आतंकवादियों ने 22 अप्रैल को जम्मू कश्मीर के पहलगाम में बेकसूर सैलानियों को निशाना बनाया और 26 लोगों की हत्या कर दी। उसके दो दिन के बाद नई दिल्ली में सर्वदलीय बैठक हुई और सभी पार्टियों के नेता जुड़े, जहां सबने एक स्वर में कहा कि उनका समर्थन सरकार के साथ है। अगले दिन लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी जम्मू कश्मीर के दौरे पर गए और वहां भी उन्होंने कहा कि कांग्रेस पूरी तरह से सरकार के साथ है और आतंकवादियों से निपटने के लिए सरकार जो भी कदम उठाएगी कांग्रेस उसका समर्थन करेगी। कांग्रेस के अलावा दूसरी विपक्षी पार्टियों ने भी सरकार का समर्थन किया और आतंकवादियों व पाकिस्तान पर हमला किया। ऑल इंडिया एमआईएम के नेता असदुद्दीन ओवैसी ने भी पाकिस्तान पर तीखा हमला किया और ऐसे बयान दिए, जिनको राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के मुखपत्र पांचजन्य के सोशल मीडिया प्लेटफटॉर्म पर शेयर किया गया। लेकिन यह सब चार दिन चला है और उसके बाद फिर राजनीति शुरू हो गई।
देश की राजनीति वापस उसी ढर्रे पर लौट आई है, जिस पर पहले थी। पहलगाम हमले को लेकर भी विपक्षी पार्टियों ने सरकार और भाजपा को निशाना बनाना शुरू कर दिया है। अभी पहलगाम हमले में मारे गए लोगों के यहां शोक चल रहा है और भारत की तरफ से प्रतिक्रिया भी नहीं हुई है लेकिन उससे पहले ही जुबानी जंग शुरू हो गई है। कांग्रेस ने पहले अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से छह सवाल पूछे। उसके बाद कांग्रेस ने एक बलंडर किया। उसने बिना सिर वाली एक तस्वीर लगा कर प्रधानमंत्री गायब का पोस्टर जारी किया। हालांकि बाद में कांग्रेस ने उस पोस्ट को डिलीट किया लेकिन तब तक विवाद शुरू हो चुका था। भाजपा ने उसके सर तन से जुदा वाली विचारधारा बता कर कांग्रेस पर हमला किया। सोचें, पहले तो किसने ऐसी रचनात्मकता दिखाई और उससे भी बडा सवाल यह है कि प्रधानमंत्री सर्वदलीय बैठक में नहीं शामिल हुए क्या इसका मतलब है कि वे गायब हो गए? क्या कांग्रेस चाहती है प्रधानमंत्री जाकर जंग लड़ें? प्रधानमंत्री लगातार बैठकें कर रहे हैं और सरकार अपनी तरफ से प्रतिक्रिया देने के उपायों पर विचार कर रही है। लेकिन कांग्रेस को लगा कि इस स्थिति का लाभ भाजपा को मिल रहा है या मिल सकता है तो उसको कठघरे में खड़ा किया जाए। कम से कम भारत की प्रतिक्रिया तक तो उसको जरुर इंतजार करना चाहिए था।