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बिहार में शिक्षकों को स्कूल लाने की चुनौती

शिक्षक

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देश के सभी राज्यों में सरकारों के सामने यह चुनौती है कि कैसे छात्रों को स्कूल तक लाया जाए। उसके लिए मध्यान्ह भोजन के साथ साथ दूसरे कई उपाय किए जा रहे हैं। सरकारी स्कूलों में छात्रों की संख्या कम हो रही है तो राज्यों में चिंता है। लेकिन भारत में छात्रों को स्कूल तक लाने की चिंता नहीं है। उससे ज्यादा बड़ी चिंता शिक्षकों को स्कूल तक लाने की है। बिहार देश का संभवतः एकमात्र राज्य है, जहां सरकारी स्कूलों के शिक्षक सैकड़ों किस्म के उपाय करते हैं स्कूल जाने से बचने के लिए।

राज्य के शिक्षा सचिव का और शिक्षा विभाग के तमाम अधिकारियों का ज्यादा समय यह पता करने में बीतता है कि शिक्षक स्कूल आए या नहीं। सोचें, यह कितनी हैरानी की बात है कि एक तरफ नौजवान नौकरी के लिए मर रहे हैं और दूसरी ओर जिनको सरकारी नौकरी मिल गई है वे स्कूल जाकर पढ़ाना और स्कूल कैम्पस में आठ घंटे बिताना नहीं चाहते हैं!

बिहार में शिक्षक नहीं जाना चाहते स्कूल

बिहार में नीतीश कुमार ने बड़ी संख्या में शिक्षकों की बहाली की है। लेकिन पहले सारी बहाली मुखिया लोगों की मर्जी से हुई, जिन्होंने अपने रिश्तेदारों को या पैसे लेकर लोगों को बहाल किया। उनमें से 99 फीसदी को कुछ आता जाता नहीं था और उनकी मंशा भी स्कूल में पढ़ाने की नहीं थी। तभी बिहार में प्रॉक्सी शिक्षक का चलन शुरू हुआ। मास्टर लोग अपनी जगह किसी स्थानीय व्यक्ति को थोड़े से पैसे देकर रख देते थे, जो उनकी जगह स्कूल जाता था।

कई दिन पर एक दिन जाकर मास्टर लोग हाजिरी बनाते थे। जब सरकार ने सख्ती की तो मास्टर लोग स्कूल में छुट्टी का आवेदन रखने लगे। जब उससे ज्यादा सख्ती हुई और मोबाइल से हाजिरी बनाने का चलन शुरू हुआ तो मास्टरों ने उससे बचने के उपाय खोज लिए। फिर सुबह और शाम दोनों समय हाजिरी बनाने का आदेश हुआ तो उससे भी बचने के रास्ते खोजे। अभी आठ हजार शिक्षक पकड़े गए हैं, जो हाजिरी बनाने के फर्जीवाड़े में शामिल थे।

सबने हाजिरी बनाने के लिए अलग मोबाइल रखा हुआ था और कोई एक व्यक्ति कई लोगों के मोबाइल लेकर जाता था और हाजिरी बनाता था। यानी सरकार और शिक्षकों में गुरिल्ला युद्ध चल रहा है। तू डाल डाल मैं पात पात का खेल चल रहा है। सरकार शिक्षकों को स्कूल तक लाने के उपाय कर रही है और शिक्षक उसने बचने के नए नए तरीके खोज रहे हैं।

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Pic Credit: ANI

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