बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण यानी एसआईआर को लेकर संसद से लेकर सड़क तक आंदोलन चल रहा है। स्वतंत्रता दिवस के बाद संसद के मानसून सत्र के आखिरी हफ्ते के बीच राहुल गांधी बिहार में वोट अधिकार रैली करने निकलेंगे। उनके साथ तेजस्वी यादव भी होंगे। इससे पहले तेजस्वी ने दोहराया है कि विपक्ष बिहार में मतदान का बहिष्कार कर सकता है। उन्होंने यह बात पहले भी कही थी। अब वे इस बात को दोहरा रहे हैं। लेकिन ऐसा लग रहा है कि तेजस्वी का बयान वोट अधिकार रैली के लिए भीड़ जुटाने और लोगों को एकजुट करने के प्रयास के तहत दिया गया है। उनकी पार्टी के जानकार नेताओं का कहना है कि विपक्षी गठबंधन वोट का बहिष्कार करने नहीं जा रहा है। इसका पहला कारण तो यह है कि वोट चोरी का मामला आम लोगों को बहुत अपील नहीं कर रहा है यानी यह कोई जन आंदोलन नहीं बन पा रहा है।
दूसरा कारण यह है कि विपक्षी गठबंधन यानी ‘इंडिया’ ब्लॉक के बीच इस पर सहमति बनाने में मुश्किल आएगी। हो सकता है कि विकासशील इंसान पार्टी के नेता मुकेश सहनी इस पर सहमत नहीं हों और एनडीए के साथ चले जाएं। कांग्रेस को भी तैयार करना आसान नहीं होगा क्योंकि अगर बिहार में बहिष्कार किया तो अगले साल पश्चिम बंगाल, असम जैसे राज्यों में भी बहिष्कार का दबाव बढ़ेगा। बसपा और बिहार की कुछ अन्य प्रादेशिक पार्टियां भी चुनाव में हिस्सा लेंगी। तीसरा कारण यह है कि बिहार में एक तीसरी ताकत के तौर पर प्रशांत किशोर का उभार हो गया है, जिनकी जन सुराज पार्टी सभी सीटों पर चुनाव लड़ेगी। वे मतदाता सूची के पुनरीक्षण को लेकर ज्यादा चिंतित नहीं हैं। उन्होंने कई बार कहा है कि अगर दो फीसदी भी वोट कट जाता है तो कोई बात नहीं है, एनडीए तब भी हारेगा। इसका मतलब है कि वे 65 लाख या इससे दोगुने से भी ज्यादा नाम कट जाने के बावजूद चुनाव लड़ेंगे। तभी राजद और कांग्रेस दोनों को लग रहा है कि चुनाव का बहिष्कार किया तो सब कुछ हाथ से निकल जाएगा। बिहार का चुनाव एनडीए बनाम जन सुराज हो जाएगा। पक्ष और विपक्ष इन्हीं में से तय होगा। इसलिए चुनाव बहिष्कार अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने जैसा हो जाएगा।