शरद पवार और अजित पवार साथ आ रहे हैं। दोनों की पार्टियों के विलय की तैयारी हो रही है। खुद शरद पवार ने इसका संकेत दिया और उसके बाद अजित पवार के साथ सतारा में मंच साझा किया। एनसीपी के संस्थापक शरद पवार ने गुरुवार, आठ मई को कहा कि अगर दोनों पार्टियों का विलय हो जाए तो आश्चर्य नहीं होगा। इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि विलय का फैसला उन्होंने पार्टी की कार्यकारी अध्यक्ष और अपनी बेटी सुप्रिया सुले पर छोड़ दिया है। हालांकि ऐसा कुछ नहीं होता है। फैसला तो शरद पवार ने ही किया होगा उस पर अमल का काम उन्होंने बेटी पर छोड़ा है। गुरुवार को यह बयान देने के अगले दिन शुक्रवार को शरद पवार सतारा के एक कार्यक्रम में शामिल हुए, जिसमें अजित पवार भी थे। सुप्रिया सुले भी इस कार्यक्रम में शामिल हुईं। पिछले कुछ दिनों से पवार चाचा-भतीजे मंच साझा कर रहे थे लेकिन सुप्रिया सुले उनसे दूर रहती थीं। अब वे भी साथ में हैं।
सो, यह अब लगभग तय हो गया है कि दोनों पार्टियों का विलय होने जा रहा है। अब सवाल है कि विलय की शर्तें क्या होंगी? क्या नई पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद पवार रहेंगे या अजित पवार के हाथ में पार्टी की कमान होगी? उसमें सुप्रिया सुले की क्या भूमिका होगी? क्या वे कार्यकारी अध्यक्ष बनी रहेंगी? सबसे बड़ा सवाल यह है कि भारतीय जनता पार्टी और शिव सेना के साथ उसके संबंध कैसे होंगे? क्या विलय के बाद एनसीपी केंद्र की सरकार में शामिल होगी और सुप्रिया सुले केंद्र में मंत्री बनेंगी? हो सकता है कि शरद पवार ने यह सब भी पहले से तय किया हुआ हो। लेकिन ऐसा लग रहा है कि इतिहास अपने को दोहरा रहा है। 2019 के विधानसभा चुनाव के बाद जब अजित पवार ने भाजपा के साथ जाकर सरकार बनाई थी और शरद पवार कांग्रेस गठबंधन के साथ बने रहे थे तब झक्ख मार कर अजित पवार को वापस लौटना पड़ा था। इस बार अजित पवार कामयाब रहे हैं तो शरद पवार को उनके पास लौटना पड़ रहा है।
अगर विलय होता है तो यह शरद पवार की राजनीतिक पारी का समापन होगा। उन्होंने हमेशा भाजपा के साथ अच्छे संबंध रखे लेकिन राजनीति हमेशा भाजपा के विरोध में की। तभी उनको मराठा और मुस्लिम वोट मिलता रहा। भाजपा के साथ जाकर वे स्थायी रूप से मुस्लिम वोट की राजनीति समाप्त करेंगे। तब हो सकता है कि उनकी पार्टी के कुछ नेता अजित पवार की एनसीपी के साथ जाने की बजाय कांग्रेस और उद्धव ठाकरे की पार्टी के साथ रहें। जो हो लेकिन यह तय है कि पार्टी के सर्वोच्च नेता अजित पवार रहेंगे और सुप्रिया सुले की हैसियत वह नहीं रहेगी, जो शरद पवार के सामने अजित पवार की रहती थी। सुप्रिया दिल्ली की राजनीति करेंगी और पार्टी के कामकाज में भी उनका दखल ज्यादा नहीं होगा। हालांकि दिल्ली में भी अजित पवार ने अपनी पत्नी सुनेत्रा पवार को बैठाया है। उनको राज्यसभा सांसद बना कर दिल्ली भेजा गया है। तभी यह भी सवाल है कि क्या अजित पवार अपनी पत्नी को केंद्र में मंत्री बनाने का फैसला करेंगे? अगर दोनों पार्टियों का विलय होता है और एनसीपी के सांसदों की संख्या नौ होती है, ध्यान रहे शरद पवार की पार्टी के आठ सांसद हैं, तो केंद्र में दो मंत्री पद मिलेंगे। एक मंत्री पद के दावेदार प्रफुल्ल पटेल हैं। बहरहाल, शरद पवार का साथ देने वाले परिवार के दूसरे सदस्यों का क्या होगा, यह भी देखने वाली बात होगी।