सभी राज्यों में मोटर ट्रांसपोर्ट विभाग खास नंबरों की नीलामी करता है। पहले ये नंबर लोग अपनी पहुंच, परिचय के आधार पर हासिल कर लेते थे। जब इनका क्रेज बढ़ने लगा तो सरकार ने एक से नौ तक के नंबर सरकारी गाड़ियों के लिए आरक्षित कर दिए। हालांकि अब भी कई राज्यों में एक से नौ तक नंबर भी निजी गाड़ियों के लिए दिया जाता है और इसके लिए मोटी रकम वसूली जाती है। यह परिवहन विभाग की कमाई का एक जरिया है। एक से नौ तक के नंबरों के अलावा भी खास नंबरों की नीलामी होती है। अब यह एक ड्रामा बन गया है। या तो परिवहन विभाग इस ड्रामे को बंद करें या इसे तर्कसंगत बनाने के लिए किसी नबंर की अधिकतम कीमत तय करें।
ऐसा सुझाव देने की जरुरत इसलिए पड़ रही है क्योंकि हरियाणा के हिसार में एक नंबर की बोली एक करोड़ 17 लाख रुपए लगी है। HR88B8888 नंबर के लिए परिवहन विभाग की आरक्षित कीमत 50 हजार रुपए थी। यानी न्यूनतम 50 हजार से बोली शुरू हुई, जो 1.17 करोड़ रुपए तक पहुंच गई। अब यह पता नहीं है कि जिस व्यक्ति ने बोली लगाई उसके पास कौन सी गाड़ी है और यह भी पता नहीं है कि वह व्यक्ति ये नंबर लेगा या नहीं। इस ड्रामे के बाद उसने कहा है कि वह इस पर विचार करेगा कि यह नंबर ले या नहीं ले। अगर वह नहीं लेता है तो उसे साढ़े चार हजार रुपए का नुकसान होगा। यह रकम गारंटी के तौर पर बोली लगाने से पहले जमा कराई जाती है। लोग इतनी रकम जमा करके अनाप शनाप बोली लगाते हैं और बाद में नंबर नहीं लेते हैं। विभाग को नए सिरे से बोली लगानी होती है। तभी या तो यह ड्रामा बंद हो या एक अधिकतम सीमा लगाई जाए, जो कि तर्कसंगत हो। यह भी नियम होना चाहिए कि जिस गाड़ी के लिए नंबर लिया जा रहा है उसकी कीमत को 10 फीसदी से ज्यादा नंबर की कीमत नहीं होगी।
