Naya India

एनटीआर तो नहीं हो जाएंगे पवार?

प्रादेशिक पार्टियों में हुई बगावत में अब तक संस्थापक नेता पार्टी बचाने में कामयाब होते रहे हैं। एकाध अपवादों को छोड़ दें तो आज भी प्रादेशिक पार्टियों की कमान उन्हीं लोगों के हाथ में है, जिन्हें संस्थापक नेताओं ने नेता बनाया। संस्थापक नेताओं के जीते जी उसकी इच्छा के विरूद्ध पार्टी पर कब्जे की एकमात्र कामयाबी कहानी तेलुगू देशम पार्टी की है। एनटी रामाराव की आंखों के सामने उनके दामाद चंद्रबाबू नायडू पर उनकी बनाई पार्टी पर कब्जा कर लिया। एनटीआर ने  अपनी दूसरी पत्नी को पार्टी की कमान देने की कोशिश की थी, लेकिन नायडू ने बाकी परिजनों के साथ मिल कर पार्टी पर कब्जा कर लिया। क्या महाराष्ट्र में एनटी रामाराव की कहानी दोहराई जाएगी या पवार अपनी पार्टी बचा लेंगे?

अजित पवार ने अपने चाचा की पार्टी पर कब्जे का पूरी योजना बनाई हुई है, जिसमें भाजपा उनकी मदद कर रही है। पवार का परिवार दो हिस्सों में बंटा है। एक हिस्सा पूरी तरह से अजित पवार के साथ है। इसके अलावा पार्टी में पवार सीनियर के सारे भरोसेमंद और बड़े नेता अजित के साथ चले गए हैं, जिनमें प्रफुल्ल पटेल और छगन भुजबल का नाम खासतौर से लिया जा सकता है। इन सबकी मदद से अजित पवार एनसीपी पर कब्जा करना चाहते हैं। जिस तरह से एकनाथ शिंदे शिव सेना तोड़ कर अलग हुए और चुनाव आयोग ने उनकी पार्टी को असली शिव सेना मान लिया उसी तरह से एनसीपी के साथ भी हो सकता है। लेकिन क्या शरद पवार हार मान कर घर बैठ जाएंगे और अपनी बेटी सुप्रिया सुले का राजनीतिक भविष्य भगवान के हाथ सौंप देंगे? ऐसा होने की संभावना कम है। शरद पवार लड़ेंगे। जरूरत पड़ी तो नई पार्टी बनाएंगे और पूरी कोशिश करेंगे कि उनकी विरासत अजित पवार के पास न जाए। इस लिहाज से महाराष्ट्र का अगला चुनाव देश के किसी भी राज्य के मुकाबसे ज्यादा दिलचस्प होगा। वहां भाजपा, कांग्रेस से ज्यादा इस पर नजर रहेगी कि शरद पवार और अजित पवार की पार्टी में से कौन बाजी मारता है। अगर पार्टी तोड़ने का पूरा खेल शरद पवार का हुआ तो अलग बात है।

Exit mobile version