राहुल गांधी पता नहीं देश के लोगों के हीरो कब बनेंगे, कब देश के लोग उनकी पार्टी को वोट देना शुरू करेंगे लेकिन उससे पहले वे सोशल मीडिया के हीरो हो गए हैं। सोशल मीडिया में कांग्रेस समर्थकों का या ऐसे कहें कि भाजपा विरोधियों का एक ऐसा इकोसिस्टम तैयार हो गया है, जो पलक झपकते राहुल को आसमान में उड़ा दे रहा है। तमाम यूट्यूबर्स और एक्स व इंस्टाग्राम के इन्फ्लूएंसर्स हर बात के लिए राहुल की ऐसी वाह-वाह कर रहे हैं, जैसी नरेंद्र मोदी के समर्थक या अरविंद केजरीवाल और प्रशांत किशोर के समर्थक उनके लिए करते हैं। जैसे मोदी समर्थक बताते हैं कि देश और दुनिया में जो कुछ भी हो रहा है वह मोदीजी कर रहे हैं वैसे ही राहुल के समर्थक बता रहे हैं कि राहुल विपक्ष की कुर्सी पर बैठ कर सरकार चला रहे हैं और वे जो कहते हैं वह सरकार करती है। कई लोग तो यहां तक पहुंच गए हैं कि वे राहुल को धरती का सबसे बड़ा भविष्यवक्ता बता रहे हैं। वे कई चीजों की मिसाल देकर बता रहे हैं कि राहुल ने जो कहा वह पूरा हुआ। हालांकि ज्यादातर बातें ऐसी हैं जैसे कोई कहे कि सोमवार के बाद मंगलवार आएगा और उसके बाद उसके समर्थक ताली पीटें कि देखो हमारे नेता ने तो कहा ही था कि सोमवार के बाद मंगलवार आएगा।
बहरहाल, मोदी के लिए भी ऐसा ही कहा जाता है और राहुल के लिए भी उनके समर्थक ऐसा ही कह रहे हैं। लेकिन फर्क यह है कि मोदी सोशल मीडिया की बातों पर ध्यान नहीं देते हैं या सोशल मीडिया में हीरो बनने के लिए कोई काम नहीं करते हैं। दूसरी ओर कांग्रेस का पूरार सिस्टम सोशल मीडिया के हिसाब से चल रहा है। राहुल गांधी से लेकर मल्लिकार्जुन खड़गे की पूरी टीम दिन भर सोशल मीडिया पर नजर बनाए रखती है। वहां क्या मीम्स बन रहे हैं, क्या सवाल उठ रहे हैं, क्या नैरेटिव बन रहा है उस हिसाब से काम करते हैं। सोशल मीडिया में मुस्लिम सब्सक्राइवर और व्यूज बढ़ाने के लिए सैकड़ों इन्फ्लूएंसर्स हर दिन भाजपा की सरकार गिराते हैं, भाजपा का गठबंधन तुड़वाते हैं, मोदी और शाह, मोदी और योगी या शाह और योगी का झगड़ा कराते हैं, बिहार में नीतीश कुमार को वापस राजद के खेमे में भेजते हैं, शिव सेना में एकता करवाते हैं, शरद और अजित पवार की पार्टियों का विलय कराते हैं, हर चुनाव से पहले कांग्रेस की जीत की पटकथा लिखते हैं और वोटों की गिनती में कांग्रेस के हार जाने के बाद ईवीएम और चुनाव आयोग को उसके लिए जिम्मेदार ठहराते हैं।
हैरानी की बात है कि कांग्रेस के नेता अपनी सुविधा के हिसाब से इन बातों पर यकीन करते हैं। सोशल मीडिया के इन्फ्लूएंसर्स ने कहा कि कांग्रेस संगठन में भाजपा के लोग घुस गए हैं तो राहुल ने मान लिया और गुजरात में कह भी दिया कि ऐसे लोगों की पहचान करके पार्टी से निकालना है। लेकिन दो महीने से ज्यादा हो गए एक आदमी न पहचाना गया है और न निकाला गा है। सोशल मीडिया के हिसाब से काम करते हुए कांग्रेस और राहुल गांधी समझ रहे हैं कि सारी गड़बड़ी ईवीएम और चुनाव आयोग की है इसलिए हार रहे हैं। असली कारण यह है कि कांग्रेस का जमीनी संगठन है ही नहीं। शायद ही कोई राज्य होगा, जहां कांग्रेस की कार्यकारिणी बनाई है। बिहार में, जहां पांच महीने बाद चुनाव होने हैं वहां पांच साल से कांग्रेस का संगठन नहीं है। इस बीच तीन अध्यक्ष और तीन प्रभारी बदले हैं।