अभी तेजस्वी यादव बिहार के मुख्यमंत्री नहीं बने हैं। वे चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों में मुख्यमंत्री पद के सबसे लोकप्रिय दावेदार बताए जा रहे हैं। सी वोटर के चार सर्वे में वे अपने दूसरे प्रतिद्वंद्वियों से काफी आगे हैं। लेकिन यह लोकप्रियता उनकी पार्टी या गठबंधन की नहीं है। इसलिए यह नहीं कहा जा सकता है कि उनकी लोकप्रियता के आधार पर उनकी पार्टी या गठबंधन सरकार बनाने लायक बहुमत हासिल कर लेंगे। फिर भी केंद्र सरकार गिरफ्तारी या 30 दिन की हिरासत पर मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों को हटाने का जो कानून ला रही है उसे लेकर सबसे ज्यादा चिंता तेजस्वी यादव और उनकी टीम के अंदर है। इसका कारण यह है कि प्रादेशिक नेताओं कम ही नेता ऐसे हैं, जिनके ऊपर गंभीर आपराधिक मामला है और जिन्होंने पार्टी के अंदर अपनी वैकल्पिक व्यवस्था नहीं बनाई है। जो प्रादेशिक नेता एक बार भी मुख्यमंत्री बन गए हैं उनको दिक्कत नहीं है।
ध्यान रहे तेजस्वी यादव के खिलाफ जमीन के बदले नौकरी के मामले में गंभीर आरोप हैं। दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट में इस मामले की सुनवाई हुई है और आरोप तय हो गए हैं। लालू प्रसाद यादव का लगभग पूरा परिवार इस मामले में आरोपी है। तकनीकी आधार पर मुकदमा खारिज करने की जो याचिका लालू प्रसाद ने सुप्रीम कोर्ट में दायर की थी वह खारिज हो चुकी है और मुकदमा सुनवाई की स्थिति में है। यह सही है कि 2004 से 2009 में लालू प्रसाद के रेल मंत्री रहने के दौरान का यह मामला है और उस समय तेजस्वी यादव राजनीति में भी नहीं थे और नाबालिग थे। लेकिन इस कथित अपराध की आय के वे लाभार्थी हैं और बालिग होने के बाद भी उन्होंने इसे इनकार नहीं किया है। इसलिए वे भी आरोपी हैं। मुश्किल यह है कि लालू प्रसाद ने उनको तो नेता बना दिया है। इसलिए उनके नेतृत्व को चुनौती नहीं है। परंतु अगर वे मुख्यमंत्री बन जाते हैं और जमीन के बदले नौकरी घोटाले में उनको सजा हो जाती है तो वे अपने पिता की तरह अपनी पत्नी को मुख्यमंत्री नहीं बना पाएंगे। फिर परिवार के अंदर कई दावेदार खड़े हो जाएंगे। तेज प्रताप से लेकर मीसा भारती और रोहिणी आचार्य तक कई दावेदार हैं। उनकी पत्नी बाहर की हैं, गैर यादव हैं और अभी तक राजनीति से पाला नहीं पड़ा है।