बिहार में मतदाता सूची के पुनरीक्षण का काम शुरू हो गया है। 25 जून से 26 जुलाई तक यानी एक महीने तक यह अभियान चलेगा। इस दौरान चुनाव कार्यालय के कर्मचारी और बूथ लेवल के अधिकारी यानी बीएलओ घर घर जाकर मतदाताओं का सत्यापन करेंगे। कोई 20 साल के बाद बिहार में मतदाता सूची का इतना गहन पुनरीक्षण हो रहा है। लेकिन इसके साथ ही इसे लेकर सवाल उठने लगे हैं। पहला सवाल इसकी टाइमिंग का है और सत्यापन के लिए निर्धारित की गई समय सीमा का है। ध्यान रहे बिहार में विधानसभा चुनाव नजदीक आ गया है। चार महीने में वहां मतदान होना है। उससे ठीक पहले यह अभियान शुरू हुआ है। दूसरे, इसके लिए सिर्फ एक महीने का समय तय किया गया है। इसके अलावा इस बात पर विवाद है कि मतदाताओं से कई किस्म के दस्तावेज मांगे जाएंगे। बहुत बड़ा समूह ये दस्तावेज नहीं दिखा पाएगा।
चुनाव आयोग ने तय किया है कि जिन लोगों का जन्म 1987 से पहले हुआ है उनको अपने जन्म से जुड़ा कोई प्रमाणपत्र देना होगा और साथ ही अपने माता या पिता में किसी के जन्म का प्रमाणपत्र देकर यह साबित करना होगा कि वे भारतीय हैं। जिन लोगों का जन्म 1987 से लेकर 2004 के बीच हुआ है उनको अपने जन्म के प्रमाणपत्र के साथ माता और पिता दोनों के जन्म का प्रमाणपत्र देना होगा। अगर किसी के माता या पिता उस व्यक्ति के जन्म के समय भारतीय नहीं थे तो उनका पासपोर्ट और वैध वीजा की जानकारी देनी होगी। सोचें, चुनाव आयोग ने अचानक इस पुनरीक्षण की घोषणा की है और सिर्फ एक महीने का समय दिया है। लाखों लोगों के पास ये दस्तावेज तैयार नहीं होंगे और वे चाह कर भी इतने कम समय में ये दस्तावेज नहीं दिखा पाएंगे। ऐसे लोगों का नाम मतदाता सूची से कट जाएंगे।
चुनाव आयोग को समय समय पर मतदाता सूची का पुनरीक्षण करना चाहिए ताकि उसे अपडेट रखा जा सके। बिहार जैसे राज्य में तो यह और भी जरूरी है क्योंकि वहां जन्म और मृत्यु प्रमाणपत्र पर लोग ज्यादा ध्यान नहीं देते हैं और मृत्यु के बाद भी मतदाता सूची से नाम कटवाने की जरुरत नहीं समझते हैं। दूसरे, बड़ी संख्या में वहां से लोगों का पलायन होता है। लेकिन उनका नाम मतदाता सूची में बना रहता है। यही कारण है कि बिहार जैसे राजनीतिक रूप से सजग प्रदेश में मतदान का प्रतिशत हमेशा कम होता है। चूंकि मतदाता सूची में जिन लोगों के नाम होते हैं उनमें से लाखों लोग बिहार से बाहर रहते हैं। सो, मतदाता सूची के अनुपात में मतदान का प्रतिशत कम हो जाता है। इसके अलावा बांग्लादेश से सीमा सटे होने की वजह से बड़ी संख्या में बांग्लादेशी घुसपैठिए बिहार के अलग अलग हिस्सों में बसे हैं। खास कर सीमांचल के इलाके में। उनके साथ साथ म्यांमार के शरणार्थी भी अनेक जिलों में बसे हुए हैं। इनमें से ज्यादातर के पास आधार और वोटर आईकार्ड होगा लेकिन माता, पिता के जन्म का प्रमाणपत्र नहीं होगा या जुटाना मुश्किल होगा। तभी इनके नाम कटने की आशंका में बिहार की विपक्षी पार्टियों, राजद, सीपीआई एमएल और कांग्रेस ने चुनाव आयोग की एक्सरसाइज का विरोध किया है। गौरतलब है कि कांग्रेस पहले से महाराष्ट्र की हार को लेकर चुनाव आयोग पर मतदाता सूची से नाम हटाने और फर्जी नाम जोड़ने के आरोप लगा रही है। राहुल गांधी यह भी कह चुके हैं कि बिहार में भी महाराष्ट्र जैसी मैच फिक्सिंग होगी। पुनरीक्षण के अभियान के बाद विपक्ष इन आरोपों को दोहरा रहा है। हालांकि विपक्षी पार्टियां तृणमूल कांग्रेस की तरह सक्रिय होकर गड़बड़ी रोकने के प्रयास नहीं कर रही हैं, सिर्फ आरोप लगा रही हैं।