आजाद भारत के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ कि देश की विपक्षी पार्टियां किसी मसले पर इतने लंबे समय तक सरकार के साथ रहीं। चीन और पाकिस्तान के साथ 1962 और 1971 में हुए युद्ध के समय भी तत्कालीन विपक्ष कांग्रेस की सरकार के साथ इतनी देर तक नहीं खड़ा था। इस बार बहुत सीमित युद्ध हुआ, जिसे आतंकवाद के खिलाफ लक्षित सैन्य कार्रवाई कहा जा रहा है कि लेकिन विपक्ष लगातार सरकार के साथ खड़ा रहा।
युद्ध स्थगित हो जाने और उस पर सत्तारूढ़ दल यानी भाजपा की ओर से राजनीति शुरू कर देने के बावजूद विपक्षी पार्टियां सरकार को चुनौती देने से हिचक रही हैं। किसी भी मुद्दे पर सवाल नहीं उठा रही हैं। यहां तक कि संसद का विशेष सत्र बुलाने की कांग्रेस की मांग का भी समर्थन नहीं कर रही हैं।
एमके स्टालिन और ममता बनर्जी की पार्टियों ने अपनी ओर से विशेष सत्र बुलाने की मांग नहीं की है। उन्होंने आतंकवादियों के खिलाफ चलाए गए अभियान ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को लेकर कोई सवाल नहीं उठाया है। यहां तक कि सीजफायर कराने के अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दावे को लेकर भी सरकार से सवाल नहीं पूछा है। यही हाल समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल का भी है। उद्धव ठाकरे की शिव सेना ने जरूर सरकार पर निशाना साधा है लेकिन बाकी विपक्षी पार्टियां या तो चुप हैं या सरकार का समर्थन कर रही हैं।
जिन राज्यों में अगले कुछ दिनों में चुनाव होने वाले हैं वहां की विपक्षी पार्टियों ने ज्यादा चुप्पी साधी है और साथ ही किसी न किसी तरह से यह संदेश बनवाया है कि वे सरकार का समर्थन कर रहे हैं और उनको भी सेना की कार्रवाई पर गर्व है। इस गर्व का प्रदर्शन करने के लिए तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन तिरंगा लेकर सड़क पर उतरे और एक रैली की। गौरतलब है कि बिहार में अगले पांच महीने में चुनाव होने वाले हैं और पश्चिम बंगाल व तमिलनाडु में विधानसभा चुनाव में एक साल से कम समय रह गया है।
सो, राजद, तृणमूल और डीएमके को लग रहा है कि इस समय ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर सवाल उठाया या सरकार को कठघरे में खड़ा किया तो भाजपा उसका उलटा नैरेटिव बना सकती है। इन तीनों पार्टियों को यह भी लग रहा है कि पहलगाम कांड और उसके बाद सैन्य कार्रवाई में सिर्फ देशभक्ति का मामला नहीं है, बल्कि धर्म का मामला भी जुड़ा है।
देश के दक्षिणी राज्यों के लोगों को भी कश्मीर के पहलगाम में धर्म पूछ कर मारा गया है। इसलिए लोगों में पाकिस्तान के प्रति नाराजगी है। तभी अपने वोट की चिंता में चुनावी राज्यों के विपक्षी पार्टियों ने चुप्पी साधी है और सरकार से सवाल नहीं पूछने का फैसला किया है। उनकी रणनीति इस फेज को चुपचाप गुजर जाने देने का है।
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