Naya India-Hindi News, Latest Hindi News, Breaking News, Hindi Samachar

राहुल के आइडिया में क्या खराबी है?

कांग्रेस नेता राहुल गांधी का नारा, ‘जितनी आबादी उतना हक’ इन दिनों ट्रेंड कर रहा है। हर आदमी उसकी बात कर रहा है। बिहार में जाति गणना के आंकड़े सार्वजनिक होने के बाद से इसकी चर्चा और तेज हो गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तो इसमें खराबी बताई ही है हैरानी की बात है कि उनकी अपनी पार्टी के नेता और प्रवक्ता अभिषेक सिंघवी ने भी इसमें कमी बताते हुए एक ट्विट किया। हालांकि बाद में उन्होंने उस ट्विट को डिलीट कर दिया। उन्होंने कहा था कि ‘जितनी आबादी उतना हक’ के सिद्धांत से बहुसंख्यकवाद को बढ़ावा मिलेगा। हालांकि यह समझना मुश्किल है कि कैसे इससे बहुसंख्यकवाद को बढ़ावा मिलेगा? आखिर राममनोहर लोहिया ने जब ‘पिछड़ा पावें सौ में साठ’ या कांशीराम ने ‘जिसकी जितनी संख्या भारी उसकी उतनी हिस्सेदारी’ का नारा दिया था तब तो किसी ने बहुसंख्यकवाद की बात नहीं कही थी। फिर अब यह बात क्यों उठ रही है?

लोहिया और कांशीराम के नारे के बाद कहा गया था कि इससे सवर्ण हिंदुओं के वर्चस्व को चुनौती मिलेगी क्योंकि कम आबादी के बावजूद ज्यादातर संसाधनों पर उनका कब्जा है। अब भी यही बात सही है। चाहे सवर्ण हिंदू हों या पिछड़ी जातियों में दबंग व मजबूत सामाजिक व शैक्षणिक आधार वाली जातियां हों देश के संसाधनों पर उन्हीं का कब्जा है। केंद्र सरकार ने खुद जस्टिस रोहिणी आयोग का गठन किया था, जिसकी रिपोर्ट आ गई है। इसमें कहा गया है कि अत्यंत पिछड़ी जातियों को आरक्षण का बहुत कम फायदा हुआ है। सो, चाहे लोहिया का आइडिया हो या कांशीराम का या राहुल गांधी का यह बहुसंख्यकवाद तो बढ़ावा नहीं देता है यह उनके वर्चस्व के लिए चुनौती है, जिनका संसाधनों पर नियंत्रण है। इसमें न तो कोई सांप्रदायिक पहलू है और न बहुसंख्यकवाद का पहलू है। जाति गिनती से आबादी की संख्या का पता चलेगा और उस हिसाब से संसाधनों पर हक देने की व्यवस्था की जा सकेगी।

Exit mobile version